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बदलाव की जरूरत: सिर्फ एक पीढ़ी को ही मिले आरक्षण का लाभ

raghvendra
Published on: 19 Jan 2018 8:06 AM GMT
बदलाव की जरूरत: सिर्फ एक पीढ़ी को ही मिले आरक्षण का लाभ
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सोनम वांगचुक

लद्दाख के शिक्षा सुधारक और अन्वेषक सोनम वांगचुक का कहना है कि आरक्षण नीति के तहत मिलने वाले लाभों को किसी परिवार की एक पीढ़ी तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। जिन परिवारों की एक पीढ़ी ने आरक्षण का लाभ ले लिया, उन्हें इस अधिकार को छोड़ देना चाहिए और अपनी अगली पीढ़ी को नहीं देना चाहिए।

फिल्म ‘3 इडियट्स’ में आमिर खान द्वारा निभाया गया प्रेरणादायक किरदार फुनशुक वांगडू शिक्षा सुधारवादी सोनम वांगचुक से ही प्रेरित था। वह कहते हैं कि शैक्षिक संस्थानों में सीटों में आरक्षण और रोजगार में आरक्षण देने वाली नीति में संशोधन किया जाना चाहिए और उसे एक परिवार में एक पीढ़ी तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। वांगचुक ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘हमारे यहां जो लोग आरक्षण के हकदार हैं, उन्हें इसका लाभ नहीं मिल रहा है। जिन्हें ये लाभ मिल रहे हैं, उन्होंने शीर्ष पर एक क्रीमी लेयर बना लिया है।’ आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण की आवश्यकता पर बात करते हुए वांगचुक ने कहा कि मौजूदा आरक्षण नीति में सुधार की आवश्यकता है।

वांगचुक शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने और प्रशिक्षण के व्यावहारिक पहलुओं पर अधिक जोर देने के उद्देश्य के साथ लद्दाख में हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स (एचआईएएल) विश्वविद्यालय खोलने की योजना बना रहे हैं। विश्वविद्यालय के बारे में बात करते हुए वांगचुक ने कहा कि हालांकि अभी कोई ठोस योजना नहीं है लेकिन एक सोच यह है कि चूंकि पहाड़ इस संस्थान का मूल होंगे, इसलिए 50 फीसदी सीटों को लद्दाख के युवाओं के लिए अलग रखा जाना चाहिए। एचआईएएल एक गैर-पारंपरिक विश्वविद्यालय होगा जो छात्रों को पर्वतों की जानकारी और पर्वतीय क्षेत्रों के विकास का प्रशिक्षण देगा ताकि वे पहाड़ों में रहते हुए धन अर्जित कर सकें।

आईआईटी से पढ़े अन्वेषक ने मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर भी अपने विचार साझा किए जिसके बारे में कहा जा रहा है कि कुछ हद तक यह बेरोजगार इंजीनियरों को पैदा करने के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने कहा, ‘मैं दो चीजें देख रहा हूं। पहला ये कि जिस तरह से छात्रों को सिखाया जाता है उस तरीके को बदला जाए ताकि उन्हें उपयोगी और प्रासंगिक ज्ञान हासिल मिले। दूसरी चीज यह है जो उतनी ही महत्वपूर्ण है कि क्यूं हर कोई व्यक्ति सोचता है कि उसे कोई शख्स, कंपनी या सरकारी संस्थान नौकरी पर रख ले। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो छात्र के अंदर अपने कौशल को उभारकर और उसका इस्तेमाल कर खुद आगे बढऩे को प्रेरित कर सके।’

वांगचुक को उम्मीद है कि उन्हें उनकी परियोजना के लिए 26 जनवरी तक सात करोड़ रुपये मिल जाएंगे जो देश के दुर्गम लद्दाख क्षेत्र में एक विश्वविद्यालय के पहले पाठ्यक्रम को शुरू करने के लिए जरूरी 14 करोड़ रुपये का आधा हिस्सा है। इस पाठ्यक्रम का नाम इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट कोर्स होगा।

उन्होंने कहा कि अब तक आम लोगों से 4.6 करोड़ रुपये मिल चुके हैं। बाकी की राशि औद्योगिक संस्थानों की पहल कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के जरिए 26 जनवरी तक इक_ी होने की उम्मीद है। वांगचुक के अनुसार, ‘कॉपोरेट सेक्टर से जैन इरिगेशन सिस्टम्स कंपनी ने हमेशा समर्थन किया है। इसी तरह एसेल और हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र की गैस कंपनी पेट्रोनेट एलएनजी ने हमारी परियोजना में रुचि दिखाई है और ये सभी हमारे लिए प्रतिबद्ध हैं।’

सार्वजनिक क्षेत्र की पांच संस्थाओं ने परियोजना के लिए पांच करोड़ रुपये की राशि देने के लिए प्रतिबद्धता जताई है जिनमें भारतीय रेलवे, कोल इंडिया शामिल हैं। वह कहते हैं, ‘चूंकि, यह सरकार का पैसा है, इसलिए इसे हम हमारी सहयोगी हिल काउंसिल ऑफ लद्दाख के माध्यम से हासिल कर सकते हैं।’

वांगचुक विश्वविद्यालय को मान्यता दिलाने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से संपर्क नहीं करेंगे। इसके बजाए वह उम्मीद करते हैं कि जम्मू और कश्मीर सरकार राज्य विधानसभा में एक विधेयक पारित करेगी जो संस्थान को राज्य विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता देगा।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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