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बूझें जरा चुनावी पहेली, अखिलेश की !

यहां प्रसंग अखिलेश यादव का है। कल (1 नवम्बर 2021) दिल्ली से लखनऊ यात्रा पर ''विस्तारा वायु सेवा'' के जहाज की सीट पांच—सी (उड़ान यूके/641 : अमौसी आगमन : दो बजकर 50 मिनट पर) मैं बैठा था।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Divyanshu Rao
Published on: 2 Nov 2021 7:50 PM IST
बूझें जरा चुनावी पहेली, अखिलेश की !
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अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया (फोटोः आशुतोष त्रिपाठी) 

Akhilesh Yadav: यदि राजनेता फरमाये ''हॉं'', तो समझिये ''शायद''। अगर कहें : ''शायद'', तो मतलब है ''ना''। वह राजनेता ही नहीं है जो पहली दफा ही कह डाले ''ना''। ठीक उलटी है महिला की बात। यदि वह कहे ''ना'', तो भांप लीजिये ''शायद''। अगर कहे ''शायद'' तो समझिये ''हॉं''। वह नारी ही नहीं है जो सीधे ''हॉं'' बोल दे । अर्थात नेताजी वायु तत्व को भी ठोस पदार्थ बना देंगे। अपनी आधी सदी की पत्रकारिता में मेरी ऐसी ही प्रतीति रहीं।

यहां प्रसंग अखिलेश यादव का है। कल (1 नवम्बर 2021) दिल्ली से लखनऊ यात्रा पर ''विस्तारा वायु सेवा'' के जहाज की सीट पांच—सी (उड़ान यूके/641 : अमौसी आगमन : दो बजकर 50 मिनट पर) मैं बैठा था। अखिलेश यादव आगे वाली सीट पर सहयात्री थे। कुशल क्षेम पूछा। तब तक मेरे मोबाईल (9415000909) पर खबर कौंधी कि : ''अखिलेश यादव का ऐलान है कि वे यूपी विधानसभा निर्वाचन के प्रत्याशी नहीं बनेंगे?'' दोबारा उठकर उनसे पुष्टि करने गया कि क्या यह खबर सच है? उनका उत्तर था : ''ऐसा नहीं कहा।'' तो पत्रकार के नाते मैंने पूछा कि खण्डन करेंगे? क्योंकि मेरा मानना था कि इतिहास गवाह है कि सेनापति हरावल दस्ते में न हो, तो सेना (पार्टी) हार सकती है। कल शाम को ही एंकर शिल्पा तोमर ने बहस (जनतंत्र टीवी न्यूज चैनल) पर ''सबसे बड़ा अखाड़ा'' में इसी विषय पर बहस रखी थी।

सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह पार्टी प्रवक्ता थे। वे भी बोले कि ''पार्टी का फैसला होना है।'' बहस में पहला वक्ता मैं था। अत: मैंने हवाई जहाज में हुये संवाद का ब्यौरा दिया। फिर आज सुबह सपा नेता और एमर्जेंसी में मेरे जेल के साथी राजेंद्र चौधरी से पूछा ? वे स्पष्ट बोले : ''चुनाव न लड़ने की कोई बात अखिलेश ने नहीं कही। केवल यही बताया था कि पार्टी ही निर्णय लेगी।'' (इंडियन एक्सप्रेस : 2 नवम्बर 2021, तृतीय पृष्ठ : कालम दो से पांच) : पर चौधरी का वक्तव्य था कि अखिलेश ने पीटीआई से कतई नहीं कहा कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे।''

अब मेरी एमए (लखनऊ विश्वविद्यालय, 1960) की पढ़ाई काम आ गयी। फ्रेंच राष्ट्रपति (1962) चार्ल्स दगाल पर की गयी दार्शनिक टिप्पणी याद किया। ''राजनेता अचंभित हो जाता है जब उसकी बात को श्रोता जस का तस सच मान बैठता है।'' शेक्सपियर की तो बड़ी सटीक उक्ति थी कि ''राजनेता तो ईश्वर को भी दरकिनार कर जाता है।'' वस्तुत: ''जननायक अगली पीढ़ी की सोचता है। राजनेता आगामी निर्वाचन की''। अर्थात पार्टी की ईमानदारी, पार्टी की आवश्यकतायें निर्धारित करती है। एक अवधारणा मेरे तथा अखिलेश के प्रणेता राममनोहर लोहिया ने प्रतिस्थापित की थी कि राजनीति विधानसभा और संसद भवन के आगे भी होती है।

अखिलेश यादव की तस्वीर (फोटो:न्यूज़ट्रैक)

अब आयें उस छपे, विवेकहीन प्रेस वक्तव्य पर जो आज प्रकाशित हुआ है। वह प्रात: सत्रह दैनिकों में था जो मैं नित्य बांचता हूं। छह अंग्रेजी : मेरा पुराना अखबार टाइम्स आफ इंडिया, दि हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस, पायोनियर, हिन्दुस्तान टाइम्स तथा दि स्टेट्समैन तथा नौ हिंदी दैनिक में प्र​काशित रपट थी कि अखिलेश यादव ने हरदोई में परसों कहा था : ''पटेल, गांधी, नेहरु, डा. अंबेडकर और जिन्ना सभी एक साथ भारत की आजादी के लिये लड़े थे (अमर उजाला : तृतीय पृष्ठ: लीड स्टोरी: दो से पांच कालम : 2 नवम्बर 2021)। यदि अखिलेश यादव ने डा. राममनोहर लोहिया की मशहूर पुस्तक ''गिल्टी मैन आफ इंडियास पार्टीशन'' (भारत के विभाजन के दोषी जन) पढ़ी होती तो सपने में भी वे भूलकर जिन्ना को बापू के साथ जोड़ने की गलती, बल्कि गुनाह कभी न कर बैठते। परेशानी का सबब यह है कि राजनेता अपने जन्म के पहले छपी किताबें पढ़ता नहीं है। राहुल तथा प्रियंका तो इतनी जहमत भी नहीं उठाते।

अखिलेश को तनिक को बताता चलूं कि मोहम्मद अली जिन्ना खूनी था, जल्लाद भी। उसके निर्देश पर 14 अगस्त 1946 के दिन कोलकता में हजारों हिन्दुओं की लाशों से मुसलमानों ने शहर पाट दिया था। अनगिनत बांग्ला रमणियों का बलात्कार किया था। घर जलाये थे, सो दीगर! पश्चिम पंजाब में अलग से मारा। तो यही जिन्ना था जिसके दादा पूंजाभाई जीणा एक गुजराती मछुआरे थे। शाकाहारी काठियावाडी हिन्दुओं ने उनका कारोबार खत्म करा दिया था, तो नाराजगी में उन्होंने कलमा पढ़ लिया। जिन्ना खुद खोजा (शिया) मुसलमान था, पारसी बीवी लाया था। शूकर मांस उन का बड़ा पंसदीदा खाद्य था। कभी न मस्जिद गया, न नमाज अता की। कुरान तो पढ़ी ही नहीं। एक और बात अखिलेश को ज्ञात हो कि जब राष्ट्रभक्त निहत्थे सत्याग्रहियों को ब्रिटिश पुलिस गोलियों से भून रही थी तो डा. भीमराव रामजी आंबेडकर अंग्रेज वायसराय की सरकार के श्रम मंत्री थे। साम्राज्यवादी जुल्मों के मूक दर्शक रहे।

Divyanshu Rao

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