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Road Safety: सुरक्षित सड़कें सुरक्षित हम
Road Safety: सड़कों की बदहाल स्थिति और अचानक आ जाते गहरे गड्ढों के कारण कोई दुर्घटना घटती है तो हम उस पर एक दिन बात करके इतिश्री कर लेते हैं क्योंकि वह घटना हमारे साथ नहीं घटी होती है।
Road Safety: 'सड़क को पैदल चलने वालों के लिए भी छोड़ोगे या नहीं या सब जगह ही सिर्फ गाड़ियां ही चलेंगी ' इस आवाज पर मैंने अपने दोपहिया पर बैठे-बैठे पीछे घूम कर देखा तो दो महिलाएं बहुत देर से सड़क पार करने की कोशिश कर रही थीं ।लेकिन गाड़ियां थीं कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। आखिरकार झुंझला कर एक महिला ने यह बोल ही दिया। उसने सही बात ही कही थी। सड़क पर वाहनों की इतनी अधिक भीड़ है कि उस पर पैदल चलने वाला व्यक्ति चल ही नहीं सकता है और तो और सड़क के दोनों किनारों पर बने फुटपाथ, जो कि पैदल चलने वाले राहगीरों के लिए ही बने होते हैं उन पर भी दो पहिया वाहन ट्रैफिक जाम से जल्दी निकालने के चक्कर में चढ़ा दिए जाते हैं।
एक तो हमारे देश में कोई भी फुटपाथ सीधा सपाट नहीं है उस पर चलने से लगता है कि कभी पहाड़ आए तो कभी खाई आई। कभी वह ऊंचा होता है और कभी वह नीचे को जाता है। फुटपाथ पर या तो दुकानदारों का सामान रखा होता है या रेहड़ी वाले अपनी दुकानें सजा लेते हैं। रही- सही कसर साइकिल और दोपहिया वाहनों की पार्किंग से पूरी हो जाती है। फिर भी अगर जगह बच रह गई तो उस पर ही लोग अपने दो पहिया वाहन या साइकिल को चढ़ा देते हैं।
आप घर से कहीं भी जाने के लिए निकल जाइए, आप देरी से ही पहुंचते हैं तो उसका कारण कभी रेलवे गेट का बंद होना या अधिक ट्रैफिक में फंस जाना होता है। यह अभी 2 दिन पुरानी ही बात है कि शहर में चक्का जाम था और जो रास्ता अमूमन लगभग 1 घंटे में तय कर पाते हैं, वह उस दिन मात्र 25 मिनट में ही पूरा हो गया। तब लगा की सड़कों पर भीड़ पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाहनों की अधिक होती है। क्योंकि आम जनता कहीं भी आने-जाने के लिए उन्हीं पर निर्भर होती है। अब हम ट्रैफिक के कारण देर होने पर बात नहीं करते हैं क्योंकि ट्रैफिक की इस तरह की स्थिति की जानकारी होने के बाद भी अगर हम देर से हैं तो यह ट्रैफिक की गलती नहीं बल्कि हमारी ही गलती कहलाई जाएगी और तो और हमने अब सड़कों की बदहाल स्थिति पर भी बात करना बंद कर दिया है।
हमने उसे अपनी जिंदगी के उस सच के रूप में स्वीकार कर लिया है जो कि हमारे साथ यूं ही चलता रहेगा। जब उन सड़कों की बदहाल स्थिति और अचानक आ जाते गहरे गड्ढों के कारण कोई दुर्घटना घटती है तो हम उस पर एक दिन बात करके इतिश्री कर लेते हैं क्योंकि वह घटना हमारे साथ नहीं घटी होती है। आजकल सड़कों पर गड्ढे और गड्ढों में सड़क जैसे मुद्दे तो एक हाशिए पर ही पड़े हैं क्योंकि ये मुद्दे सिर्फ चुनाव के समय ही याद आते हैं और चुनाव के समय ही इन सड़कों की बदहाल तबीयत सुधरती है। अभी इस हफ्ते ही देरगांव के निकट हुए भीषण ट्रक-बस हादसे में कितने ही लोगों की जान गई है। फिर भी क्या हम इस तरह की घटनाओं से सबक ले पाते हैं? क्या इस तरह की घटनाओं से सड़क पर परिवहन व्यवस्था में कुछ सुधार आता है? क्या इस तरह की घटनाएं किसी के मन में कोई डर पैदा करती हैं जब तक कि कोई खुद इस तरह की घटनाओं का भुक्तभोगी न हो। और दूसरी तरफ सड़क पर इतने अधिक वाहन हैं कि सड़क हादसों पर नियंत्रण करना भी एक बड़ी ही विषम स्थिति है।
आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2022 की रिपोर्ट बताती है कि देश में प्रत्येक घंटे में लगभग 19 लोग सड़क हादसों में अपनी जान गवाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि पूरे एक साल में लगभग 1.68 लाख लोग सड़क हादसों में अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। प्रदेशों की अलग-अलग अगर स्थिति देखें तो तमिलनाडु में सबसे अधिक सड़क हादसे होते हैं, जिसमें सर्वाधिक लोग अपनी जान गंवाते हैं। लगभग 64 हजार लोग इन सड़क हादसों में हर साल तमिलनाडु में अपनी जान गंवाते हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश का नंबर आता है, जहां पर हर साल लगभग 54 हजार लोग अपनी जान इन सड़क हादसों में गंवाते हैं। तीसरे नंबर पर आता है सर्वाधिक शिक्षित राज्य केरल, जहां पर हर साल 44 हजार लोग सड़क हादसों में अपने जान से हाथ धो बैठते हैं। आप जब घर से निकलते हैं, जब तक आप वापस घर सुरक्षित नहीं पहुंचते हैं, तब तक कोई नहीं जानता कि इन सड़क हादसों का कौन, कब, कहां और कैसे शिकार बन जाएगा।
गलती आपकी हो या नहीं हो यह अलग बात है। लेकिन देश की सड़क इतनी जानलेवा हो चुकी हैं कि वे चाहे अधूरी बनी हों, चाहे बिल्कुल नहीं बनी हो या फिर बहुत अच्छे फ्लाईओवर बने हों , सड़क हादसा आपका कहीं भी पीछा नहीं छोड़ता है। एक तरह का यह रोड टेररिज्म है जो कि छोटा को नहीं देखता है, बड़ा नहीं देखता है, महिला नहीं देखता है, पुरुष नहीं देखता है, उम्र नहीं देखता है, जाति नहीं देखता है। देखता है तो बस मौत। भारी वाहन चालकों से लेकर अन्य वाहन चालकों के लिए भी देश की सरकार द्वारा इस तरह के हादसों में दंड का प्रावधान किए जाने पर उन लोगों ने हड़ताल कर दी। भारी वाहन चालक अगर इस तरह की दुर्घटना के बाद वहां रुकते हैं तो उन्हें भीड़ द्वारा जान से मारे जाने की चिंता होती है और वे अगर भाग जाते हैं तो पुलिस के उन तक पहुंचने की संभावनाएं रहती हैं। ऐसे में इस तरह के दंड के प्रावधान से बचने के लिए पूरे देश के भारी वाहन चालकों ने अलग-अलग प्रदेशों में अपनी हड़ताल की और चक्का जाम किया।
सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट की माने तो सड़क हादसों के लिए शराब पीकर गाड़ी चलाना सबसे बड़ा जिम्मेदार कारण होता है। तेज और रैश ड्राइविंग दूसरा बड़ा कारण होता है सड़क हादसों के लिए। यह मानव जाति का मनोविज्ञान है कि उसे हमेशा ही तेज गति आकर्षित करती है और यही कारण बनते हैं सड़क हादसों के। आंकड़े बताते हैं कि 21 से 40 आयु वर्ग के पुरुष और 31 से 50 आयु वर्ग की महिलाएं तेज गति से हुए सड़क हादसों के लिए जिम्मेदार होते हैं। सड़क हादसों के लिए जिम्मेदार एक और बड़ा कारण होता है असावधान ड्राइविंग। ड्राइविंग करते समय मोबाइल पर ध्यान रहना, मोबाइल का प्रयोग करना और उस पर बात करना। लगभग 47 प्रतिशत लोग गाड़ी चलाते हुए फोन पर बात करते हैं।हेलमेट नहीं पहनना, रात के समय पूरी तरह से रोशनी न होने के कारण भी सड़क हादसे अधिक होते हैं। सड़क दुर्घटनाएं कई कारणों से होती है इसलिए जरूरी है कि केंद्र और राज्य सरकार इस समस्या पर एक साथ मिलकर काम करें।
सड़क मंत्रालय भी सड़क हादसों को रोकने के लिए कई तरीके अपनाता रहा है। सड़क के इंफ्रास्ट्रक्चर , वाहन मानकों, यातायात नियमों को लागू करने और दुर्घटना को रोकने के लिए कई पहलुओं पर मंत्रालय को काम करना चाहिए। मंत्रालय एक 4ई को लेकर प्लान तैयार कर रही है। जिसमें 4E का मतलब Education, Engineering (both roads and vehicles), Enforcement and Emergency Care है। बारिश के समय में वाहन की गति को कम करके भी दुर्घटनाओं को आसानी से टाला जा सकता है। वाहन हमेशा अच्छी स्थिति में रखना चाहिए । रक्षात्मक ड्राइविंग तकनीकों का पालन करना चाहिए। सीट बेल्ट अवश्य लगाएं और सुरक्षात्मक हेलमट पहने। हेलमेट स्वयं की सुरक्षा के लिए लगाएं न कि पुलिस से बचने के लिए। आधे हेलमेट और निम्न-गुणवत्ता वाले हेलमेट पहनना भी हादसों को निमंत्रण देना होता है। शहर में उपलब्ध सड़कों का बुनियादी ढांचा सीमित है और वाहनों की संख्या कई गुना बढ़ रही है। जो सड़क उपलब्ध भी है उसका भी ग़लत तरीके से उपयोग किया जा रहा है। देश की लगभग 60 प्रतिशत सड़कें संकरी हैं जिनके चौड़ीकरण की कोई गुंजाइश ही नहीं है।
वाहन योग्य जगह की कमी, पार्किंग की असुविधा और अतिक्रमण के कारण बड़ी संख्या में दुर्घटनाएं होती हैं। देश में फुटपाथों की खराब स्थिति और पैदल यात्रियों के लिए सुविधाओं की कमी भी जिम्मेदार होती है सड़क हादसों के लिए। जिस कारण पैदल चलने वालों को मजबूरन सड़कों का प्रयोग करना पड़ता है। अपनी सुरक्षा अपने हाथ। कोशिश करें कि खुद भी सुरक्षित ड्राइविंग करें और सड़क हादसों से बचें।
आने वाले सप्ताह में 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती यानी राष्ट्रीय युवा दिवस है। उनके उनके विचार के साथ आज के इस लेख का समापन करती हूं- 'शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।'
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)