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भगवा वेश में सन्यासी योद्धा थर थर कांपते थे बड़े बड़े सूरमा

राम केवी
Published on: 18 Feb 2020 11:26 AM GMT
भगवा वेश में सन्यासी योद्धा थर थर कांपते थे बड़े बड़े सूरमा
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रामकृष्ण वाजपेयी

स्वामी दयानंद सरस्वती की आज जयंती है क्योंकि फाल्गुन मास की दशमी तिथि को इस भगवा वेशधारी इस संन्यासी योद्धा का जन्म हुआ था, हालांकि उनकी जन्मतिथि या जयंती 12 फरवरी को भी मनाई जाती है। इसका कारण है अंग्रेजी महीने की तारीख के हिसाब से देखेंगे तो स्वामी दयानंद सरस्वती की जन्म तिथि 12 फरवरी आएगी, लेकिन हिंदू पंचांग के हिसाब से या हिंदू कैलेंडर के हिसाब से देखा जाएगा तो स्वामी दयानंद सरस्वती की जन्मतिथि फाल्गुन मास की दशमी तिथि है, इस लिए आज स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म दिन है।

स्वामी दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक या प्रवर्तक कहे जा सकते हैं वह महान देशभक्त थे और आधुनिक भारत के महान चिंतक थे। स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को गुजरात के टंकारा में हुआ था।

दयानंद सरस्वती के पिता का नाम करसन जी लाल तिवारी और मां का नाम यशोदा भाई था। उनके पिता एक कर कलेक्टर होने के नाते समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे। दयानंद का जन्म चूंकि मूल नक्षत्र में हुआ था इसलिए इनका नाम मूल शंकर रखा गया। इन का प्रारंभिक जीवन बहुत आराम से बीता, आगे चलकर उन्होंने संस्कृत वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन किया।

बचपन में शिवरात्रि के दिन दयानंद ने शिवरात्रि के दिन शिवजी के भोग को रखे लड्डू को चूहों को खाते देखा। यह देख कर उनको सोच हुआ कि जो ईश्वर स्वयं को चढ़ाए गए प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकता वह मानवता की रक्षा क्या करेगा। उन्होंने अपने पिता से बहस की और तर्क दिया कि ऐसे असहाय ईश्वर की उपासना नहीं करनी चाहिए और इसके बाद स्वामी दयानंद ने सिर्फ हिंदू ही नहीं ईसाई और इस्लाम धर्म में फैली बुराइयों का भी कड़ा खंडन किया।

हिन्दी के अप्रतिम प्रचारक

दयानंद सरस्वती ने वेदों का प्रचार करने और उसकी महत्ता बताने के लिए देशभर में लोगों से संपर्क किया। स्वामी दयानंद सरस्वती हिंदी भाषा के प्रचारक थे उनकी इच्छा थी कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे देश की एक भाषा भाषा रहे।

10 अप्रैल 1875 को मुंबई के गिरगांव में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की जिसका आदर्श वाक्य है कृण्वन्तो विश्वमार्यम् - अर्थात सारे संसार को श्रेष्ठ मानव बनाओ इसका उद्देश्य शारीरिक आत्मिक और सामाजिक उन्नति बताया।

आर्य समाज ने कई स्वतंत्र संग्राम सेनानी पैदा किए, आजादी से पहले आर्य समाज को क्रांतिकारियों का संगठन भी कहा जाता था स्वामी दयानंद सरस्वती ने स्वराज का नारा दिया था जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया।

स्वामी जी ने अपने उपदेशों के जरिए देश प्रेम और और स्वतंत्रता के लिए मर मिटने की भावना पैदा की। दयानंद सरस्वती ने सामाजिक कुरीतियों का कड़ा प्रतिवाद किया उन्होंने बाल विवाह सती प्रथा जैसी कुरीतियों को दूर करने में खास योगदान दिया। वह निर्भय होकर समाज में व्याप्त बुराइयों से लड़ते रहे। उनके अन्तिम शब्द थे - "प्रभु! तूने अच्छी लीला की। आपकी इच्छा पूर्ण हो।"

राम केवी

राम केवी

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