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Russia-Ukraine War: रुस का जालिम कमांडर यूक्रेन में तैनात

Russia-Ukraine War: खूंखार इस्लामी विद्रोही रहे रमाजान कार्डिरोव (ramadan kardirov) को कीव (Kyiv) में नियुक्त कर दिया। पैंतालीस-वर्षीय शिक्षित आतंकी रमाजान की तुलना इतिहास में जनरल मोहम्मद टिक्का खान (General Mohammad Tikka Khan) से की जाती है।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Shashi kant gautam
Published on: 15 March 2022 4:59 PM IST
Russia-Ukraine War: Russias bloodiest commander stationed in Ukraine
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रमाजान कार्डिरोव: Photo - Social Media

Russia-Ukraine War: यूक्रेन गणराज्य के सम्पूर्ण विध्वंस के मकसद से व्लादीमीर पुतिन (vladimir putin) ने कभी खूंखार इस्लामी विद्रोही रहे रमाजान कार्डिरोव (ramadan kardirov) को कीव (Kyiv) में नियुक्त कर दिया। पैंतालीस—वर्षीय शिक्षित आतंकी रमाजान की तुलना इतिहास में जनरल मोहम्मद टिक्का खान (General Mohammad Tikka Khan) से की जाती है। यह टिक्का खान बलूचिस्तान और बांग्लादेश का हत्यारा कहा जाता है।

हजारों निरीह, निर्दोष नागरिकों का वह संहारक रहा। कुछ लोग तुलना में बताते है कि चंगेज खान के पोते हलागु खान का यह रमाजान नया अवतार रहा। रमाजान अपने बागी पिता अहमद के साथ रुसी फौजों से अपने इस्लामी चेचेनियाकी स्वयात्तना के लिये सालों युद्धरत रहा। मगर बाद में अहमद ने पुतिन से संधि कर ली और चेचेनिया का राज्याध्यक्ष बन गया। इस्लामी बागियों ने अहमद की मई 2004 में हत्या कर दी। पुतिन ने तब उसके पुत्र रमाजान को राज्याध्यक्ष नामित किया।

रमाजान अपने पिता अहम की तरह कट्टर है

हालांकि उसका बड़ा भाई जालिम खान प्रबल दावेदार था। नवम्बर 2005 से आज तक रमाजान ने चेचेनिया की मुस्लिम प्रजा को खामोश और शांत करने का बीड़ा उठा रखा है। मजहबी असहमति दमित की है। पिता अहमद की भांति रमाजान भी चेचेनिया में शरियत के कट्टर नियमों का अनुपालन कराता है। विशेषकर महिलाओं पर। वह चेचेनिया में यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिद का निर्माण कर रहा है।

रमाजान को यूक्रेन (Ukraine) भेजे जाने का मतलब यह है कि पुतिन कीव को दूसरा ढाका (1971) बना देगा। राष्ट्रपति जेलेंस्की के शासन का दुर्दांत अन्त ही उसका लक्ष्य है। लेकिन राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की को विश्वास है कि यूक्रेन की जनता स्वाधीन ही रहेगी। उसकी आस्था का आधार है द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब सबसे क्रूरतम तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने भी यूक्रेन पर कब्जा कर लिया था। पोलेण्ड के बाद तब सोवियत प्रदेश यूक्रेन में नाजी जर्मन सेना घुस आयी थी। स्वयं एडोल्फ हिटलर 3 सितम्बर 1943 अधिकृत यूक्रेन में था। मगर फिर मित्र राष्ट्रों के सशस्त्र बलों ने नाजी सेना को खदेड़ दिया था। मगर तब तक हजारों यहूदी नरनारियों की लाशें बिछ गयीं थीं।

शांतिवार्ता का पांचवां चक्र भी आज निरर्थक रहा

अधुना, पुतिन के आक्रामक सैनिक शान्तिप्रिय नागरिकों के आवासों पर बमबारी तो कर रहे है। स्कूलों पर और अस्पतालों पर भी हमले कर रहे है। त्रासदी यह है कि अमानवीय रुसी आक्रमण का मूक साक्षी बना विश्व भी इस असमान युद्ध में यूक्रेन की निहत्थी जनता की रक्षा में कुछ भी नहीं कर पा रहा है। महाबली अमेरिका भी रुस से मुकाबला टालता रहा है। हिटलर के युद्ध में देर से सही ब्रिटेन, फ्रांस, बाद में अमेरिका युद्ध में खड़ा हुआ था। हिटलर हारा था। पुतिन तो बेखौफ, बेझिझक ही, रोज यूक्रेन पर हावी ही रहा है। एक सर्वभौम राष्ट्र यूक्रेन पर सैनिक हमला चालू है। उधर शांतिवार्ता का पांचवां चक्र भी आज निरर्थक रहा। कोई समाधान या उपाय नहीं निकला। युद्ध से दूर रहने वाली जनता के जानमाल की सुरक्षा तो होनी चाहिये।

भारत के हाथ बंधे है। कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र संघ में फंसा है। यदि भारत कोई पक्ष लेता है तो रुस अपने वीटो से भारत की मदद नहीं करेगा और पाकिस्तान की कश्मीर जनमत संग्रह वाली 1948 वाली मांग के लिये संयुक्त संघ जनमत करा देगा। तब? अर्थात भारत को प्रयास कर अब कोई सार्थक निर्णय लेकर यूक्रेन में अपना कर्तव्य निर्वाह करना है। न्याय—अन्याय के संग्राम में तटस्थ रहने वाले को इतिहास दण्ड देता है।



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Shashi kant gautam

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