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शिंजो आबे: जापानी प्रधानमंत्री के एहसानों को क्यों याद रखेगा भारत
अब भले ही शिंजो अपने पद को छोड़ रहे हैं, पर उन्होंने भारत-जापान संबंधों को एक मजबूत आधार तो दे ही दिया है। भारत के पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोगों को हर संभव प्रयास करने होंगे, ताकि जापान से अधिक से अधिक बुद्ध-सर्किट के पर्यटक भारत आएँ।
आर.के.सिन्हा
भारत के परम मित्र और हितैषी के रूप में सदैव याद किए जाते रहेंगे जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे। उन्होंने खराब स्वास्थ्य की वजह से अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। लेकिन, उनके और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच बेहद घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध तो कायम रहे ही। उसमैत्री पूर्ण मधुर संबंधों के चलते दोनों देश अनेक क्षेत्रों में मिलकर काम कर रहे थे। जापान का भारत में निवेश लगातार बढ़ता जा रहा था।
निस्संदेह शिंजो आबे के हाल के वर्षों में नेतृत्व और व्यक्तिगत प्रतिबद्धता के चलते भारत-जापान साझेदारी पहले से कहीं अधिक गहरी और मजबूत हुई। जाहिर है कि अपने मित्र की सेहत को लेकर आई खबरों से प्रधानमंत्री मोदी भी विचलित हो गए थे । उन्होंने कहा कि प्रिय मित्र शिंजो आबे के स्वास्थ्य के बारे में सुनकर दुख हुआ। मोदी जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को अपने सबसे विश्वसनीय दोस्तों में से एक बता चुके हैं।
जब आबे ने की बनारस में आरती
आपको याद ही होगा कि कुछ साल पहले शिंजो आबे जब भारत यात्रा पर आए तो वे प्रधानमंत्री मोदी के साथ बनारस पहुंचे। दोनों ने दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती में मिलकर भाग लिया। गंगा सिर्फ एक नदी नहीं, भारतीय संस्कृति की वाहक भी है।
इस लिहाज से जापान के प्रधानमंत्री के स्वागत में काशी में गंगा आरती का आयोजन भारत की मौलिक और व्यापक सोच का परिचायक था। उस राजनयिक मुलाकात से दोनों देशों के सांस्कृतिक आदान प्रदान को गति मिली।
गंगा के रूप में एक बड़ा आयाम जोड़कर दोनों देशों के आपसी रिश्तों को और मजबूत करने की दिशा में वह ठोस पहल थी। गंगा आरती महज पूजाविधि नहीं है।
मोदी-आबे ने गंगा आरती में भाग लेकर दुनिया में भारत की खोई हुई या यूं कहें कि तिरस्कृत हो चुके सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ने अपनी जगह बनाई थी। गंगा आरती के वक्त शिंजो के चेहरे के भाव देखने लायक थे। वे पूरी एकाग्रता से आरती में भाग ले रहे थे।
इस तरह के प्रयोग आगे भी होने ही चाहिए। जापान भारत से भगवान गौतम बौद्ध के चलते अपने को भावनात्मक स्तर पर करीब पाता है। वाराणसी और निकट के कस्बे सारनाथ का बौद्ध संस्कृति में बड़ा महत्त्व है> बोधगया में दिव्य ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध का पहला आध्यात्मिक प्रवचन वाराणसी के सारनाथ में ही हुआ था।
बुलेट ट्रेन का तोहफा
और इसके साथ ही शिंजो आबे की पहल के चलते भारत में बुलेट ट्रेन चलने का रास्ता साफ हुआ। अगर बात बुलेट ट्रेन को लेकर हुए करार की करें तो इसे भारत- जापान संबंधों का शिखर माना जा सकता है।
बुलेट ट्रेन परियोजना विकसित भारत के एक सपने को साकार करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। इस परियोजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए शिंजो आबे ने जो करार किया था वह भी कमाल का था।
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जापान दूसरे देशों को जिस दर पर ऋण देता है, उससे काफी कम दर पर भारत को मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए जरूरी राशि मुहैया कराएगा। ऋण वापसी की मियाद भी 25 वर्षों की जगह 50 वर्ष रखी गयी है। यानी करार हर तरह से भारत के पक्ष में हुआ।
शिंजो विश्व के उन नेताओं में रहे, जो वैश्विक समृद्धि की दिशा में भारत को भी एक ग्लोबल पावर के रूप में ही देखते थे। 2019 में जब मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा फिर दोबारा जीत के साथ सत्ता में लौटी तो शिंजो आबे ने मोदी जी को अपने बधाई संदेश में कहा था 'बेहतर भविष्य के लिए हमारे साझा खोज में जापान की इच्छा भारत के सबसे विश्वसनीय साझीदार बनने की है।’ इसमें और स्पष्ट कुटनीतिक बयान कुछ हो ही नहीं सकता I
बढ़ता जापानी निवेश
मोदी और शिंजो के करीबी संबंधों के चलते भारत में बढ़ते जापानी निवेश को देखने के लिए मात्र दिल्ली, गुरुग्राम और नोएडा का हे एक चक्कर लगाना पर्याप्त रहेगा। इन शहरों में ही लगभग पांच हजार जापानी नागरिक रहते हैं।
भारत में रहने वाले जापानी नागरिक भारत के उज्जवल भविष्य को लेकर बेहद आशावादी हैं। यह जापानी होंडा सिएल कार, होंडा मोटरसाइकिल, मारुति, फुजी फोटो फिल्मस, डेंसो सेल्ज लिमिटेड, डाइकिन श्रीराम एयरकंडशिंनिंग, डेंसो इंडिया लिमिटेड समेत लगभग दो दर्जन जापानी कंपनियों के भारत के विभिन्न भागों में स्थित दफ्तरों और फैक्ट्रियों में काम करते हैं।
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ये भगवान बुद्ध के ही अनेकों पीढ़ियों से अनुयायी तो हैं ही । ये भारतभूमि को पूजनीय मानते हैं। ये मानते हैं कि भगवान बौद्ध का जीवन समाज से अन्याय को दूर करने के लिए समर्पित था। उनकी करुणा भावना ने ही उन्हें विश्व भर के करोड़ों लोगों तक पहुंचाया।
इन जापानियों में भी भारतीय संस्कार होते हैं। ये भारतीयों की तरह ही मितव्ययी हैं। ये संयुक्त परिवार की संस्था को महत्व देते हैं। अगर कुछ जापानी एक-दूसरे के करीब रहते हैं, तब ये कार पूल करके ही दफ्तर जाना पसंद करते हैं, अलग-अलग गाड़ियों में चढ़कर अकेले दफ्तर या फैक्ट्री पहुंचना इन्हें पसंद नहीं है।
जापान ने दिया हर कदम पर साथ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद जब देश के कोने-कोने में लोग जनता कर्फ्यू के बाद ताली-थाली बजा रहे थे तब यहां पर रहने वाले जापानी नागरिक भी खुलकर उनका साथ दे रहे थे। इसके बाद कोरोना वायरस के खिलाफ एकजुटता का संदेश देने के लिए जब देशवासियों ने घर की लाइटें बंद रखीं थी और दीये, मोमबत्ती, टॉर्च या मोबाइल फोन की फ्लैशलाइट जलाकर रोशनी की थी तब भी उनका यहां रहने वाले जापानी खुलकर साथ देते रहे।
अब भले ही शिंजो अपने पद को छोड़ रहे हैं, पर उन्होंने भारत-जापान संबंधों को एक मजबूत आधार तो दे ही दिया है। भारत के पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोगों को हर संभव प्रयास करने होंगे, ताकि जापान से अधिक से अधिक बुद्ध-सर्किट के पर्यटक भारत आएँ।
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जापान से लाखों पर्यटक श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों के बुद्ध तीर्थस्थलों में जाते ही हैं। इन पर्यटकों के एक बड़े हिस्से को हमें बोधगया-राजगृह-सारनाथ-वाराणसी में भी लाना होगा। यहाँ ही युवराज सिद्धार्थ को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और वे गौतम बुद्ध बने।
बोधगया आने वाले पर्यटक सारनाथ भी अवश्य जाते हैं। सारनाथ में गौतम बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद अपना पहला उपदेश दिया था। बौद्ध अनुयायियों का गौतम बुद्ध की जन्मस्थली भारत को लेकर आकर्षण स्वाभाविक है। बोधगया-राजगीर-नालंदा सर्किट देश के सबसे खासमखास पर्यटन स्थलों में माना जाता हैं। अगर हम इसे महान अंतर्राष्ट्रीय सर्किट बना सकें तो शिंजो आबे की मेहनत सफल मानी जाएगी।