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Shri Digambar Ani Akhara: रामभक्त वैष्णव साधुओं ने थामी थी सनातन धर्म की रक्षा की कमान, जानिए श्री दिगम्बर आणि अखाड़े का इतिहास

Shri Digambar Ani Akhara: भारत देश में अखाड़ों और मठों की स्थापना के कालखंड में सन्‌ 788 से 820 के उत्तरार्द्ध में देश के चार कोनों में कालांतर में शंकराचार्य ने सनातन संस्कृति और धर्म ग्रंथों के प्रचार के लिए चार शंकर मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की थी।

Jyotsna Singh
Published on: 23 Nov 2024 11:58 AM IST
Shri Digambar Ani Akhara history
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Shri Digambar Ani Akhara history  (photo: social media )

Shri Digambar Ani Akhara: कुंभ स्नान के दौरान वैष्णव अखाड़ों के पेशवाई का आभामंडल बड़ा ही दिव्य होता है। जय श्री राम और जय हनुमान के उद्घोष के साथ बैंड बाजा और फूलों से सुसज्जित उनकी शाही अंदाज में निकलने वाली पेशवाई प्रयागराज की सड़कों का खास आकर्षण होती है। वैष्णव अखाड़ों की पेशवाई में आस्था और संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है। इस सम्प्रदाय के आखाड़ों की पेशवाई में धर्म ध्वजा पर विराजमान हनुमान और हाथी, घोड़े,ऊंट और रथों पर सवार संत, महात्माओं और महामंडलेश्वरों को देखने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए सड़क के दोनों ओर एक विशाल हुजूम इकट्ठा रहता है।

कुंभ और अर्धकुंभ के आयोजन में वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों की अहम भूमिका होती है। रामभक्त वैष्णव साधुओं के देवता हनुमान होते हैं। श्री दिगम्बर आणि अखाड़ा इन्हीं में से एक है।

दिगम्बर आणि अखाड़े का इतिहास

भारत देश में अखाड़ों और मठों की स्थापना के कालखंड में सन्‌ 788 से 820 के उत्तरार्द्ध में देश के चार कोनों में कालांतर में शंकराचार्य ने सनातन संस्कृति और धर्म ग्रंथों के प्रचार के लिए चार शंकर मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की थी। बाद में इन्हीं दसनामी संन्यासियों के कई अन्य अखाड़े भी अस्तित्व में आए। जिनमें से सैव सम्प्रदाय के सात अखाड़े हैं। वहीं वैष्णव पंथियों के 3 और उदासिन पंथियों के 3 अखाड़े हैं। जिनमें सन्‌ 660 में सर्वप्रथम आवाह्‍न अखाड़ा, सन्‌ 760 में अटल अखाड़ा, सन्‌ 862 में महानिर्वाणी अखाड़ा, सन्‌ 969 में आनंद अखाड़ा, सन्‌ 1017 में निरंजनी अखाड़ा और अंत में सन्‌ 1259 में जूना अखाड़े की स्थापना की गई थी।

बाद में भक्तिकाल में इन शैव दसनामी संन्यासियों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन बनें, जिन्हें उन्होंने आणि नाम दिया। आणि का अर्थ होता है सेना। यानी शैव साधुओं की ही तरह इन वैष्णव बैरागी साधू धर्म रक्षा के लिए आगे आए और उनके लिए भी अखाड़े बनें। जिसकी शुरुआती दौर की बात करें तो हिंदू धर्म की रक्षा के लिए करीब 500 वर्ष पूर्व नासिक कुंभ में जयपुर राजघराने के राजकुमार ने अपनी संपत्ति दान देकर जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज से दीक्षा ली थी। कालांतर में इनका नाम स्वामी बाला आनंद रखा गया है। स्वामी बाला आनंद ने श्री पंचरामानंदी निर्वाणी आणि, निर्मोही और दिगंबर अखाड़े की स्थापना की।

इन बैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े हैं। जिनमें से दो उत्तर प्रदेश और एक गुजरात में स्थित है।

1. श्री दिगम्बर आणि अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात)।

2.श्री निर्वानी आणि अखाड़ा- हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)।

3. श्री पंच निर्मोही आणि अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)।

यहां हम बात करेंगे वैष्णव संप्रदाय के अखाड़े श्री दिगम्बर आणि अखाड़ा की। जहां की मान्यताएं और परमपराएं शैव सम्प्रदाय से बिल्कुल भिन्न हैं।

जिस तरह शैवपंथ के लिए शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ, गुरु गोरखनाथ हुए, उसी तरह वैष्णवपंथ के लिए रामानुजाचार्य, रामानंदाचार्य, वल्लभाचार्य ने उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने वैष्णव संप्रदायों को पुनर्गठित किया तथा वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान दिलाया। शैव संन्यासियों की तरह वैष्णवों के भी संप्रदाय और अखाड़े हैं।


श्री दिगम्बर आणि अखाड़े की अलग है पहचान

श्री दिगम्बर आणि अखाड़ा में अणी का मतलब होता है समूह या छावनी। श्री दिगम्बर आणि अखाड़े का मठ श्यामलालजी, खाकचौक मंदिर, पोस्ट- श्यामलालजी, जिला-सांभर कांथा, गुजरात में स्थित है। इसका दूसरा मठ दिगम्बर अखाड़ा तपोवन, नासिक, महाराष्ट्र में स्थित है। इस अखाड़े के पहले के संत श्रीमहंत केशवदास और दूसरे के श्रीमहंत रामकिशोर दास रहे हैं। श्री दिगम्बर आणि अखाड़ा बैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़ों में से एक है। यही इस संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा है। बाकी दोनों अखाड़े इसके सहायक के रूप में काम करते हैं। इस अखाड़े की खासियत यह है कि इसके साधु नागा होते हैं । लेकिन इस अखाड़े के नागा साधु निर्वस्त्र न रहकर सफेद रंग के वस्त्र धारण करते हैं। वैष्णव संप्रदाय के ये साधु अपने शरीर पर कोई भस्म या भभूती नहीं लगाते हैं। इस समुदाय की सबसे बड़ी पहचान इन साधुओं के माथे पर लगा उर्ध्वपुंड्र यानी एक तरह का तिलक है। वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों के साधु संत अपने माथे पर त्रिपुंड्र तिलक यानी त्रिशूल जैसा तिलक लगाते हैं। वैष्णव संप्रदाय के इस अखाड़े का झंडा भी बाकी अखाड़ों से अलग होता है।दिगंबर अखाड़े का धर्म ध्वज पांच रंगों का होता है। इनके आराध्य बजरंगबली हनुमान होते हैं। इसी लिए इनके धर्म ध्वज पर हनुमान जी की फोटो का चिन्ह बना होता है।


हिंदू परम्परा और शिक्षा का प्रचार करना है इनका दायित्व

इस अखाड़े के प्रमुख कृष्णदास महाराज हैं।देशभर में इस अखाड़े के लगभग 450 अखाड़े अब तक स्थापित होकर अखाड़े की परंपरा और शिक्षा का प्रचार प्रसार कर रहें हैं। चित्रकूट, अयोध्या, नासिक, वृन्दावन, जगन्नाथपुरी और उज्जैन में इसके एक-एक स्थानीय श्रीमहंत हैं। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य देश दुनिया में हिंदू परम्परा और धर्मों की रक्षा के साथ इनका ज्यादा से ज्यादा प्रचार करना है।


‘नागा’ से महंत बनने के सफर में देनी होती है कड़ी परीक्षा

वैष्णवी अखाड़े में नागा की पदवी पाने के लिए संन्यासी को कठोर मेहनत करनी पड़ती है। यहां महंत की पदवी पाने के लिए नए सन्यासियों को कई सालों तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अखाड़े में हर तरह की सेवा करने के लिए तैयार रहना पड़ता है। इस के बाद ही उसको महंत की पदवी हासिल होती है। वैष्णव अखाड़े की परंपरा के अनुसार जब भी नया संन्यासी संन्यास ग्रहण करता है तो तीन साल तक उसे संतोषजनक सेवा ’टहल’ करने के बाद उसे ’मुरेटिया’ की पदवी प्राप्त होती है। इसके बाद तीन साल में वह संन्यासी ’टहलू’ पद ग्रहण कर लेता है। ’टहलू’ पद पर रहते हुए उसके आचार व्यवहार पर निर्भर करता है कि संत एवं महंत उसे कब नागा की उपाधि देंगे। कई वर्ष की सेवा के बाद उस मत के वरिष्ठ संत एवं महंत उसे ’नागा’ पद पर विराजमान कर देते हैं। नागा बनाने के बाद उसके ऊपर कई और बड़े दायित्व सौंप दिए जाते हैं। एक नागा के ऊपर अखाड़े से संबंधित कई बड़ी जिम्मेदारियां होती हैं। इन जिम्मेदारियों में उस संन्यासी के खरा उतरने पर उसे इससे भी बड़े पद ’नागा अतीत’ की पदवी से विभूषित किया जाता है। नागा अतीत के बाद ’पुजारी’ का दायित्व मिलता है। पुजारी पद मिलने के बाद किसी मंदिर, अखाड़ा या आश्रम में लगातार लंबे समय तक अपनी सेवादारी तय करने पर अंत में ’महंत’की पदवी प्राप्त होती है।


( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं । )



Monika

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Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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