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यूक्रेनः भारत की तटस्थता? वेद प्रताप वैदिक की विशेष प्रतिक्रिया

Russia Ukraine Crisis: सुरक्षा परिषद में अमेरिका ने रूस की निंदा का प्रस्ताव रखा, लेकिन उसे क्या यह पता नहीं था कि उसका प्रस्ताव औंधे मुंह गिर पड़ेगा?

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 27 Feb 2022 8:59 AM IST
Russia Ukraine war
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रूस ने यूक्रेन पर किया हमला (Social media)

Russia Ukraine Crisis : यूक्रेन को पानी पर चढ़ाकर अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्र अब उसके साथ झूठी सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं। सुरक्षा परिषद में अमेरिका ने रूस की निंदा का प्रस्ताव रखा लेकिन उसे क्या यह पता नहीं था कि उसका प्रस्ताव औंधे मुंह गिर पड़ेगा? अभी तो सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से 11 ने ही उसका समर्थन किया था ।

यदि पूरी सुरक्षा परिषद याने सभी 14 सदस्य भी उसका समर्थन कर देते तो भी वह प्रस्ताव गिर जाता, क्योंकि रूस तो उसका निषेध (वीटो) करता ही! वर्तमान अमेरिकी प्रस्ताव पर तीन राष्ट्रों— भारत, चीन और यू.ए.ई. ने परिवर्जन (एब्सटैन) किया याने वे तटस्थ रहे। इसका अर्थ क्या हुआ? यही कि ये तीनों राष्ट्र रूसी हमले का न समर्थन करते हैं और न ही विरोध करते हैं।

चीन ने अमेरिकी प्रस्ताव का विरोध नहीं किया, यह थोड़ा आश्चर्यजनक है, क्योंकि इस समय चीन तो अमेरिका का सबसे कड़क विरोधी राष्ट्र है। रूस तो उम्मीद कर रहा होगा कि कम से कम चीन तो अमेरिकी निंदा-प्रस्ताव का विरोध जरुर करेगा। जहां तक भारत का सवाल है, उसका रवैया उसके राष्ट्रहित के अनुकूल है। वह रूस-विरोधी प्रस्ताव का समर्थन कैसे करता? अमेरिका और नाटो राष्ट्रों के साथ बढ़ते हुए संबधों के बावजूद आज भी भारत को सबसे ज्यादा हथियार देनेवाला राष्ट्र रूस ही है।

रूस वह राष्ट्र है, जिसने शीतयुद्ध-काल में भारत का लगभग हर मुद्दे पर समर्थन किया है। गोवा और सिक्किम का भारत में विलय का सवाल हो, कश्मीर या बांग्लादेश का मुद्दा हो, परमाणु बम का मामला हो— रूस ने हमेशा खुलकर भारत का समर्थन किया है जबकि यूक्रेन ने संयुक्तराष्ट्र संघ में जब भी भारत से संबंधित कोई महत्वपूर्ण मामला आया, उसने भारत का विरोध किया है। चाहे परमाणु-परीक्षण का मामला हो, कश्मीर का हो या सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता का मामला हो, यूक्रेन ने भारत-विरोधी रवैया ही अपनाया है।

भारत ने उससे जब भी यूरेनियम खरीदने की पहल की, वह उसे किसी न किसी बहाने टाल गया। ऐसी हालत में भारत यूक्रेन को रूस के मुकाबले ज्यादा महत्व कैसे दे सकता था? उसने खुले-आम रूस का साथ नहीं दिया, यह अपने आप में काफी रहा। भारत ने मध्यस्थता का मौका खो दिया, यह उसकी मजबूरी थी, क्योंकि उसके पास कोई अनुभवी और अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से प्रतिष्ठित नेता या राजनयिक ही नहीं है लेकिन वह चाहता तो अपने 20 हजार छात्रों को युद्ध के पहले ही वहां से निकाल लाता। यदि उसके पास व्यावसायिक जहाज उपलब्ध नहीं हैं और उनका किराया बहुत ज्यादा है तो हमारी वायुसेना के जहाज क्या दूध दे रहे हैं? सरकार उन्हें सैकड़ों उड़ान भरने के लिए क्यों नहीं कहती?

कीव स्थित हमारे दूतावास की निश्चिंतता सचमुच आश्चर्यजनक है। मुझे नहीं लगता​ कि रूस का यह हमला कुछ घंटों में खत्म हो जाएगा। यह तब तक चलेगा, जब तक कीव में रूसपरस्त सरकार की स्थापना नहीं हो जाती। यदि वैसा हो गया तो अमेरिका के गले में नई फांस फंस जाएगी। अरबों-खरबों डालरों की मदद की जो घोषणाएं नाटो राष्ट्र अभी कर रहे हैं, क्या तब भी वह यूक्रेन को मिलती रहेगी? रूस पर प्रतिबंधों की घोषणाएं जरुर हो रही हैं लेकिन नाटो राष्ट्रों के लिए भी ये घोषणाएं दमघोंटू ही सिद्ध होंगी।

Ragini Sinha

Ragini Sinha

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