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सर्वोपरि बुद्धिमत्ता और बहुआयामी व्यक्तित्व: ऐसे हैं श्री गणेश

भारतीय देव परम्परा में सर्वाधिक विलक्षण देवता हैं श्री गणेश। उनकी वाह्य आकृति जितनी अद्भुत है, आंतरिक स्वरूप उतना की गहन व गूढ़। हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य गणपति वंदना के बिना शुरू नहीं होता। वे विघ्नहर्ता हैं, शुभत्व का पर्याय हैं, सद्ज्ञान के

tiwarishalini
Published on: 25 Aug 2017 12:51 PM GMT
सर्वोपरि बुद्धिमत्ता और बहुआयामी व्यक्तित्व: ऐसे हैं श्री गणेश
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पूनम नेगी

लखनऊ: भारतीय देव परम्परा में सर्वाधिक विलक्षण देवता हैं श्री गणेश। उनकी वाह्य आकृति जितनी अद्भुत है, आंतरिक स्वरूप उतना की गहन व गूढ़। हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य गणपति वंदना के बिना शुरू नहीं होता। वे विघ्नहर्ता हैं, शुभत्व का पर्याय हैं, सद्ज्ञान के प्रदाता हैं, उन्हें ऋद्धि- सिद्धि का स्वामी माना जाता है। सर्वाधिक विविध स्वरूपों में पूजे जाने वाले ऐसे सार्वदेशिक लोकप्रिय देवता का जन्मोत्सव भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को संपूर्ण दुनिया में उमंग व हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

यूं तो सनातन भारतीय संस्कृति में बहुदेववाद की परिकल्पना आदि काल से ही है लेकिन वैदिक संस्कृति में पंच तत्वों के प्रतीक रूप में जिन पांच महा शक्तियों (सूर्य, शक्ति, विष्णु, शिव और गणेश) की उपासना की परम्परा हमारे ऋषियों ने डाली थी, उनमें गणेश सर्वोपरि माने जाते हैं। इसीलिए वैदिक युग से वर्तमान समय तक उनकी स्वीकार्यता प्रथम पूज्य देवशक्ति की बनी हुई है। उन्हें गणाधीश कहा जाता है।

सर्वोपरि बुद्धिमत्ता, बहुआयामी व्यक्तित्व तथा लोकनायक सा उदात्त चरित्र है उनका। गणेशजी को प्रथम लिपिकार माना जाता है। उन्होंने ही देवताओं की प्रार्थना पर वेदव्यासजी द्वारा रचित महाभारत को लिपिबद्ध किया था। सर्वाधिक विविधतापूर्ण आकृतियों वाले गजानन गणेश भारतीय समाज में बेहद गहराई से पैठे हुए हैं। प्राचीनकाल से हिन्दू समाज की दैनिक उपासना भी गणपति के नमन के साथ ही शुरू होती है।

विशिष्ट हो या साधारण सभी लौकिक कार्यों का शुभारंभ गणपति के स्मरण के साथ किया जाता है। विवाह का मांगलिक अवसर हो या नये घर, दुकान, मकान या भूमि का शिलान्यास, मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव हो या कोई भी पर्व-त्योहार प्रत्येक का शुभारंभ गणपति पूजन से होता है। व्यापारी अपने बही-खातों पर श्री गणेशाय नम लिखकर आरंभ करते हैं। घर के प्रवेश पर गणेश प्रतिमा लगाया शुभ माना जाता है।

इनकी आकृति जितनी मनोहारी है, उसका दर्शन भी उतना ही शिक्षाप्रद। शास्त्रों में वर्णित गजानन गणेश के शाब्दिक अर्थ के अनुसार गज शब्द दो व्यंजनों से बना है- ग यानी गति या गंतव्य व ज अर्थात जन्म अथवा उद्गम। अर्थात जो उत्पत्ति से लेकर अंत तक का बोध कराए।

'गज' शब्द संकेत देता है कि जहां से आए हो वहीं जाना होगा। गणेश पुराण में कहा गया है कि ब्रह्म और जगत के यथार्थ को बताने वाली परम शक्ति हैं गणेश। देवाधिदेव शिव और जगतजननी मां पार्वती के पुत्र गणेश की अनूठी आकृति के बारे में कई रोचक पौराणिक वृतांत मिलते हैं।

गणेश जी की शारीरिक रचना के पीछे भगवान शिव की व्यापक सोच कही जा सकती है। गणेशजी का गज मस्तक उनकी बुद्धिमत्ता व विवेकशील का प्रतीक है। उनकी सूंढ कुशाग्र घ्राण संवेदनशक्ति की द्योतक है जो हर विपदा को दूर से ही सूंघ कर पहचान लेती है। छोटी छोटी आंखें गहन व अगम्य भावों की परिचायक हैं जो जीवन में सूक्ष्म लेकिन तीक्ष्ण दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। उनका लंबा उदर सारी बातों की पचा लेने के भाव को इंगित करता है। गणेश जी के सूप की तरह के कान सीख देते हैं कि हमें कान का कच्चा नहीं होना चाहिए। उनकी स्थूल देह में वह गुरुता निहित है जो गणनायक में होनी चाहिए।

tiwarishalini

tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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