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K Vikram Rao: सामंजस्य का प्रतीक: सोनपुर मेला !

सोनपुर के विश्वविख्यात पशु मेले की भी हुई है। पारंपरिक कार्तिक पूर्णिमा 8 नवंबर के स्थान पर इस वर्ष यह उत्सव रविवार यानी 20 नवंबर 2022 को होगा।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 11 Nov 2022 6:43 PM IST (Updated on: 11 Nov 2022 6:44 PM IST)
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सोनपुर मेला

K Vikram Rao: कभी भारत का सबसे लंबा रेलवे प्लेटफॉर्म सोनपुर (Railway Platform Sonpur) होता था। आज पूर्व-मध्य रेलवे (East Central Railway) के इस महत्वपूर्ण स्टेशन का प्लेटफार्म घटकर सातवें पायदान पर आ गया है। पहले नंबर पर कर्नाटक का हुबली है। बीच में गोरखपुर, कोल्लम, खड़गपुर, बिलासपुर और झांसी आ गए।

सोनपुर के विश्वविख्यात पशु मेला

ऐसी ही उपेक्षा सोनपुर के विश्वविख्यात पशु मेले की भी हुई है। पारंपरिक कार्तिक पूर्णिमा (8 नवंबर 2022) के स्थान पर इस वर्ष यह उत्सव रविवार (20 नवंबर 2022) को होगा। कारण है कि उस दिन चंद्र ग्रहण लगा था। अतः नई तिथि है माघ माह की एकादशी (रविवार 20 नवंबर 2022)। चंद्र ग्रहण के कारण सूतक लगा था। इसका प्रभाव आठ घंटे पहले से ही लागू हो गया। इस वजह से हरिहर नाथ मंदिर का पट बंद रहा। यह प्रथम बार है कि कार्तिक मेले पर चंद्र ग्रहण लगा। इसका असर धार्मिक महत्ता के हिसाब से बुरा पड़ रहा है।

वैदिक आस्था से जुड़ा उपलक्ष्य है मवेशी मेला

यह मेला मात्र मवेशी मेला नहीं है। वैदिक आस्था से जुड़ा उपलक्ष्य है। हालांकि इस पर संकट तो छा गया है। वैसा ही देश की पुरातन धरोहर पशु हाथी पर भी है, जो मेले का खास आकर्षण है। इसके बेशकीमती धवल दंत के कारण इसके अस्तित्व पर भी मुसीबत आई है। एशिया के अन्य हाथियों की तुलना में भारत का सर्वाधिक महंगा होता है। इसे 1959 में ही संकटग्रस वन्यजीव घोषित किया गया था। इसीलिए आठवीं पंचवर्षीय योजना से इसके संरक्षण हेतु विशेष प्रावधान रखे गए थे। इन्हीं हाथियों के कारण सोनपुर चर्चित हो गया। आस्थावानों के लिए तीर्थ स्थल भी। यहीं भगवान विष्णु ने अपने भक्त हाथी की मगरमच्छ के दांतो से रक्षा की थी। यहीं अलौकिक सूत्र गजेंद्र मोक्ष उच्चारित हुआ था। इस पूरे भूभाग को हरिहर (विष्णु-शिव) क्षेत्र कहा गया है। बिहार प्रदेश का तीर्थविशेष। हरिहर का यह संयुक्त तीर्थस्थान है। यह गंगा यह नारायणी (बड़ी गंडक) के संगम तट पर पटना के पास सोनपुर में स्थित है। यही समन्वयात्मक हरिहरनाथ का मंदिर है। कार्तिक पूर्णिमा को यहां विशाल मेला होता है। इसमें देशदेशांतर के लाखों लोग सम्मिलित होते हैं। वाराह पुराण में हरिहरक्षेत्र का माहात्मय निगदित है।

मेले की पौराणिक कथा

यूं तो आश्चर्य की बात है कि सबसे बलशाली चौपाये हाथी को तुलनात्मक रूप से उससे कम शक्तिवाले मगर से टक्कर हुई। दोनों मे जंग लंबी अवधि तक चली। इसी नारायणी-गंगा के संगम तट पर हुआ था। पौराणिक कथा है की यहां कोणाहार घाट पर विष्णु के दो भक्त गस और ग्रह भिड़ गए थे। इस संदर्भ में एक गाथा है। द्रविड़ देश में एक पाण्ड्यवंशी राजा राज्य करते थे। नाम था इंद्रद्युम्न। वे भगवान की आराधना में ही अपना अधिक समय व्यतीत करते थे। उनकी आस्था थी कि भगवान विष्णु ही मेरे राज्य की व्यवस्था करते है। अतः वे प्रभु की उपासना में ही दत्तचित्त रहते थे। एकदा महर्षि अगस्त्य अपने समस्त शिष्यों के साथ वहां पहुँच गए। मौनव्रती राजा इंद्रद्युम्न परम प्रभु के ध्यान में निमग्न थे। इससे महर्षि अगस्त्य ने कुपित होकर इंद्रद्युम्न को शाप दे दिया- "इस राजा ने गुरुजनो से शिक्षा नहीं ग्रहण की है और अभिमानवश परोपकार से निवृत होकर मनमानी कर रहा है। ऋषियों का अपमान करने वाला यह राजा हाथी के समान जड़बुद्धि है इसलिए इसे घोर अज्ञानमयी हाथी की योनि प्राप्त हो।"

गजेन्द्र योनि मे जन्मे राजा ने एक दिन अपने साथियों सहित प्यास से व्याकुल था। वह कमल की गंध से सुगंधित वायु को सूंघकर एक चित्ताकर्षक विशाल सरोवर के तट पर जा पहुंचा। गजेन्द्र ने उस सरोवर के निर्मल,शीतल और मीठे जल में प्रवेश किया। पहले तो उसने जल पीकर अपनी तृषा बुझाई, फिर जल में स्नान कर अपना श्रम दूर किया। तभी अचानक गजेन्द्र ने सूंड उठाकर चीत्कार की। पता नहीं किधर से एक मगर ने आकर उसका पैर पकड़ लिया था। गजेन्द्र ने अपना पैर छुड़ाने के लिए पूरी शक्ति लगाई परन्तु उसका वश नहीं चला, पैर नहीं छूटा।" निश्चय के साथ गजेन्द्र मन को एकाग्र कर पूर्वजन्म में सीखे श्रेष्ठ स्त्रोत द्वारा परम प्रभु की स्तुति करने लगा।"

गजेन्द्र की स्तुति सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुये। गजेन्द्र को पीड़ित देखकर भगवान विष्णु गरुड़ पर आरूढ़ होकर अत्यंत शीघ्रता से सरोवर के तट पर पहुंचे। जब जीवन से निराश तथा पीड़ा से छटपटाते गजेन्द्र ने हाथ में चक्र लिए गरुड़ारूढ़ भगवान विष्णु को तेजी से अपनी ओर आते देखा तो उसने कमल का एक सुन्दर पुष्प अपनी सूंड में लेकर ऊपर उठाया और बड़े कष्ट से कहा- "नारायण ! जगद्गुरो ! भगवान ! आपको नमस्कार है।" तब भगवान विष्णु गरुड़ की पीठ से कूद पड़े और गजेन्द्र के साथ ग्राह को भी सरोवर से बाहर खींच लाए और तुरंत अपने तीक्ष्ण चक्र से ग्राह का मुंह फाड़कर गजेन्द्र को मुक्त कर दिया।

यह हरिहर योग है जिसका उल्लेख कई ग्रंथों तथा इतिहास में है। श्रीमद्भागवत के अष्टम स्कंध अध्याय में 33 श्लोक है जिसे हाथी ने सुनाया फिर विष्णु की मदद मांगी थी। सोनपुर के संगम तट पर ऐसा हुआ था। जनकपुरी स्वयंवर में जाते वक्त राम यहीं आए थे। आराधना की थी। वैदिक धर्म के अनुरूप गमनीय तथ्य यह है कि शैव तथा वैष्णव जन सदैव युद्धरत रहते थे। इस हरिहर योग में दोनों में सामंजस्य स्थापित हो गया। भले ही बिहार राज्य में आजकल राजनैतिक सामंजस्य संभव नहीं हो पाया है इन नेताओं की अभी ग्रह शांति होनी शेष है। सोनपुर आकर सीखें।



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Deepak Kumar

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