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विश्वविद्यालयों में अशांति की अनदेखी कितनी उचित, कौन है इसके पीछे
इन दिनों यूपी के विश्वविद्यालयों के परिसर बेहद अशांत हैं। इस अशांति की वजह भी लगभग एक तरह की है। इस पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए।
योगेश मिश्र
इन दिनों यूपी के विश्वविद्यालयों के परिसर बेहद अशांत हैं। इस अशांति की वजह भी लगभग एक तरह की है। अचानक प्रदेश के उच्च शिक्षा परिसरों में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की घटनाओं ने इस कदर आकार ले लिया है कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) से उठी चिंगारी ने प्रदेश के कई परिसरों को लील लिया। अब तो राज्य के तकरीबन छह विश्वविद्यालयों में छेड़छाड़ की घटनाएं हो चुकी हैं। हद तो यह है कि अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में भी लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की शिकायतें सामने आने लगी हैं। बीएचयू में भी वहां के कुलपति गिरीश त्रिपाठी के अवकाश पर जाने के बावजूद एक दूसरी लड़की पर एक लड़के ने क्लास में थप्पड़ बरसाया। उसके बाल खींचे।
मामले मे पकड़ा तूल
पीएम नरेंद्र मोदी के बीते दिनों वाराणसी यात्रा के दौरान बीएचयू में एक लड़की से छेड़छाड़ का मामला इस कदर तूल पकड़ा कि पीएम की यात्रा का मार्ग बदलना पड़ा। महिला आयोग की अध्यक्ष, जिला प्रशासन आदि के मुताबिक, इस घटना के तूल पकड़ने की वजह बीएचयू प्रशासन की अदक्षता रही। यूनिवर्सिटी प्रशासन का सर्वोच्च कुलपति होता है।
नतीजतन, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कुलपति को छुट्टी पर भेजे जाने का रास्ता निकालकर सोचा कि परिसरों में शांति बहाल हो जाएगी। पर यह वाकया सिर्फ छेड़छाड़ और परिसर की शांति से नहीं जुड़ा था।
बीएचयू में छात्र संघ चुनाव की मांग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) समेत सभी राजनीतिक दलों की छात्र इकाइयां कर रही थीं। यहां के कुलपति गिरीश त्रिपाठी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के हार्डकोर लोगों में माने जाते हैं। उन्हें छात्र संघ बहाली नहीं सुहा रही थी।
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जातीय राजनीति का अखाड़ा
हालांकि, छात्र संघ बहाली के आंदोलन में अगुवा नेशनल यूनियन स्टूडेंट्स ऑफ़ इंडिया (एनएसयूआई) और वामपंथी छात्र संगठन थे। उनके अपने संगठन की ओर से भदोही के सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त के बेटे इस बहाली की कमान थामें थे।
बीएचयू लंबे समय से जातीय राजनीति का अखाड़ा बना है। यहां ब्राह्मण, ठाकुर और भूमिहार जातियां अपने प्रभुत्व के लिए परिसर में अशांति जनती रही हैं। गिरीश त्रिपाठी के कुलपति बनने के बाद से संघ के लोगों को परिसर में तरजीह मिलने लगी। परिसर का माहौल राष्ट्रवाद में बदलने लगा।
नतीजतन वामपंथी छात्र संगठनों ने जातीय राजनीति की बैशाखी पर सवार होकर अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिए इस परिसर को सबसे माकूल पाया। रोहित वेमुला कांड के बाद पीएम मोदी लखनऊ के भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी में आए तो उनके भाषण के दौरान छात्रों ने खड़े होकर विरोध जताया। इसके ठीक बाद उन्हें बीएचयू के एक कार्यक्रम में जाना था। अंदेशे बड़े थे। लेकिन पीएम के बीएचयू के कार्यक्रम में किसी भी आशंका को आधार नहीं मिला।
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कुलपति फोर्स मांगते रहे नहीं मिली
परिसरों में सियासत करने वालों के लिए यह बड़ी विफलता थी। हालांकि, बीएचयू के कुलपति ने पिछले मुख्य सचिव और पिछली सरकार से यूनिवर्सिटी के लिए अलग पीएसी की मांग की थी, जो नहीं मिली। इस सरकार में भी उनकी मांग जारी थी।
बीएचयू में हुए बवाल के ठीक एक दिन पहले उन्होंने परिसर में अशांति की आशंका के मद्देनजर जिला प्रशासन से पत्र लिखकर फोर्स मांगी थी, पर पीएम के शहर मेें होने की वजह से प्रशासन के लिए यह संभव नहीं हो सका। बीएचयू के बाद लखनऊ यूनिवर्सिटी में बीबीए की एक छात्रा के साथ एक लड़के ने छेड़छाड़ की। यह लड़का, लड़की को व्हाट्स एप पर अश्लील मैसेज भेजता था।
ये था मामला
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बीए की एक छात्रा ने प्राचीन इतिहास विभाग के एक छात्र पर छेड़खानी का आरोप लगाया। हालांकि, छात्र को निष्कासित कर दिया गया। आईआईटी कानपुर में एक लडक़ी के साथ बाहर के एक लडक़े ने छेड़छाड़ की। जिसकी एफआईआर कल्याणपुर थाने में दर्ज कराई गई।
पूर्वांचल यूनिवर्सिटी, जौनपुर में एक छात्रा की कक्षा में घुसकर दो आरोपियों ने उसके कपड़े फाड़ डाले। बुंदेलखुड यूनिवर्सिटी में भी छेड़छाड़ की वारदात को अंजाम दिया गया। बीएचयू में एक लड़के ने एमए की एक छात्रा को क्लास में थप्पड़ मारा और बाल पकड़कर खींचा। यह इस परिसर में दूसरी वारदात थी। यूपी में तकरीबन सभी परिसर अशांति की भेंट चढ़े हैं।
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मंसूबों पर सवाल
छात्र संघ चुनावों में एबीवीपी को जगह नहीं मिल पा रही है। परिसरों में जो कुछ हो रहा है उसे सिर्फ वारदात या कानून व्यवस्था का मामला मानकर छोड़ना सत्तारूढ़ दल के लिए समझदार फैसला नहीं होगा। अचानक परिसरों में छेड़छाड़ की घटनाएं एक के बाद एक क्यों होती जा रही हैं? कौन लोग कर रहे हैं? उनके इरादे क्या हैं? कहीं उनके मंसूबों को पूरा करने में ही तो इन घटनाओं को कानून व्यवस्था के हवाले करने का काम नहीं किया जा रहा है।
बीएचयू की वारदात में जिस तरह जेएनयू के लोगों का हाथ दिखा, जिस तरह सिर्फ बीएचयू प्रशासन के सिर जिम्मेदारी फोड़ी गई, जिस तरह कुलपति को छुट्टी पर भेजा गया। उसके बाद भी बीएचयू ही नहीं दूसरे परिसर भी उसी तरह की छेड़छाड़ की घटनाओं के गवाह बन रहे हैं। इस पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए कि कहीं परिसरों को संपूर्ण क्रांति के लिए तैयार करने की कवायद तो नहीं जारी है।