×

Sant Ravidas Jayanti: समाजवाद के प्रेरक संत रविदास

Sant Ravidas Jayanti: महर्षि रविदास ही कवि रैदास हैं जो उस राम के भक्त हैं जो दीनदयाल अर्थात गरीबों के रक्षक और मददगार हैं।

Deepak Mishra
Written By Deepak Mishra
Published on: 13 Feb 2025 2:54 PM IST
Sant Ravidas Jayanti Special News
X

Sant Ravidas Jayanti Special News

Sant Ravidas Jayanti News: संत रविदास एक शाश्वत संत, साहित्यकार और बेहतर दुनिया के स्वप्नदृष्टा थे । उन्होंने शोषण विहीन समता मूलक विभेद विहीन समाज का सपना देखते हुए बेगमपुरा की कल्पना की थी । बेगमपुरा का मतलब वह पुर , नगर या स्थान जहां दुःख अथवा ग़म न हो, इसकी संकल्पना बहुत हद तक तुलसीदास परिकल्पित रामराज्य जैसी है ।

सरकार उनकी जयंती पर छुट्टी दे, या न दे, पर उनके सपनों के अनुरूप समाज बनाने की दिशा में आगे बढ़े जो केवल समाजवाद से संभव है । उन्होंने वंचितों के लिए जो सोचा था, उस सोच के अनुरूप नीतियां बनाए , तब तो जयंती मनाने का अर्थ है ।

महर्षि रविदास ही कवि रैदास हैं जो उस राम के भक्त हैं जो दीनदयाल अर्थात गरीबों के रक्षक और मददगार हैं।

तुमहु दयाल कृपाल करुणानिधि,

तुम्हहि दीनबंधु रघुराई

चरन सरन रैदास रावरी

आपनो जान लेहु उन राई

यद्यपि रैदास के राम अनादि और अनूप हैं,

अगत विगत अनादि अनूपा,

विश्व बिआपक ब्रह्म अरूपा

रैदास जपै राम क नामा

मोहिं जमि सिउ नहीं कामा

रैदास के राम विश्व व्यापी और अरूप भी हैं , वे राम को अट्टालिकाओं और मंदिरों की चौहद्दी में कैद करने के खिलाफ थे । वे कृष्ण के कथन समम् सर्वेषु भूतेषु तिष्ठंति परमेश्वरम् और इसमें निहित भाव का सरलीकरण कर बतलाते हैं कि

जयाहां देखो वहां चाम ही चाम

चाम के मंदिर बोलत राम

कहत रैदास सुनी कबीर भाई

चाम बिना देह किसकी बनाई

हमारे देह और देह में स्थित हृदय में राम रमें हैं । रैदास की मानें तो किसी भी देहधारी को दुख पहुंचाने वालों को रामभक्ति का अधिकार नहीं है । रैदास और कबीर समकालीन थे । दोनों ने जहां बैठ कर चर्चा चिंतन किया है , मुझे उस जगह जाने और उस वृक्ष के चरण छूने का सौभाग्य मिला है ।

रैदास के काल तक वर्ण व्यस्था का स्थान जातिवाद ने ले लिया था । रविदास संत थे , अपनी दिव्यदृष्टि से जान लिया था कि समाज के लिए जड़ जातिवाद बेहद खतरनाक है । उन्होंने स्पष्टतः लिखा है कि जब तक जातिवाद नहीं जाएगा तब तक मनुष्य एक नहीं होगा । संत शिरोमणि के पावन शब्दों मे-

जाति - जाति में जाति हैं, ज्यों केतन के पात

रैदास मनुष न जुड़ सके, जब तक , जाति न जात

रैदास के इसी भाव से प्रेरित हो राममनोहर लोहिया ने जाति तोड़ो अभियान चलाया था ।

राम हों , रैदास हों या हों राममनोहर सबै सयाने एक मत,चले एक पथपर

भीमराव आंबेडकर ने भी जाति प्रथा के उन्मूलन में जातिवाद को सामाजिक जहर बताया था, दुर्भाग्य है कि रैदास, लोहिया और बाबा साहब का नाम लेने वाले लोग भी जाने अनजाने जातिवाद के जहर को और अधिक जहरीला बनाने के पाप में शमिल हैं ।

समाजवाद हर तरह की विषमता , विभेद और विडंबनाओं के विरुद्ध एक अहिंसक युद्ध का सिंहनाद करता है । बकौल रैदास

विसम विसद विहंडकारी

असरन सरन सरनि भौहारी

यह पंक्तियां उन्हें समाजवाद का प्रवर्तक और प्रेरक पुरुष दर्शाने के लिए काफी हैं । रैदास की पंथनिरपेक्षता कबीर सी थी ।

बकौल रविदास

कृष्न करीम राम हरि राघव

जब तक एक न पेखा

वेद कतेब कुरान पुरानन

सहज एक हीं देखा

( लेखक वरिष्ठ समाजवादी चिंतक हैं।)



Admin 2

Admin 2

Next Story