श्रीलंका की दाल में कुछ काला

भारत की सभी सरकारें श्रीलंका के तमिल अल्पसंख्यकों के लिए न्याय की मांग करती रही हैं और उन्हें स्वायत्तता देने का समर्थन करती रहती थी।

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Published on: 29 Sep 2020 4:05 AM GMT
श्रीलंका की दाल में कुछ काला
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श्रीलंका और भारत के संबंधों में पिछले कुछ वर्षों में काफी उतार-चढ़ाव आए। लेकिन अब जबकि श्रीलंका में भाई-भाई राज है याने गोटबाया और महिंद राजपक्ष क्रमशः राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हैं। आपसी संबंध बेहतर बनने की संभावनाएं दिखाई पड़ रही हैं। लेकिन अभी- अभी दाल में कुछ काला दिखाई पड़ने लगा है। महिंद राजपक्ष कुछ समय पहले तक श्रीलंका के शक्तिशाली राष्ट्रपति के रुप में शासन कर चुके हैं। उन्हें तमिल उग्रवादियों और आतंकियों का सफाया करने का श्रेय दिया गया था। वे सिंहल जनता के महानायक बन चुके थे। लेकिन भारत के साथ उनके दो मतभेद थे। पहता तो यह कि उन्हें तमिल-विरोधी माना जाता था।

भारत ने की तमिलों को न्याय देने की बात

श्रीलंका में तमिलों ने अलग देश बनाने का आंदोलन चला रखा था। उस पर जयवर्द्धन और श्रीमावो बंदारनायक की सरकारें काबू नहीं कर पाई थी। लेकिन महिंद राजपक्ष ने उग्र तमिल-विरोधी युद्ध के कारण भारत से भी दूरी बना ली थी। भारत की सभी सरकारें श्रीलंका के तमिल अल्पसंख्यकों के लिए न्याय की मांग करती रही हैं और उन्हें स्वायत्तता देने का समर्थन करती रहती थी। इसी कारण भारत का पड़ौसी होने के बावजूद श्रीलंका चीन से नत्थी होता गया। लेकिन महिंद राजपक्ष की सरकार ने अब भारत-प्रथम का नारा दिया है। 26 सितंबर को महिंद राजपक्ष और नरेंद्र मोदी के बीच वार्तालाप हुआ, वह भारत की नजर से काफी अच्छा रहा।

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India-Sri Lanka भारत-श्रीलंका सम्बंध (फाइल फोटो)

लेकिन ताज़ा खबर यह है कि उस बातचीत का जो संयुक्त वक्तव्य निकला है, उसकी बात श्रीलंका सरकार की विज्ञप्ति में से नदारद है। प्रधानमंत्री मोदी ने राजपक्ष से अनुरोध किया था कि वे श्रीलंकाई संविधान के 13 वें संशोधन को ठीक से लागू करवाएं याने तमिलों को संघात्मक अधिकार दें। शक्तियों का विकेंद्रीकरण करे। महिंद राजपक्ष ने इस पर सहमति जताई, ऐसा दावा हमारे विदेश मंत्रालय ने किया था लेकिन श्रीलंका सरकार के बयान से यह सहमति गायब है।

तमिल मुद्दा तय करेगा भारत-श्रीलंका के आगे के संबंध

India-Sri Lanka भारत-श्रीलंका सम्बंध (फाइल फोटो)

महिंद राजपक्ष के बड़े भाई और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्ष पहले से ही कह चुके हैं कि हमारी सरकार ‘‘विकेंद्रीकरण की बजाय विकास’’ पर ध्यान देगी। सत्तारुढ़ सिंहल-पार्टी की यह मजबूरी है, क्योंकि श्रीलंका के सवा दो करोड़ लोगों में 75 प्रतिशत सिंहली हैं और तमिल सिर्फ 11-12 प्रतिशत हैं। श्रीलंका के तमिल अपने अधिकारों की रक्षा के लिए भारत और खास तौर से तमिलनाडु की तरफ देखते हैं। भारत की पहल पर ही 1987 में जयवर्द्धन-सरकार 13 वां संशोधन लाई थी।

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अब राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्ष का कहना है कि नया संविधान बनेगा, जिसमें से 13 वें संशोधन को हटा दिया जाएगा। 13 वें संशोधन के कई प्रावधानों को आज 33 साल बाद भी लागू नहीं किया गया है। यह मामला श्रीलंका के सिंहलों और तमिलों के बीच तो तूल पकड़ेगा ही, यह भारत और श्रीलंका के बीच भी तनाव पैदा करेगा। मोदी और राजपक्ष ने आपसी सहयोग के कई अन्य मुद्दों पर भी बात की थी लेकिन यह तमिल मुद्दा ही दोनों देशों के संबंधों को तय करेगा।

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