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Hriday Narayan Dixit: श्री राम मंगल भवन हैं और अमंगल हारी

Hriday Narayan Dixit: श्रीराम मंगल भवन हैं और अमंगलहारी। वे भारत के मन में रमते हैं। श्रीराम युद्ध में पौरुष पराक्रम और निजी जीवन में मर्यादा के पुरुषोत्तम हैं।

Hriday Narayan Dixit
Published on: 6 Oct 2022 3:28 PM IST
Shri Ram is Mangal Bhavan and Amangalhari Article of Hriday Narayan Dixit
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भगवान श्री राम। (Social Media)

Hriday Narayan Dixit: श्रीराम मंगल भवन हैं और अमंगलहारी। वे भारत के मन में रमते हैं। मिले तो राम राम, अलग हुए तो राम राम। राम का नाम हम सब बचपन से सुनते आए हैं। वे धैर्य हैं। सक्रियता हैं। परम शक्तिशाली हैं। भाव श्रद्धा में वे ईश्वर हैं। राम तमाम असंभवों का संगम हैं। युद्ध में पौरुष पराक्रम और निजी जीवन में मर्यादा के पुरुषोत्तम। राम भारतीय आदर्श व आचरण के शिखर हैं। भारतीय मनीषा ने उन्हें ब्रह्म या ईश्वर जाना है। श्रीकृष्ण भी विष्णु के अवतार हैं। वे अर्जुन को गीता (10.31) में बताते हैं ''पवित्र करने वालों में मैं वायु हूँ और शास्त्रधारियों में राम हूँ।'' राम महिमावान हैं। श्रीकृष्ण भी स्वयं को राम बताते हैं।

श्रीराम प्रतिदिन प्रतिपल उपास्य हैं लेकिन विजयादशमी व उसके आगे पीछे श्रीराम के जीवन पर आधारित पूरे देश में श्रीराम लीला के उत्सव होते हैं। सम्प्रति देश के कोने कोने रामलीला उत्सव चल रहे हैं। राम भारत बोध में तीनों लोकों के राजा हैं। त्रिलोकीनाथ हैं। सो भारत के बाहर भी इंडोनेशिया आदि देशों में भी श्रीराम लीला होती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की रामलीला विख्यात है। वाराणसी देश की सांस्कृतिक राजधानी है। यहां की रामलीला दर्शनीय है। ग्रामीण क्षेत्रों में गांव गांव रामलीला की परंपरा है। दुनिया के किसी भी देश में एक ही समयावधि में हजारों स्थलों पर ऐसे नाटक नहीं होते। रामलीला में आनंद रस का प्रवाह है।रामलीला के रूप लगातार बदल रहे हैं।

यूरोप के कुछ एक विद्वानों ने रामलीला को लेकर आश्चर्य व्यक्त

यूरोप के कुछ एक विद्वानों ने रामलीला को लेकर आश्चर्य व्यक्त किया है। अभिनय क्षेत्र की सभी कलाएं मनोरंजन करती हैं। रामलीला भी अभिनय कला है। लेकिन रामलीला मनोरंजन का उद्यम नहीं है। सभी नाटकों की एक कथा होती है। प्रायः काल्पनिक होती है। कुछ इतिहास से भी जुड़ी रहती है। लेकिन रामलीला की कथा काल्पनिक नहीं है। यह सत्य कथा है, प्रेरक है। भक्तिरस का प्रवाह है। समाज की मर्यादा इस ऐतिहासिक कथानक का केन्द्रीय विचार है। रामलीला मात्र नाटक नहीं है। मूल रूप में नाटकों में भाव प्रवणता नहीं होती। नाटक की कथा का लेखक भाव अंश डालता है। नाटक के पात्र अपने अभिनय से भाव प्रवणता का सृजन करते हैं।

राम कथा के सभी पात्र भाव प्रवण

राम कथा के सभी पात्र भाव प्रवण हैं। इतिहास में हैं। संस्कृति में हैं। हम सब राम, लक्ष्मण, भारत, शत्रुघन, हनुमान, सुग्रीव आदि से सुपरिचित हैं, उनके प्रति आदर भाव से भरे पूरे हैं। राम कथा हमारे अंतरंग में रची बसी है। हम सहस्त्रों वर्ष से रामलीला के दरश परस में सभी रसों का पान करते आए हैं। रामरसायन में आश्वस्ति है। रामलीला पुरातन राम कथा का पुरश्चरण है। यह कथा पुरातन है, नित्य नूतन है। भारतीय संस्कृति का मधुमय प्रसाद है। रामलीला सिर्फ नाटक नहीं है। भरत मुनि ने विश्व प्रतिष्ठ ग्रंथ नाट्यशास्त्र लिखा है। उन्होंने बताया है कि ''नाटक का मूल रस होता है''। राम कथा सभी रसों की अविरल धारा है। भारत का कला विवेक श्रीराम में रमता है।

रामलीला 'थियेटर इन बेबी शोज' है: एच नीहस

यूरोप के विद्वानों को रामलीला अपरिपक्व लगती है। एच नीहस ने लिखा था कि, रामलीला 'थियेटर इन बेबी शोज' है। बचकाना प्रदर्शन है। घोर अव्यवस्था होती है। दर्शक मंच पर चढ़ जाते हैं। लोग अभिनेताओं के सजने संवरने वाले कक्ष में घुस जाते हैं।'' ऐसा कहने वाले रामलीला में अभिनय के नियम खोजते हैं। वे राम कथा के प्रति भारतीय प्रीति पर ध्यान नहीं देते। सामान्य नाटकों में पात्र अपनी अभिनय कुशलता से दर्शकों के चित्त में भाव उद्दीपन करते हैं। रामलीला में भाव उद्दीपन पहले से ही विद्यमान है। राम कथा मंदाकिनी है। वाल्मीकि तुलसी या कम्ब राम रसायन की रसधारा को शब्द देते हैं। रामलीला में ब्रह्म के मनुष्य होने की गाथा का मंचन है। यहां ब्रह्म मनुष्य रूपधारी श्रीराम हैं।

श्रीराम मनुष्य की तरह हर्ष विषाद में आते हैं। मनुष्य की तरह कर्तव्य पालन करते हैं। उनकी कोई अभिलाषा नहीं। वे अभिलाषा रहित हैं। ब्रह्म अकारण है। उसकी कोई इच्छा नहीं। ब्रह्म का उद्भव ब्रह्म से हुआ। ब्रह्म सदा से है। यही राम रूप प्रकट होता है। वह कर्ता नहीं है। उसके सभी कृत्य लीला हैं। यह विराट जगत भी ब्रह्म की लीला है। वह अभिनय करता है श्रीराम होकर। मनुष्य रूप धारी ब्रह्म श्रीराम होकर मर्यादा पालन करते हैं। उनके सारे निर्णय स्वयं के विरुद्ध हैं। वे प्रतिपल तपते हैं, सीता निष्कासन अग्नि में तपने जैसा दुख देता है लेकिन राम को तप मर्यादा प्रिय है। रामलीला यही तप प्रस्तुत करती है। यहां अभिनय की गुणवत्ता पर बहस का कोई मतलब नहीं। अर्थ रामकथा में है और यह कथा भारत के मन की वीणा है।

दुनिया की पहली रामलीला में ब्रह्म स्वयं राम का अभिनय

दुनिया की पहली रामलीला में ब्रह्म स्वयं राम का अभिनय करते है। साधारण अभिनय नहीं। यहां आदर्श अभिनय के सभी सूत्र एक साथ हैं। आदर्श पितृभक्त। पिता की आज्ञा के अनुसार वन गमन। निषाद राज का सम्मान। अयोध्या से वन पहुंचे भरत को राजव्यवस्था के मूल तत्वों पर प्रबोधन। शबरी सिद्धा का सम्मान। वनवासी राम मोहित करते हैं। यह लीला राज समाज की मर्यादा से बंधी हुई है। विश्व की पहली रामलीला मर्यादा पुरुषोत्तम का जीवन है। हम सब पहली लीला का अनुसरण अनुकरण करते हैं। ब्रह्म स्वयं लीला करता है।

आधुनिक रामलीला का आधार पहली रामलीला

आधुनिक रामलीला का आधार पहली रामलीला है। बड़े बड़े अभिनेता भी पहली रामलीला जैसा अभिनय नहीं कर सकते। पहली रामलीला मौलिक है। आज की रामलीला पहली रामलीला का दोहराव है। रामकथा हमारी परंपरा का हिरण्यकोष है। यह परंपरा के हिरण्यगर्भ से प्रकट हुई है। ऋग्वेद के एक मंत्र में कहते हैं, ''सबसे पहले हिरण्यगर्भ था, वही सबका स्वामी था''। पहली रामलीला का मुख्य पात्र परम सत्ता है। इसी परंपरा में कोई राम का अभिनय करता है, कोई लक्ष्मण आदि का। हम रामलीला में हर बरस रावण फूंकते हैं लेकिन रावण नहीं मरता। रावण मारने के लिए श्रीराम जैसा धीरज व पराक्रम चाहिए।

रामलीला इतिहास के अनुकरणीय तत्वों का पुनर्सृजन

कथित प्रगतिशील तत्व रामलीला को अतीत में ले जाने का नाटक बताते हैं लेकिन रामलीला अतीत की यात्रा नहीं है। यह इतिहास के अनुकरणीय तत्वों का पुनर्सृजन है। भारतीय चिंतन में हम सबका जीवन भी नाटक जैसा है। संसार इस नाटक का स्टेज है। हम अल्पकाल में अभिनय करते हैं। पर्दा उठता है। खेल शुरू होता है। पर्दा गिरता है, खेल खत्म हो जाते हैं। रामलीला का रस सभी रसों का संगम है। राम और रावण भारतीय चिंतन के दो आयाम हैं। एक सिरे पर श्रीराम की अखिल लोकदायक विश्रामा अभिलाषा है, मर्यादा पालन की प्राथमिकता है। दूसरे छोर पर रावण की धन बल अहमन्यता है। श्रीराम और रावण के युद्ध में विजयश्री श्रीराम का वरण करती है। यह विजयश्री असाधारण है।

श्रीराम वन गमन के समय माता कौशल्या से मिले थे। माता ने उनसे कहा था, ''मैं तुम्हे नहीं रोकूंगी। तुम जाओ। लेकिन पुत्र अमृत लेकर ही लौटना। मैं प्रार्थना करती हूँ कि तुम्हारे द्वारा पढ़ा गया ज्ञान वन में तुम्हारी सहायता करे। इन्द्र आदि देवता तुम्हारी रक्षा करें।'' राम निर्धारित अवधि के बाद विजय अमृत लेकर ही लौटे। राम राज्य दुनिया की सभी राजव्यवस्थाओं का आदर्श है। यह काल वाह्य नहीं है। आधुनिक काल के सबसे बड़े सत्याग्रही म० गांधी ने आदर्श राजव्यवस्था के लिए राम राज्य को ही भारत का स्वप्न बताया था। रामलीला इसी आदर्श की पुनर्प्रस्तुति है।



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Deepak Kumar

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