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Sawan Aur Shiva: सावन यानी शिव को रिझाने का समय

Sawan Aur Shiva: सावन का पहला सोमवार बीती 10 जुलाई को पूरी आस्था के साथ मनाया गया। देशभर के शिवालयों में सुबह चार बजे से बारह बजे रात्रि तक तमाम भक्त आते रहे। सूरज की पहली किरण फूटने से पहले ही भक्तों का तांता मंदिरों में लग गया था।

RK Sinha
Published on: 13 July 2023 6:21 PM GMT
Sawan Aur Shiva: सावन यानी शिव को रिझाने का समय
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सावन है भगवान शिव का महीना: Photo- Social Media

Sawan Aur Shiva: सावन का पहला सोमवार बीती 10 जुलाई को पूरी आस्था के साथ मनाया गया। देशभर के शिवालयों में सुबह चार बजे से बारह बजे रात्रि तक तमाम भक्त आते रहे। सूरज की पहली किरण फूटने से पहले ही भक्तों का तांता मंदिरों में लग गया था।

शिव का जीवन ही इस बात का प्रतीक है कि प्रकृति से तालमेल स्थापित कर ही जीवन में सुख-शांति, सरलता, सादगी, शौर्य, योग, अध्यात्म सहित कोई भी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। आषाढ़ मास से ही वर्षा ऋतु की शुरूआत होती है। श्रावण मास आते-आते चारों तरफ हरियाली छा जाती है। यह सभी के मन को लुभाने वाली होती है। श्रावण मास में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य देखते ही बनता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चारों तरफ बसंत ऋतु ही छाई हुई है। संंसार के प्राणियों में नई उमंग व नव जीवन का प्रसार होने लगता है। प्रकृति की अनुपम छठा को देखकर भगवान शिव आनंदित व आत्मविभोर हो जाते हैं। श्रावण मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। श्रावण मास के प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है।

सावन है भगवान शिव का महीना

ऐसे में जब भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं तो संसार में ऐसा कुछ भी नहीं, जो वह अपने भक्तों को न दे पाएं। भगवान शिव को रिझाने में भक्तजन अपनी मनोकामना के लिए नाना प्रकार के यत्न करते हैं। सावन का महीना शुरू होने के साथ ही बोल बम के जयकार भी चारों तरफ सुनाई देने लगे हैं। इसके साथ ही श्रावण शिवरात्रि पर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए पवित्र गंगाजल लाने के लिए कावड़ियों का तीर्थ स्थलों पर जाने का सिलसिला जारी है। पूरे सावन को भगवान शिव का महीना ही माना जाता है। इस बार तो अधिक मास के कारण श्रावण पूरे दो महीने तक चलेगा।

शिवपुराण की कथा के अनुसार, श्रावण मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के तीन मार्ग हैं - पहला जलाभिषेक, दूसरा बेल पत्र, पुष्प चंदन, कमलपुष्प व पंचामृत से पूजा अर्चना और तीसरा जप-तप के द्वारा। इनमें से किसी भी एक मार्ग का अनुसरण किया जा सकता है। वस्तुत: भिन्न-भिन्न कामनाओं के अनुरूप विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को चढ़ाने का भी प्रावधान है।

शिव महापुराण, स्कंध पुराण, विष्णु पुराण व नारद पुराण भी इसी तरफ संकेत करते हैं। सभी देवी-देवताओं ने मिलकर कैलाश पर्वत को दुल्हन की तरह सजाया था। कैलाश पहुंचने पर श्रावण मास शुरू हो गया। सभी देवी-देवताओं ने मिलकर पूरे श्रावण मास को उत्सव के रूप में मनाया।

शिव की पलटन

शिव का सावन प्रकृति के साथ साहचर्य का संदेश है। शिव अगर नीलकंठ हैं और दुनिया के लिए अकेले जहर को अपने गले में धारण कर सकते हैं, तो उसके साथ-साथ भांग और धतूरा खाने और पीने वाले भी शिव ही हैं। शिव की दोनों तस्वीरें साथ-साथ जुड़ी हुई हैं। भारत में करोड़ों लोग समझते हैं कि शिव धतूरा पीते हैं, शिव की पलटन में लूले-लँगड़े हैं, उसमें जानवर भी हैं, भूत-प्रेत भी हैं और सब तरह की बातें जुड़ी हुई हैं। लूले-लँगड़े, भूखे के मानी क्या हुए? गरीबों का आदमी। शिव सबके हैं। इसका अर्थ ही यह है कि शिव सभी बेसहारा प्राणियों के सहारा हैं I भांग धतूरा का वे सेवन नहीं करते, बल्कि, अपने भक्तों को अपने दुर्गुणों को छोड़ने के लिए प्रेरित करते हैं I कहते हैं “लाओं अपने सारे दुर्वसन मुझे दे दो और तुम शुद्ध भाव से मेरी आराधना में” लगो I

मानव जीवन का वास्तविक लक्ष्य क्या है? जीवात्मा अनादिकाल से प्रकृति के प्रवाह में अणु-रूप में नानाविध शरीर धारण करते हुए काल की गति के साथ बह रहा है। मोक्ष की कामना को भटक रहे मानव के लिए सनातन धर्म में भक्ति को विभिन्न देवताओं की पूजा के अलग-अलग विधान हैं।

सृष्टि के कल्याणकारी देवाधिदेव महादेव शिव शंकर ही ऐसे देव हैं, जो मात्र एक लोटा जल श्रद्धा भाव से ग्रहण कर ही मानव के जीवन को सरल बना देते हैं। शिव हम सभी के आसपास ही विराजमान रहते हैं। न जाने किस रूप में वे अपने भक्तों को दर्शन दे जाएं। लेकिन, उनको पहचान पाना मानव के लिए सदा से ही एक बड़ा गंभीर विषय रहा है। यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे आकाश में बादल रहने पर बादलों के मध्य में स्थित सूर्यबिंब दिखाई नहीं देता। सूर्योदय के बाद आकाश के मेघावृत रहने पर मेघ के हटने के साथ ही सूर्य के दर्शन होते हैं एवं उसकी किरण और धूप की भी प्राप्ति होती है।

शिव की भक्ति

शिव की भक्ति करने वाले को अपनी मस्तिष्क के पड़े उस अज्ञान के पर्दे को हटाने की जरूरत है जो उस कल्याणकारी देव प्रभाव को नहीं देख पाता है।

शिव हरेक संकट में एक आश्वासन हैं। उनकी हरेक श्मशान घाट या भूमि में लगी मूर्ति मानव समाज को राहत देती है। उन कठोर पलों में उनको देखकर ऐसा लगता है मानो कोई आपकी पीठ को थपथपा रहा है। जैसे वे कहे रहे हो, “मैं अभी हूं न तुम्हारे साथ ।” अभी तक शिव का श्मशान भूमि में एकछत्र राज रहा है। वह उनकी दुनिया है। उसमें अतिक्रमण निषेध है। श्मशान में शिव की सत्ता है। शिव की मूर्ति के आसपास कुछ शोकाकुल लोग बैठ भी जाते हैं। उनको करीब से देखते भी हैं। मन ही मन सवाल भी करते होंगे कि क्यों श्मशान प्रिय है शिव को? हालांकि इस प्रश्न के उतर बार-बार मिल चुके हैं। सतगुरु जग्गी कहते हैं कि दरअसल शिव का श्मशान डेरा है। ‘श्म’ का मतलब ‘शव’ से और ‘शान’ का मतलब ‘शयन’ या ‘बिस्तर’ से है। जहां शव पड़े होते हैं, वहीं वह रहते हैं। शिव श्मशान में जाकर बैठते और इंतजार करते हैं। शिव को संहारक माना जाता है, इसलिए नहीं कि वह किसी को नष्ट करना चाहते हैं। वह श्मशान में इंतजार करते हैं ताकि शरीर नष्ट हो जाए, क्योंकि जब तक शरीर नष्ट नहीं होता, आस-पास के लोग भी यह नहीं समझ पाते कि मृत्यु क्या है। वे हरेक मूर्ति में ध्यान की मुद्रा में हैं। लगता है कि वे स्वयं की खोज के लिए यात्रा में निकल पड़े हैं। वे कठोर चिंतन और ध्यान में मग्न हैं।

शिव अपने भक्तों से कभी दूर नहीं जाते। श्रावण मास में समाधिस्थ शिव संसार को शंकाओं से मुक्त करते हुए समाधान से युक्त करते हैं। वे श्रद्धापूर्वक की गई प्रार्थनाओं को सुनते हुए हमारे पुरुषार्थ को फलीभूत करते हैं।

शिव मंदिर में शिवलिंग की पूजा से मिलता है सुख

सावन महीने के किसी सोमवार को शिव मंदिर में शिवलिंग के पास बैठकर पूजा करने का सुख वास्तव में अलौकिक होता है । इस दौरान काशी और झारखण्ड का वैद्यनाथ धाम तो काँवरियों से पट जाती है। महादेव शिव बनारस में लोकदेव हैं। सावन में शिव की पूजा, उपवास और ध्यान को उत्तम माना गया है। वर्ष का मास शिव को याद करने का है।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

RK Sinha

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