शिवाजी और समर्थ रामदास का शिष्य-गुरु विवाद!

चूंकि समर्थ गुरु रामदास ब्राह्मण थे अत: इन मराठों का पुराना अभियान रहा कि शिवाजी की माता जीजाबाई ही पहली गुरु थी। इनका यह भी दावा है कि समर्थ रामदास और छत्रपति शिवाजी गुरु और शिष्य कैसे?

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Shashi kant gautam
Published on: 2 March 2022 1:05 PM GMT (Updated on: 2 March 2022 1:30 PM GMT)
Disciple of Shivaji and Samarth Ramdas - Guru Controversy!
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शिवाजी और समर्थ रामदास: Photo - Social Media

विप्र द्वेषी, अवर्णों के वोंटार्थी, मराठा राजनेता, पूर्व रक्षा मंत्री, प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री, शुगर नवाब, शरदचन्द्र गोविन्दराव पवार (Sharad Chandra Govindrao Pawar) ने महाराष्ट्र (Maharashtra) के राज्यपाल तथा उत्तराखण्ड के पूर्व भाजपायी मुख्यमंत्री प्रोफेसर (अंग्रेजी साहित्य) तथा श्रमजीवी पत्रकार भगत सिंह कोश्यारी को बेदखल करने की मांग दोहराई है। अन्य मराठे भी राज्यपाल पर पिल पड़े हैं। बात बस इतनी तक है कि गत रविवार (27 फरवरी 2022) को औरंगाबाद के एक समारोह में प्रो. कोश्यारी ने कहा था कि गुरु की महत्ता के कारण ही​ शिष्य की श्रेष्ठता है। जैसे आचार्य चाणक्य के कारण चन्द्रगुप्त मौर्य की तथा समर्थ गुरु रामदास (Samarth Guru Ramdas) के कारण छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati Shivaji) की। प्रो. कोश्यारी राजपूत हैं, चीन के सीमावर्ती पिथौरागढ़ जिले के। आपातकाल में इंदिरा गांधी की तानाशाही का मुकाबला जेल से कर चुकें हैं।

चूंकि समर्थ गुरु रामदास ब्राह्मण थे अत: इन मराठों का पुराना अभियान रहा कि शिवाजी की माता जीजाबाई ही पहली गुरु थी। इनका यह भी दावा है कि समर्थ रामदास और छत्रपति शिवाजी गुरु और शिष्य कैसे? कभी वे दोनों मिले ही नहीं थे। इस बात की पुष्टि में ये मराठे औरंगाबाद उच्च न्यायालय की खण्डपीठ के एक निर्णय (16 जुलाई 2018) का उल्लेख करते है। इसमें जजों ने कहा कि शोध कर्ताओं की खोज के मुताबिक शिवाजी तथा समर्थ गुरु रामदास कभी गुरु शिष्य रहे ही नहीं। मगर बम्बई हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गयी थी कि बाबा साहेब बलवंत मोरेश्वर पुरंधरे (1922 से 2021 ) को प्रदत्त ''महाराष्ट्र रत्न'' पुरस्कार निरस्त कर दिया जाये। बाबा साहेब इतिहासकार थे, जो अपने को ''शिव शाहिर'' कहते थे (कवि भूषण की भांति) जिन्होंने शिवाजी पर सैकड़ों रचनायें लिखीं हैं।

पुरंधरे के अनुसार शिवाजी गुरु रामदास के शिष्य थे

उन्हें पद्म विभूषण'' (भारत रत्न के बाद) की उपाधि से सम्मानित किया गया था। इनके ही विरुद्ध कतिपय लोगों ने मांग की थी कि दादासाहेब पुरंधरे को मिला पारितोष वापस ले लिया जाये। बम्बई हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुये, याचिकाकर्ताओं पर दस हजार का जुर्माना भी लगाया क्योंकि उन्होंने एक ''घटिया वाद पर कोर्ट का समय नष्ट'' किया था। बाबा साहेब पुरंधरे ब्राह्मण थे, अत: ये मराठे उनका भी तिरस्कार करते रहे। पुरंधरे के अनुसार शिवाजी गुरु रामदास के शिष्य थे।

हालांकि शंभाजी ब्रिगेड (शिवसेना की भांति एक संगठन) ने बाबा साहेब पुरंधरे को अपमानित करने की साजिश की थी। इसी संदर्भ में एक वारदात भी हुयी थी। शरद पवार को उनके चन्द चहेतों ने ''जाणता (जागरुक) राजा'' की उपाधि से नवाजा था। यह उपाधि गुरु रामदास ने शिवाजी महाराज को दिया था। इस घटना पर भाजपा के सांसद (पवार के पूर्व समर्थक) उदयराजे ने आलोचना भी की थी।

विवाद का विश्लेषण यह है कि सात सदियों पूर्व से चले आ रहे इतिहास के सर्वमान्य सिद्ध तथ्य को जाति पर रागद्वेष के कारण क्या विकृत कर दिया जायेगा? अर्थात दशकों से करोड़ों स्कूली छात्रों को पढ़ाया जा चुका है कि गुरु समर्थ रामदास अपने अनन्य शिष्य हिन्दू राज के प्रणेता, मुगलों के कट्टर शत्रु, मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी के पथ प्रदर्शक थे। आज क्या चन्द राजनेता बिना किसी प्रमाण अथवा दस्तावेज के अपनी मनमानी करेंगे?

वस्तुस्थिति यही है कि मध्य कालीन भारतीय इतिहास के शोधकर्ताओं ने निस्संदेह प्रमाणित किया है कि गुरु—शिष्य की स्नेहिल भेंट 1672 को हुयी थी। इसका प्रमाण मिला है लंदन—स्थित ब्रिटिश पुस्तकालय से जहां दस्तावेज उपलब्ध है।

वह शिवाजी द्वारा प्रदत्त सनद है। शिवाजी ने अपने अमात्य दत्ताजी पन्त को निर्दिष्ट किया था कि चाफल मंदिरों की सुरक्षा हो। शिंगनवाड़ी में दोनों मिले थे। एक शाही सनद (तिथि 15 अक्टूबर 1678) शिवाजी महाराज ने मराठी में दिया। इससे भी गुरु शिष्य ​रिश्ता सिद्ध होता है।

इस विवरण के अनुसार जब छत्रपति शिवाजी को यह पता चला कि समर्थ रामदासजी ने महाराष्ट्र के ग्यारह स्थानों में हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित की हे और वहां हनुमान जयंती उत्सव मनाया जाने लगा है, तो उन्हें उनके दर्शन की उत्कृष्ट अभिलाषा हुयी। वे गुरु से मिलने के लिये चाफल, माजगांव होते हुए शिंगनवाड़ी आये। वहां समर्थ रामदासजी एक बाग में वृक्ष के नीचे ''दासबोध'' लिखने में मग्न थे।

गुरु समर्थ ने शिवाजी को दिया था त्रयोदशाक्षरी मंत्र

शिवाजी ने उन्हें दंडवत प्रणाम किया और उनसे अनुकम्पा के लिये विनती की। गुरु समर्थ ने उन्हें त्रयोदशाक्षरी मंत्र देकर आशीर्वाद दिया और ''आत्मनाम'' विषय पर गुरुउपदेश भी दिया। (यह ''लघुबोध'' नाम से प्रसिद्ध है और ''दासबोध'' में समाविष्ट है।)। फिर उन्हें श्रीफल, एक अंजलि मिट्टी, दो अंजलियां लीद एवं चार अंजलियां भरकर कंकड़ दिया। जब शिवाजी ने उनके सान्निध्य में रहकर लोगों की सेवा करने की इच्छा व्यक्त की, तो संत बोले—''तुम ​क्षत्रिय हो। राज्यरक्षण और प्रजापालन तुम्हारा धर्म है। यह रघुपति की इच्छा दिखायी देता है।'' और उन्होंने ''राजधर्म'' एवं ''क्षात्रधर्म'' पर उपदेश दिया।

शरद पवार तथा उनके लोगों की जिद है कि शिवाजी की गुरु उनकी माता जीजाबाई थी । यह पूर्ण सत्य है क्योंकि संस्कृत में कहावत भी है कि शिशु की प्रथम गुरु माता होती है। ''स्रोत द्वितीय'' परंपरा से : ''गुरुणा प्रथमो माता, द्वितीयो पितृ पूजक। पुनच्च गुरु आचार्यों, एतेशाम अभिनन्दनम।।'' साथ ही यह भी श्लोक है कि ''माता शत्रु, पिता बैरी, येन बालो न पाठिता:।'' संतान की शिक्षा पर निर्देश है।

शिवाजी का राजतिलक पुरोहितों ने नहीं किया

इन अब्राह्मणों को महाराष्ट्र के पंडितों से समर्थन मिला था, क्योंकि शिवाजी का राजतिलक पुरोहितों ने नहीं किया। वे सब छत्रपति को क्षत्रिय नहीं मानते थे। अत: दादा गंगा भट्ट को काशी से आमंत्रित किया गया। उन्होंने रायगढ़ में राज्याभिषेक कराया। तब शिवाजी गुरु रामदास के आवास सज्जनगढ़ आमंत्रित करने गये। पर रामदासजी बोले : ''मैं गोसावी हूं। नहीं आ सकता हूं।'' किन्तु उन्होंने शिवाजी को धनुष भेंट किया, धर्मरक्षार्थ। पिछड़ा, अति पिछड़ा, ऊंची—नीची जाति आदि को राजनेता कृपया इतिहास से दूर ही रखे वर्ना विकृति और झूठ पनपेगा।

शिवाजी युग पुरुष थे। धर्मोद्धारक थें। हिन्दू पदपादशाही के प्रवर्तक थे। दलित—पिछड़ों के वोट के सौदागर शरद पवार से अपेक्षा है कि इतिहास से अठखेली न करें। राजनीति से परे रखें। हर वक्त गुटों का पक्षधर नहीं होना चाहिये।

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