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Vishnu Avatar: श्रीराम और श्रीकृष्ण हैं विष्णु अवतार
Vishnu Avatar: महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन को गीता का उपदेश देकर स्पष्ट रूप से बता दिया था कि वे ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के संचालक है तथा उन्हीं के संकेत मात्र से पंच महाभूतों अर्थात् पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु का संचालन होता है।
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इस पवित्र मंत्र में वर्णित श्री राम एवं श्री कृष्ण के अलौकिक नाम, मानव जगत के लिए वरदान स्वरूप हैं, क्योंकि इन दोनों नामों के स्मरण मात्र से ही मनुष्य के सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं। यदि मनुष्य इनकी पावन छवि को अपने हृदय में स्थान दे देता है तो उसके लिए स्वर्ग के द्वार भी स्वतः खुल जाते हैं । वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। श्री राम एवं श्री कृष्ण दोनों ही, भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। यदि हम दोनों दैवीय शक्तियों के मानवीय अवतार स्वरूप की गई इहलीलाओं का विश्लेषण करें तो उनमें अत्यधिक अंतर पाया जाता है। भगवान राम का अवतरण आज से लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व हुआ था। वहीं श्री कृष्ण का अवतरण लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व का माना जाता है। अर्थात् दोनों ही अलौकिक शक्तियों ने मानव रूप में अवतार लेकर इस पृथ्वी को अपने आशीर्वाद से सिंचित किया।
मर्यादा पुरुर्षोत्तम श्री राम ने अपना सम्पूर्ण जीवन कुल की मर्यादा की रक्षा हेतु समर्पित किया। वहीं श्री कृष्ण ने नटखट बालगोपाल व गोपियों के प्रेमी तथा चतुर राजनयिक के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया। जहाँ एक ओर श्रीराम ने अयोध्या के राजमहल में माँ कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया, वहीं दूसरी ओर श्री कृष्ण ने माँ देवकी के गर्भ से मथुरा की जेल में जन्म लेकर ईश्वरीय शक्ति से बाहर आकर गोकुल में बचपन की लीला की। श्री राम ने एक साधारण मनुष्य की तरह अपना जीवन व्यतीत किया, उनके ईश्वरीय व्यक्तित्व का किसी को एकाएक आभास नहीं हुआ, परन्तु श्री कृष्ण ने शैशवास्था से ही अपने ईश्वरीय व्यक्तित्व का आभास कराया, यथा - मिट्टी खाकर माता यशोदा को ब्रह्माण्ड के दर्शन कराए, राक्षसी पूतना का दुग्धपान कर उसका वध करके यह प्रमाणित कर दिया था कि वे साक्षात ईश्वर है और फिर महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन को गीता का उपदेश देकर स्पष्ट रूप से बता दिया था कि वे ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के संचालक है तथा उन्हीं के संकेत मात्र से पंच महाभूतों अर्थात् पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु का संचालन होता है।
मर्यादा पुरुर्षोत्तम श्री राम ने, अपने जीवन काल में अपने ईश्वरीय स्वरूप को न तो कभी व्यक्त किया और न ही कभी प्रदर्शित किया। सर्वप्रथम अहिल्या उद्धार किया, फिर लंकाधिपति रावण, जिसने इन्द्र एवं काल से लेकर समस्त देवी-देवताओं पर अपना आधिपत्य स्थापित कर रखा था, उसका संहार कर श्री राम ने सम्पूर्ण जगत के समक्ष अपनी ईश्वरीय शक्ति को प्रकट किया।
निःसन्देह श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों ही ईश्वर हैं, इन दोनों अलौकिक शक्तियों के प्रति जनता की आस्था सुदृण होती जा रही है। यह एक बहुत ही सकारात्मक दृश्य है और सम्पूर्ण विश्व भी शनै-शनै इस शाश्वत सच्चाई को अब समझने लगा है।
( लेखक शिक्षा विद् हैं। )