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Sharabi Station Master: नशे की अजब कहानी, शराबी मास्टर ने खोया सुध-बुध, भगवान भरोसे कई ट्रेनें
Sharabi Station Master : भैया घोर नाइंसाफ़ी है । अब खुद ही देखिये कितनी गर्मी है । साहब गर्मी में पसीना टपकाते आये होंगे लेकिन जैसे ही एसी की ठंढी हवा मिली सो गये होंगे ।
भैया आज चलिये चलें अपनी यूपी । तो खबर आयी है यहां के जिला औरैया से । यहां एक रेलवे स्टेशन पड़ता है जिसका आधार कार्ड के हिसाब से नाम है कंचौसी । तो भैया शाम को शिफ्ट बदली तो असिस्टेंट स्टेशन मास्टर साहब ड्यूटी ज्वाइन किये । अब मामला रात का था सो बढ़िया से खा पी के मजबूत हुई के आये थे ।
कंचौसी में स्टेशन मास्टर नशे में धुत
उनके खाने से तो किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई, हाँ पीने ने हजारों का साँसे जरूर अटका दीं । जैसा आप सोच रहे हैं वैसा कुछ भी नहीं है । पिए वो पानी ही थे । लेकिन अब क्या है कि पानी सादा पिया जाये तो भी तो ठीक नहीं । पानी का अपमान होता है । और पानी को अकेलापन भी तो महसूस होता होगा । इकोनॉमी गुस्सा जाती सो अलग ।
तो बस यही सब सोच के थोड़ी से मिला लिए । बस भैया जैसे ही ये थोड़ी सी अंदर गई है कि उनके अंदर का टैलेंट फूट फूट के निकलने लगा । अंदर वाली थोड़ी सी बोली थोड़ी सी और । अब मेहमान है सो टाल भी नहीं सकते । लेकिन थोड़ी सी करते करते कुछ ज्यादा हो गई । लेकिन मजाल है कि साहेब को जरा भी चढ़ी हो । एकदम टाइम से घड़ी की नोंक मिला के दफ्तर पहुंचे ।
बस बैग वैग किनारे रखे, बाकायदा कुर्सी संभाले और पिछवाड़ा चौड़ा औ टाँगे लम्बी करके सो गए । इधर साहेब की आँख लगी उधर दस ट्रेनें जहाँ की तहाँ खड़ी हो गईं । ट्रेनों की बददिमागी देखिये । साहेब का जरा सा सोना इनको फूटी आँख नहीं सुहाया । यही सब तो कलयुग की निशानियां हैं । ट्रेनें रुकीं तो ऐसा कि अगले डेढ़ घण्टे तक टस से मस न हुईं ।
शराब पीकर सोए स्टेशन मास्टर, सिग्नल पर ट्रेनों की लग गई लाईन
अब इन ट्रेनों के अगले और पिछले स्टेशन हैरान परेशान हो गए । बात ऊपर तक पहुंचाई गई । ऊपर से फोन आया । अब फोन तो पूरी मुस्तैदी से ड्यूटी पर था लेकिन साहब तो ड्यूटी पर ही फैले पड़े थे । आखिरकार बड़के साहब को फोन मिलाया गया । बेचारे घर पहुंचे ही थे कि उलटे पाँव लौट पड़े । स्टेशन पहुंचे तो देखे कि साहेब तो पूरी तल्लीनता, तत्परता और तन्मयता से सो रहे हैं । हिलाए डुलाए तो साहब हिले डुले तो लेकिन जगे नहीं ।
बड़े साहब भी भन्नाए बैठे थे । बाल्टी भर के पानी मंगवाये और मुँह पे उड़ेल दिए । लेकिन भैया नामालूम कउन सा ब्रांड था । साहेब न जगे तो न जगे । बड़े साहब कुछ पास आये तो सूँघते ही सारा माजरा समझ गए । मजबूरन बड़े साहब को ही मोर्चा संभालना पड़ा । खुद सिग्नल क्लियर किये तब जाके ट्रेनों के चक्के घूमे । साहेब अब भी नींद की गोद में झूल रहे थे । लेकिन भैया होनी को कौन टाल पाया है । रातों रात सस्पेंड कर दिए गए ।
नहीं उतरी शराब तो रातों रात स्टेशन मास्टर सस्पेंड
लेकिन भैया घोर नाइंसाफ़ी है । अब खुद ही देखिये कितनी गर्मी है । पिलपिला के पसीना निकल रहा है । इधर मौसम वालों के तुक्के भी फेल हो रहे हैं । बस तो साहब मारे गर्मी में पसीना टपकाते आये होंगे लेकिन जैसे ही एसी की ठंढी हवा मिली सो गये होंगे । मल्लब सारा दोष यहाँ गर्मी और एसी का है ।
खैर जो होना था सो हो गया । चिकोटी काटनी थी तो काट लिए । अब कैसी कट रही है आप बताइये...
*यह एक व्यंग्य आधारित लेख है । इस लेख का मकसद किसी भी रूप में किसी व्यक्ति, जाति, धर्म, सम्प्रदाय, स्थान या पद की छवि खराब करना नहीं है । न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है ।