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शोएब अख्तरः प्रेम का बदला नफरत से, अब याद रखना इसे

ये स्थिति जमैका के एथलीट उसैन बोल्ट, हमारे अपने सचिन तेंदुलकर और टेनिस के महान खिलाड़ी रोजर फेडरर को लेकर भी कही जा सकती है। इन सबने अपना इतना ऊंचा कद अपनी खेल के मैदान के अंदर-बाहर के स्तरीय प्रदर्शन और उच्च स्तरीय आचरण के चलते बनाया।

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Published on: 5 Aug 2020 9:33 AM IST
शोएब अख्तरः प्रेम का बदला नफरत से, अब याद रखना इसे
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आर.के. सिन्हा

सचिन तेंदुलकर, रोजर फेडरर, मोहम्मद अली या पेले जैसे खिलाडियों को विश्व नागरिक माना जाता है। ये भले ही भारत, ब्राजील, अमेरिका वगैरह के नागरिक हों पर इनके फैंस तो सारी दुनियाभर में हैं। ये सभी सेलिब्रिटी खिलाड़ी एक तरह से विश्व नागरिक की भूमिका में आ चुके हैं। पर कुछ खिलाड़ी एक मुकाम हासिल करने के बाद भी अपनी टुच्ची तथा ओछी हरकतों और बयानबाजी से यह सिद्ध कर देते हैं कि वे कितने छोटे और घटिया किस्म के इंसान हैं।

बात शोएब की

अब पाकिस्तान के गुजरे दौर के तेज गेंदबाज शोएब अख्तर को ही ले लें। वे कह रहे हैं कि जब साल 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था, उस वक्त वे भी पाकिस्तान की तरफ से रणभूमि में जाने तक के लिए तैयार थे।

बड़बोले शोएब अख्तर अब दावा कर रहे हैं कि उन्होंने 1999 में हुए कारगिल युद्ध में हिस्सा लेने के लिए ही इंग्लिश काउंटी नॉटिंघम शायर से मिले 1,75,000 ब्रिटिश पाउंड के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। कारगिल युद्ध 16,000 फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था जिसमें 1,042 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे।

अपने हुक्मरानों से ये पूछा

सवाल यह है कि क्या उन्होंने कभी अपने देश के हुक्मरानों से पूछा भी था कि उन्होंने भारतीय सीमा में अतिक्रमण करने की हिमाकत क्यों की?

पाकिस्तान में बहुत से लेखकों-पत्रकारों वगैरह ने भी अपने देश के उस समय के आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ को लताड़ा था कि उनके दुस्साहस के कारण ही पाकिस्तान को युद्ध में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था।

खेलों की दुनिया के लिए कहा जाता है और सही भी है कि यहां पर प्रतिस्पर्धा की भावना मैदान के भीतर तो रहनी ही चाहिए।

लेकिन, जैसे ही खिलाड़ी मैदान के बाहर निकलें उनमें अपनी विरोधी टीम, चाहें वह किसी देश, राज्य या मोहल्ले की हो, को लेकर किसी तरह का वैमनस्य़ का भाव नहीं होना चाहिए। यही तो होती है खेल की भावना या स्पोर्टस्मैन स्पिरिट ।

20 साल बाद याद आया

अब अचानक से कारगिल युद्ध के 20 साल गुजरने के बाद शोएब अख्तर को यह अचानक याद आ गया कि उनके पास नॉटिंघम का 1,75,000 पाउंड के कांट्रैक्ट का प्रस्ताव था।

जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो उन्होंने उस प्रस्ताव को मात्र इसलिये ठुकरा दिया था कि उसने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की सेना की ओर से लड़ने का निश्चय किया था।

कारगिल युद्ध के लंबे समय के बाद भारत में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) सन 2008 में आयोजित किया गया। उसमें शोएब अख्तर कोलकाता के नाइट राइडर्स टीम के लिए खेले। इसके लिये उन्हें करोड़ों रुपये का भुगतान हुआ।

शोएब को ये याद नहीं

क्या उन्हें तब शर्म नहीं आई थी कि वे उस देश में आईपीएल खेलने जा रहे हैं जिससे उनका देश कारगिल में बुरी तरह से परास्त हुआ था? क्या उन्हें पता नहीं था कि भारत ने पाकिस्तान को 1948, 1965 और 1971 की जंगों में भी धूल चटाई थी?

पर उन्हें इतना तो अवश्य ही पता होगा कि 1071 की जंग में हारते ही उनका पाकिस्तान दो फाड़ हो गया था। कितने बेशर्म हैं शोएब अख्तर ।

जिस तरह की नफरत भरी जुबान में शोएब अख्तर आज बोल रहे हैं उस तरह की भाषा उनके साथी रहे पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी भी बोलते रहते हैं। वे कश्मीर का बेवक्त मुद्दा छेड़ते ही रहते हैं।

कश्मीरी पंडितों के हक में क्यों नहीं बोले

अफरीदी को कश्मीरी लोगों की व्यथा भी बेवजह सताती है। पर कश्मीरी पंडितों के हक में बोलते हुए उनकी जुबान पर ताला लग जाता है। क्या वे इंसान नहीं हैं? क्यों कश्मीर पर अनाप-शनाप बकवास करने वाले अफरीदी कभी नहीं बोलते कि उनके अपने मुल्क के बलूचिस्तान सूबे में असंतोष की ज्वाला भड़की हुई है?

कारगिल से लेकर कश्मीर के मसलों को उठाने वाले शोएब अख्तर और अफरीदी को पाकिस्तान में लग रही आग दिखाई क्यों नहीं दे रही है। वे समझ ही नहीं पा रहे हैं, या जानना ही नहीं चाहते कि बलूचिस्तान सूबे में विद्रोह की चिंगारी अब भड़क चुकी है।

बलूचिस्तान

बलूचिस्तान का अवाम पाकिस्तान से अपनी मुक्ति चाहता है। इसी लिहाज से बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी नाम का संगठन सघन आंदोलन चला रहा है।

अफरीदी को इतना तो पता होगा ही कि उनके अपने शहर और पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराची के स्टॉक एक्सचेंज बिल्डिंग में कुछ समय पहले आतंकी हमले की जिम्मेदारी भी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने ही ली थी।

कराची स्टॉक एक्सचेंज में हुए आतंकी हमले में करीब दस लोगों की जानें गई थी। हमलावरों ने वहां ग्रेनेड से हमला कर दिया था।

राग कश्मीर का बेवजह राग छेड़ने वाले अफरीदी पहले आईपीएल में हैदराबाद सनराइजर्स की टीम से खेले थे। उसके बाद भी वे आईपीएल में खेलने की इच्छा हर वक्त जताते रहे। वे तब कश्मीर का मसला क्यों नहीं उठाते थे?

निराश किया

भारत के खिलाफ सतही टिप्पणियां करने वाले शोएब अख्तर और आफरीदी ने भारत के अपने करोड़ों फैन्स को निराश किया है। उनके फैन्स उनके मैदान के भीतर किए गए प्रदर्शन से सदैव प्रभावित रहे। पर उन्होंने तो अपने फैन्स का दिल ही दुखाया है।

ये अपने देश के असदार नागरिक तो हैं ही । ये दोनों देशों के संबंधों को सौहार्दपूर्ण बनाने की दिशा में तो कोई ठोस पहल कर सकते थे। पर ये तो मात्र बक-बक कर रहे है। क्या कभी किसी भारतीय खिलाड़ी ने पाकिस्तान को किसी भी मंच से कोसा है? याद तो नही आता। ये ही फर्क है भारत और पाकिस्तान में।

मोहम्मद अली और पेले

आपको याद ही होगा कि कुछ साल पहले जब मोहम्मद अली और पेले अस्वस्थ हुए तो सारी दुनिया के खेलों के प्रेमी बेचैन होने लगे। इनकी परेशानी की वजह उनका अस्वस्थ होना था। ये निर्विवाद रूप से वे सर्वकालिक महानतम खिलाड़ियों में शुमार किए जाते रहेंगे ।

दोनों खेल की दुनिया से जाने के बाद भी अहम बने रहे। फुटबाल का जिक्र होता है, तो पेले का नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता रहेगा। इसी तरह से मुक्केबाजी की बात होगी है, तो अली याद आने लगते हैं।

आचरण से कद ऊंचा

ये स्थिति जमैका के एथलीट उसैन बोल्ट, हमारे अपने सचिन तेंदुलकर और टेनिस के महान खिलाड़ी रोजर फेडरर को लेकर भी कही जा सकती है। इन सबने अपना इतना ऊंचा कद अपनी खेल के मैदान के अंदर-बाहर के स्तरीय प्रदर्शन और उच्च स्तरीय आचरण के चलते बनाया।

इनका इनके देशों के आम नागरिक से लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया आदर करती हैं। काश, शोएब अख्तर और अफरीदी ने इनसे भी कुछ प्रेरणा ले ली होती।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं )



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