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नर्सों का सम्मान करो, मत उनका अपमान करो

आज नर्सों का दिन है। मै फिर यही कहूंगा कि आप नर्सों का जितना दर्द, उनकी पीड़ा समझेंगे उतना उनके प्रति सम्मान बढ़ता जाएगा। आपका अपना बच्चा आपको जवाब देता है आप सुन लेते हैं नर्स भी तो आपकी बेटी हैं। उनकी सच्ची और खरी बात सुनकर समझनी चाहिए। उनको जितना आदर सम्मान देंगे उतना अपने पास और करीब पाएंगे।

राम केवी
Published on: 12 May 2020 11:55 AM IST
नर्सों का सम्मान करो, मत उनका अपमान करो
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रामकृष्ण वाजपेयी

आज नर्सडे है। नर्सों के प्रति एक अजीब सी श्रद्धा मुझे शुरू से रही है। सफेद स्कार्फ सफेद टॉप और सफेद स्कर्ट लांग सॉक्स और सफेद जूते पहने किसी बुलबुल सी चहकती हर दम प्रफुल्लित खुश दिखने वाली। किसी भी मरीज की एक कराह पर दौड़कर जाने वाली मरीज को और मरीज के तीमारदार को ढांढस बंधाने वाली इन नर्सों के बारे में हम कितना जानते हैं। जब कोई व्यक्ति लंबे समय के लिए बीमार पड़ जाता है तो घर के लोग भी किसी अशक्त परिजन की यूरिन और पॉटी साफ करने से अनखाने लगते हैं। घर में सेवा कर रहे तीमारदारों की एक ही आवाज सुनाई देती है कि इन्हें कहीं अस्पताल में भरती करा दो हम तो ऊब गए हैं ये सब करते करते।

श्वेत नाइटिंगेल

ये ठीक है कि इन नर्सों को आज वेतन मिलता है, इनके जॉब का हिस्सा है ये सब कुछ लेकिन इस काम का पैसा मिलने पर भी कितने लोग इस काम को करने को तैयार होंगे। ये संयोग है कि मुझे बचपन से ही अस्पताल बार बार जाने का मौका मिला। जब मै बहुत छोटा था तब कानपुर के हैलट अस्पताल, डफरिन अस्पताल या बीमा अस्पताल अम्मा का हाथ पकड़कर उनको मेरी बहनों के जन्म के दौरान दवा दिलवाने जाया करता था।

तब से मुझे अस्पताल की ये नाइटिंगेल बहुत आकर्षित करती थीं। इनकी सेवाभावना मेरे बालमन पर गहरी छाप छोड़ती थीं। इसके बाद जब मै लगभग 13 साल का था तब मस्तिष्क ज्वर से ग्रस्त होने पर तकरीबन 15 दिन अस्पताल में रहना पड़ा। कनखल में वह रामकृष्ण मिशन का अस्पताल था। वहां पर नर्सों का काम देखा। मरीज चाहे खून की उलटी कर रहा हो या पॉटी नर्सों की सेवा भावना और लगन में मैने कभी कोई कमी नहीं देखी।

सतत सेवा में रत

इसके बाद बाबा के साथ कनखल हरिद्वार में रहते हुए उनके अस्वस्थ होने पर अस्पताल में उनके भर्ती रहने के दौरान मैने देखा कि डॉक्टर तो सिर्फ सुबह और शाम राउंड पर आते हैं लेकिन 24 घंटे मरीज की तीमारदारी नर्सों के ऊपर ही रहती है।

बाद में लखनऊ में अम्मा और पिताजी के साथ रहने के दौरान मैने देखा कि नर्सें कितनी लगन और मेहनत से सेवा करती हैं। वह अगर डांटती भी हैं तो उसमें प्यार होता है। मेरी अम्मा बलरामपुर से हार्ट विभाग में लगभग 30-40 बार भर्ती हुईं। मै जब भी उन्हें लेकर जाता था तो नर्सें ही उनकी पहली तीमारदार होती थीं। मुझे कालेज जाना हो या बाद में आफिस जाना होता था, कोई और देखने वाला था नहीं, लेकिन मेरी गैरहाजिरी में नर्सें ही उनकी एक बेटी की तरह देखभाल करती थीं। अगर मुझे देर हो जाती थी तो डांटती भी थीं।

सिस्टरों का सहयोग

एक बार तो ऐसा अवसर आया कि पिताजी मेडिकल कालेज में भर्ती थे। अम्मा बलरामपुर अस्पताल में छोटी बहन भी बलरामपुर अस्पताल में और मेरी पत्नी डफरिन में। उस समय मैने बलरामपुर अस्पताल के अधीक्षक से कहा भी था कि सर मुझे एक वार्ड मेरी फैमिली के लिए दे दीजिए। मै तो पागल हुआ जा रहा हूं। उस समय भी नर्सें मेरी वफादार दोस्त साबित हुईं। मुझे हर तरफ से नर्सों की ओर से यही आश्वासन मिला यहां हम देख लेंगे तुम बाकी सब को देखो। मेरी अम्मा हाईपरटेंशन, शुगर और हार्ट की मरीज थीं। पिताजी डिप्रेशन और पार्किंसन के मरीज थे। पत्नी को डिलीवरी होनी थी। बहन को नर्वस ब्रेक डाउन हुआ था। अगर नर्सें और उनकी सेवाभावना मेरी मददगार न होती तो मै तो टूट ही जाता।

काम के बोझ के बीच सेवा भाव

अस्पतालों में बिताए लंबे वक्त में मैने देखा कि एक एक नर्स पर दो दो वार्ड की जिम्मेदारी आ जाती है। और नर्स फिरकी की तरह दौड़ती रहती है। जिस तीमारदार के मरीज के पास पहुंचने में देर हो जाए उसे यह लगता है कि नर्स ध्यान नहीं दे रही है। जबकि मरीज को दवा देने से लेकर उसकी पूरी देखभाल कर रही नर्स को कोई समझना नहीं चाहता। मरीज के साथ आए तीमारदार जो कि कुछ नहीं कर रहे होते हैं वह नर्स को इंसान मानने को तैयार नहीं होते हैं। सब उन्हें अपना खरीदा हुआ गुलाम समझते हैं।

नर्सों को इंसान के नजरिये से देखें

मैने यह भी देखा अस्पताल में जहां गंभीर रोगियों की थोड़ी थोड़ी देर में मौत हो रही है वहां पर यदि नर्स एक मरीज की मौत का शोक मनाने लगे तो वह जिंदा ही नहीं रह पाएगी। अम्मा के साथ अस्पताल में रहते हुए कई बार मैने जब अम्मा को खिलाने पिलाने के बाद खुद खाने के लिए टिफिन खोल कर जैसे ही पहला निवाला मुह में डाला बगल के बेड पर लेटे मरीज की सांसे थमनी शुरू हुईं नर्से डॉक्टर सब दौड़कर आए रोना पीटना मच गया लेकिन मरीज नहीं बचा। लेकिन मै खाना नहीं छोड़ सकता था। क्योंकि मुझे अपनी अम्मा की देखभाल करनी थी।

यही मैने नर्सों और ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों के साथ देखा। कई बार वह चाय छोड़कर भागते थे। अगर मरीज की डेथ हो गई तो उसके बाद आकर फिर चाय पीते थे। शायद इसे ही कहते हैं कि किसी के मरने जीने से जिंदगी नहीं रुकती। जब आम आदमी यह सोचकर मरीज को छूने से कतराता है कि कहीं हमें कोई बीमारी न लग जाए नर्सें पूरी लगन से सेवा करती हैं।

कभी मार्चरी के बारे में सोेचें

आपको थोड़ा विषयांतर लगेगा लेकिन अस्पताल से ही जुड़ा है एक विभाग पोस्टमार्टम का। जिस व्यक्ति के परिजन का पोस्टमार्टम होना होता है निसंदेह वह बहुत दुखी होता है। पोस्टमार्टम हाउस के पास से निकलने पर मुर्दों की सड़ांध में दो मिनट खड़ा होना मुश्किल होता है। लेकिन डॉक्टर वहां भी काम करते हैं।

कई बार परिजनों के पोस्टमार्टम के लिए मुझे पोस्टमार्टम हाउस जाना पड़ा। मैने देखा वहां डॉक्टर लोबान की गंध के बीच चाय भी पीते हैं बिस्कुट या बंद मख्खन भी खाते हैं। क्योंकि जो काम वह कर रहे हैं वह उनके जॉब का हिस्सा है। लेकिन जिंदगी फिर भी चलती रहती है।

नर्सों को समझने के लिए बदलें नजरिया

आज नर्सों का दिन है। मै फिर यही कहूंगा कि आप नर्सों का जितना दर्द, उनकी पीड़ा समझेंगे उतना उनके प्रति सम्मान बढ़ता जाएगा। आपका अपना बच्चा आपको जवाब देता है आप सुन लेते हैं नर्स भी तो आपकी बेटी हैं। उनकी सच्ची और खरी बात सुनकर समझनी चाहिए। उनको जितना आदर सम्मान देंगे उतना अपने पास और करीब पाएंगे।

अभी हाल का किस्सा है मेरा एक दोस्त बीमार पड़ गया। उसकी हालत ऐसी है कि बिस्तर पर ही लैट्रीन बाथरूम हो रहा है। उसकी मां ने मुझसे कहा कि बेटा अब मुझसे नहीं हो पा रहा था इसलिए उसे अस्पताल में भर्ती करा दिया है। आस्था अस्पताल में बुजुर्गों की देखभाल बहुत बेहतर होती है। वहां ठीक रहेगा। और ये देखभाल नर्से ही करती हैं। इसलिए नमन है सेवा और ममता की मूर्ति नर्सों और उनकी सेवा भावना को।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं



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राम केवी

राम केवी

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