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East India Company History: सदियों से राज करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी का कैसे हुआ अंत

East India Company History: एक समय था ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार तो छोड़िए कई बड़े-बड़े देशों में सरकारें चलाने का काम कर रही थी। क्या रेल और क्या जहाज ,सब कंपनी का ही हुआ करता था ।2 लाख 60 सैनिक थे इनकी सेना में ।

AKshita Pidiha
Published on: 14 Nov 2024 9:05 PM IST
East India Company History
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East India Company History

East India Company History: समय ने बड़े-बड़े बादशाहों को पटखनी दी है। चाहे दुनिया जीतने वाला सिकंदर महान ही क्यों ना हो ।कुछ ऐसे ही हुआ ईस्ट कंपनी के साथ भी ।एक समय था ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार तो छोड़िए कई बड़े-बड़े देशों में सरकारें चलाने का काम कर रही थी। क्या रेल और क्या जहाज ,सब कंपनी का ही हुआ करता था ।2 लाख 60 सैनिक थे इनकी सेना में । यानी ब्रिट्रेन की सेना से भी दो गुने और रेवेन्यू की बात को पूछिए मत ,खजाने भर रखे थे लूट लूट कर।लेकिन फिर एक आंधी आई और ईस्ट इंडिया कंपनी की जड़ें हिलाकर रख दी।देखते ही देखते कंपनी बर्बाद हो गयी।कहते हैं ब्रिटिश राज में कभी सूरज नहीं डूबता था । लेकिन उसी दिन खुद ईस्ट इंडिया कंपनी का सूरज डूब गया।उसे एक भारतीय ने ही घुटनों पर ला दिया था लेकिन आखिर क्या हुआ था उसके साथ कैसे दुनिया के बड़े-बड़े देशों पर राज करने वाली कंपनी रातों-रात बर्बाद हो गई और आज इसके क्या हालत है।इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए हमें इतिहास को थोड़ा पलटना होगा कि कैसे ईस्ट इंडिया का राज हुआ खाक।



कैसे हुआ बंगाल पर कब्जा

अतीत में चलते हैं जब 1765 में मुग़ल सम्राट शाह आलम ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल रॉबर्ट क्लाइव के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे थे ।इसके बाद बंगाल, बिहार और उड़ीसा के रेवेन्यू पर मुगलों की जगह ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार हो गया और यही वह पल था जब कंपनी ने कपड़ों व मसालों के कारोबार से आगे निकलकर कुछ ऐसा करना शुरू किया जो ना पहले कभी हुआ था और ना ही कभी किसी ने सोचा था जिसका रिजल्ट यह निकला कि अगले कुछ सालों में कंपनी के 250 क्लर्क ने सिर्फ 20000 भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर पूरे बंगाल पर कब्जा कर लिया और अगले 50 सालों में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना 2.50 लाख से ज्यादा की हो गयी।


इसने पूरे भारतीय सबकॉन्टिनेंट को अपनी कॉलोनी बना लिया तब नारायण सिंह नाम के एक मुगल अधिकारी ने शाह आलम के साथ हुए समझौते के बाद कहा था कि अब क्या इज्जत रह गई जब ऐसे ऐसे अंग्रेज अधिकारी के आदेश को मानना पड़ेगा जिन्हें अब तक ठीक से बोलना भी नहीं आया ।देखिए अक्सर हम कहते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने भारत को गुलाम बनाया । लेकिन सच तो यह है कि कुछ घुमंतू व्यापारियों की एक प्राइवेट कंपनी ने भारत को गुलाम बनाया था ।वह कंपनी जो ब्रिटेन में पैदा हुई थी।


भारत एक सोने की चिड़िया

अब हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसे समझने के लिए जरा 1600 ई. पर गौर कीजिए। जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था और कहा भी क्यों ना जाये पूरी दुनिया के कुल प्रोडक्शन का 25% माल अकेला भारत पैदा करता था ।उस वक्त दिल्ली के तख्त पर मुगल बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की हुकूमत थी। वह दुनिया के सबसे दौलतमंद बादशाहों में से एक था और लोमड़ी की तरह तेज भी। तब देश इकोनामिक रूप से इतना समृद्ध था कि दूर दराज की दुनिया से लोग भारत को देखने आते थे। ठीक इसी वक्त ब्रिटेन में क्वीन एलिजाबेथ फर्स्ट का शासन था और वह सिविल वॉर से अपने आप को ठीक कर रहा था। उसकी इकोनामी खेतीबाड़ी पर डिपेंड थी ।यह दुनिया के कुल प्रोडक्शन का महज 3 फ़ीसदी माल ही तैयार कर पाता था। उस वक्त यूरोप की पुर्तगाल और स्पेन जैसी प्रमुख शक्तियां व्यापार में ब्रिटेन को पीछे छोड़ चुकी थीं।


कैसी हुई एस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना, कौन था रॉयल फिश

व्यापार के रूप में तो ब्रिटेन के समुद्री लुटेरे पुर्तगाल और स्पेन के व्यापारिक जहाजों को लूटकर ही सेटिस्फाइड हो जाते थे। तभी घुमंतू ब्रितानी व्यापारी रॉयल फिश को इंडियन ओशन मेसोपोटामिया पर्शियन गल्फ और साउथ ईस्ट एशिया की बिजनेस स्क्रिप्ट करते हुए भारत की समृद्धि के बारे में पता चलता है ।ऐसे में रॉयल फिश ने भारत की यात्रा की । उससे मिली इनफॉरमेशन के बेसिस पर गेम्स लांचेस्टर ने ब्रिटेन के 200 रूल्स कदार व्यापारियों को एकजुट किया और 31 दिसंबर, 1600 को एक नई कंपनी बनाई ।जिसका नाम पड़ा ईस्ट इंडिया कंपनी। इस कंपनी को ब्रिटेन की महारानी से ईस्ट एशिया में व्यापार का एकाधिकार प्राप्त हुआ ।


भारत मे जहाँगीर का राज

इधर भारत में 1605 ईस्वी में मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु हो चुकी थी ।अब उनकी जगह पर जहांगीर तख्त पर बैठे थे।अकबर ने अपने शहजादे जहांगीर के लिए 5000 हाथी ,12000 घोड़े ,1000 चीते, 10 करोड रुपए बड़ी अशर्फियां में 100 तोले से लेकर 500 तोले तक की हजार अशरफिया ,200 मन कच्चा सोना ,370 मन चांदी, 3 करोड रुपए केजवारत अपने पीछे छोड़े थे। उस दौर में संपत्ति के मामले में केवल चीन का मिंग राजवंशी बादशाह अकबर की बराबरी कर सकता था।


एक जहाज के लूट ने कैसे ईस्ट इंडिया को कर दिया मालामाल

अब इन सब के बीच 1608 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी के कप्तान विलियम हॉकिंस ने पहली बार भारत के सूरत बंदरगाह पर कदम रखा ।वहीं ब्रिटेन के बिजनेस कंपीटीटर डच और पुर्तगाली पहले से ही हिंद महासागर में मौजूद थे। तब किसी ने अनुमान भी नहीं लगाया होगा कि यह कंपनी अपने ही देश से 20 गुना बड़े दुनिया के सबसे धनी देशों में से एक और उसकी लगभग 2 5 फ़ीसदी आबादी पर डायरेक्टली रूल करने वाली थी ।इस कंपनी के हाथ पहली सफलता तब लगी जब उसने पुर्तगाल का एक जहाज लूटा जो भारत से मसाले भर कर ले जा रहा था। ईस्ट इंडिया कंपनी को उसे लूट में 900 टन मसाले मिले।इसे बेचकर कंपनी ने जबरदस्त मुनाफा कमाया।यह पहली चार्टेड ज्वाइंट स्टॉक कंपनियों में से एक थी ।आसान शब्दों में कहें तो अभी की शेयर मार्केट कम्पनियों की तरह कोई भी इन्वेस्टर उसका हिस्सेदार बन सकता था ।इसलिए लूट की कमाई का हिस्सा कंपनी के इन्वेस्टर्स को भी मिला ।


लूटपाट से किए गए पहले व्यापार में ईस्ट इंडिया कंपनी को करीब 300 परसेंट का जबरदस्त मुनाफा हुआ ।वहीं इस दौरान कंपनी को यह भी समझ आ चुका था कि भारत में टिकना है तो उसे मुगल बादशाह की इजाजत के साथ-साथ सपोर्ट की भी जरूरत पड़ेगी । क्योंकि वह जानते थे कि मुगलों की विशाल सेना के साथ डायरेक्टली युद्ध करने से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा।इसलिए विलियम हाकिन्स 1609 में मुगल राजधानी आगरा पहुंचा और व्यापार की परमिशन मांगी ।गुजरात में पुर्तगाली पहले से ही मुगल बादशाह के साथ में कारोबार कर रहे थे जिन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया ।पुर्तगालियों के विरोध की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी को शुरुआत में व्यापार करने की परमिशन नहीं मिली।

कैसे हुआ पहली बार समझौता

विरोध के बाद कंपनी ने थॉमस रो को भारत भेजा वह 1615 में मुगल राजधानी आगरा पहुंचे। सिर्फ 605 सालाना की तनख्वाह के बदले कारोबार बढ़ाने का जिम्मा था। थॉमस रो ने जैसे तैसे जहांगीर को कीमती उपहार और अपनी बातचीत से इंप्रेस कर दिया था। इसके बाद जहांगीर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ एक व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर किया। समझौते के तहत कंपनी और ब्रिटेन के सभी व्यापारियों को खरीदने और बेचने के लिए सबकॉन्टिनेंट के हर बंदरगाह के इस्तेमाल की इजाजत दी गयी।बदले में ब्रिटेन ने यूरोपियन समान को भारत मे देने को कहा। लेकिन तब वहां बनता ही क्या था। इसके बाद कंपनी के कारोबार और भारत में ब्रिटिश फौज लाने का रास्ता साफ हो गया ।शुरुआत में कंपनी चांदी के बदले भारत से चाय, मसाले, रेशम कपास,कपड़ा और खनिज ले जाती थी और उसे बेच कर बड़ा मुनाफा कमाती थी।कंपनी जो भी चीज खरीदती उसका मूल्य चांदी देकर चुका थी। जो उसने 1621 से लेकर 1843 तक स्पेन और संयुक्त राज्य अमेरिका में दासों को बेचकर जमा किया था। पांच दशक तक ऐसा चलता रहा । लेकिन वह अकेले ऐसे नहीं थे जो चांदी के बदले सोना कमा रहे थे।


ब्रिट्रेन ने इस्टइंडिया को हटाया और भारत को पूरा कब्जे में किया

ईस्ट इंडिया कंपनी के कंपीटीटर के रूप में पुर्तगाली और फ्रांसीसी भी भारत में आ कर बैठे थे। यही बात ब्रिटेन के गले से नीचे नहीं उतर पा रही थी। ऐसे में इस कंपटीशन को कम करने के लिए 1670 में सम्राट चार्ल्स सेकंड में ईस्ट इंडिया कंपनी को विदेश में जंग लड़ने और कॉलोनी बनाने का अधिकार दे दिया और यह कंपनी के लिए एक अहम फैसला साबित हुआ कंपनी ने अपनी कंपीटीटर को हराकर बंगाल के कई क्षेत्रों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया। 1686 में तो ब्रिटेन से सेना बुलाकर वह मुगलों से भी भिड़ गए।जिसमे ब्रिटेन की हार हुई जिसके बाद औरंगजेब ने ईस्ट इंडिया कंपनी के तमाम फैक्ट्री आउटलेट की घेराबंदी करवा दी। तब ब्रिटिश सरकार ने अपने अधिकारियों को भेज कर औरंगजेब से माफी मांगी। इसके बाद ही उन्हें वापस बिजनेस की इजाजत मिल सकी।लेकिन 1707 में औरंगजेब के निधन के बाद सारा गेम ही पलट गया ।


प्लासी का युद्ध औरजाफर का धोखा

सभी नवाब अपनी अपनी ताकत दिखाने लगे । ईस्ट इंडिया कंपनी एक नवाब के खिलाफ दूसरे की मदद करने लगी और अपनी ताकत बढ़ाती रही ।कंपनी इन सरकमस्टेंसस का फायदा उठाते हुए लाखों की संख्या में स्थानीय लोगों को सेना में भर्ती करना शुरू कर दिया ।जिसने प्लासी की जंग को जन्म दिया ।दरअसल बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिक बढ़ने से जिसके चलते 23 जून 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी और सिराजुद्दौला के बीच जंग हुई।


नवाब के सेनापति मीर जाफर ईस्ट इंडिया कंपनी से मिले हुए थे जिसे नवाब बनने की बहुत चाहत थी.मीर जाफर की धोखाधड़ी की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी के महज 3000 सैनिकों से नवाब की सेना हथियारों ,तोपों ,मशीनों और रुपए से लैस सेनाहार गई ।इसके बाद मीर जाफ़र को बंगाल की गाड़ी मिलती है लेकिन उसकी कमान अंग्रेजों के हाथ में थी। मीर जाफर ने कंपनी से पीछा छुड़ाने के लिए डच सेना की मदद ली लेकिन हार गयी ।बंगाल के टैक्स कलेक्शन की कमान ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चली गई।तब बंगाल में आज का पश्चिम बंगाल ,बिहार और उड़ीसा शामिल थे इसकी राजधानी मुर्शिदाबाद थी जो तब लंदन से भी अच्छा हुआ करता था।इस कंपनी का बिज़नेस मॉडल बदल गया।जो कंपनी मुनाफे के लिए व्यापार करती थी उसका पूरा फोकस टैक्स कलेक्शन पर हो गया।

बंगाल की कमान कम्पनी को

1784 में ब्रिटिश संसद ने इंडिया एक्ट पारित कर दिया जिसके बाद भारत की धरती पर ब्रिटिश साम्राज्य का शासन हो गया मैं जब कंपनी को लगने लगा की कठपुतली नवाब अब काम नहीं आएंगे तो उसने मीर जाफ़र की मौत के बाद बंगाल को डायरेक्ट अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद मुगल सम्राट ने कंपनी को बंगाल का दीवान बना दिया ।


ईस्ट इंडिया कम्पनी का विलय और अंत

अंग्रेजों ने सतारा,संबलपुर, उदयपुर ,नागपुर और झांसी पर कब्जा जमा लिया।जिसने 1857 की क्रांति को जन्म दिया।ब्रिटेन में ईस्ट इंडिया कंपनी की मोनोपोली पर सवाल 19वीं सदी की शुरुआत से ही उठ रहे थे।जिसके चलते ब्रिटिश संसद ने 1813 में ही दूसरी कंपनियों के लिए भारत में व्यापार करने के रास्ते खोल दिए थे। अब इसके बाद 1833 में ब्रिटिश सरकार ने कंपनी से व्यापार का अधिकार छीन कर उसे एक सरकारी कॉर्पोरेशन में बदल दिया।1857 की क्रांति को इस कॉरपोरेशन और उसकी नाकामी को ही जिम्मेदार माना गया। जिसके बाद ब्रिटेन के महारानी ने इस कंपनी के सभी अधिकारों को खत्म कर दिया और वह भारत पर सीधा शासन करने लगी कंपनी के करीब 2.50 लाख की सेना का ब्रिटिश सेना में विलय कर दिया गया और आखिरकार भारत को करीब एक सदी तक गुलाम बनाकर रखने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी को 1874 में भंग कर दिया जाता है ।


वर्तमान में भारतीय के हाथ में कम्पनी

भारत को गुलाम बनाने वाली इस ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक और अब भारतीय मूल के बिजनेसमैन संजीव मेहता है। संजीव मेहता ने इसे 2010 में 15 मिलियन डॉलर यानी ₹120 करोड रुपए में खरीद लिया था।अब यह भारतीय के इशारों पर काम करती है। मेहता ने ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीदने के बाद इसे ई-कॉमर्स प्लेटफार्म बना दिया अभी यह कंपनी चाय ,कॉफी,चॉकलेट आदि की ऑनलाइन सेल्स करती है ।

( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।)



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Shalini Rai

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