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श्री रामचंद्र मिशन के संस्थापक श्री रामचन्द्र की जयंती (30 अप्रैल) पर विशेष

सामूहिक ध्यान बाबूजी की तमाम वैज्ञानिक-आध्यात्मिक खोजों की श्रंखला में एक बड़ी और महत्वपूर्ण नेमत है। बाबा रामदेव से लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और बैडमिंटन स्टार पी.वी. सिन्धु से लेकर कई राज्यों के राज्यपाल तक इस गौरवशाली क्षण के गवाह बने।

राम केवी
Published on: 29 April 2020 7:05 AM GMT
श्री रामचंद्र मिशन के संस्थापक श्री रामचन्द्र की जयंती (30 अप्रैल) पर विशेष
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ऋषि रंजन

आज दुनिया भर में चर्चित श्री रामचंद्र मिशन के संस्थापक श्री रामचन्द्र आध्यात्मिकता के एक महान वैज्ञानिक थे। लोग उन्हें प्यार से ‘बाबूजी’ कहते हैं। उन्होंने एक वैज्ञानिक की तरह आध्यात्मिकता का वर्णन किया है। उन्होंने बताया कि हमारा स्थूल भौतिक रूप न तो आकस्मिक है और न ही संयोगवश। यह दरअसल विकास की धीमी प्रक्रिया का परिणाम है। उस अदृश्य शक्ति का जिससे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ उसे परमतत्व का आदि दिव्य-मनस कह सकते हैं। योग में प्राथमिक बात ‘वैयक्तिक-मन’ का उचित नियमन है जो बेचैन रहता है। यदि आप अपने ‘वैयक्तिक-मन’ को 'आदि-मन' के स्तर तक ला सकते हैं तो उस वास्तविक सत्य और ईश्वरत्व की अनुभूति पा सकते हैं।

नई क्रांति के संवाहक

अपनी इस नितान्त वैज्ञानिक ख़ोज के साथ बाबूजी महाराज आध्यात्मिकता के क्षेत्र में एक नई क्रान्ति लेकर आए। उन्होंने पुरातन और बहुत समय से भूली हुई यौगिक प्राणाहुति की तकनीक को परिष्कृत किया और इसे जीवन का ध्येय प्राप्त करने के लिए सीधे और अचूक मार्ग के रूप में मानव पूर्णता के उस उच्चतम स्तर तक जिसे ईश्वरत्व कह सकते हैं, ले जाने के लिए प्रस्तुत किया।

यह पुरातन तकनीक मानवों के रूपांतरण के लिए दिव्य ऊर्जा का इस्तेमाल करती है। यौगिक प्राणाहुति मूल स्रोत से निकलने वाला एक पवित्र उत्सर्जन है। चूँकि यह स्रोत्र से उत्सर्जित है इसीलिए इसमें वह क्षमता है कि यह हमें उस स्रोत्र तक ले चल सके। अध्यात्म के इतिहास में यह अद्वितीय है। मानव विकास के उच्चतम लक्ष्य यानी ईश्वरत्व की प्राप्ति इसी जीवन में संभव बनाने की इसकी क्षमता आश्चर्यजनक है।

चेतना का ज्ञान निशुल्क देना चाहिए

बाबूजी महाराज मानते थे कि चेतना का क्रमिक विकास हर मनुष्य का जन्म-सिद्ध अधिकार है तथा हर सच्चे जिज्ञासु को इसे निःशुल्क प्रदान किया जाना चाहिए। उनका मानना था कि एक सच्चा गुरु वास्तव में एक परम सेवक होता है। वे किसी भी तरह के ज़ात-पात, धर्म, राष्ट्रीयता अथवा स्त्री-पुरुष का भेद-भाव किए बग़ैर आजीवन मानव जाति की सेवा करते रहे।

उनका कहना था कि भौतिक और आध्यात्मिक जीवन पक्षी के दो पंखों की तरह हैं जो साथ-साथ चलते हैं। गृहस्थ जीवन प्रेम तथा त्याग जैसे गुणों को सीखने के लिए सबसे उपयुक्त वातावरण प्रदान करता है। उन्होंने वक्त के साथ बदलती ज़रूरतों के अनुकूल प्राचीन राज योग पद्धति को सरलीकृत व परिष्कृत किया ताकि हर एक व्यक्ति गृहस्थ जीवन में रहते हुए इसका अभ्यास करके लाभ उठा सके।

दिव्य मार्ग का पथ प्रशस्त किया

उन्होंने कहा कि दिव्य व्यक्तित्व के धरती पर मौजूद होने के कारण आजकल साक्षात्कार अत्यंत सरल हो गया है। लोग आम तौर पर मुक्ति के आगे सोच ही नहीं पाते और उसे ही वे मानव पहुँच की अंतिम सीमा मान लेते हैं। परंतु यह विचार ग़लत है। हक़ीकत यह है कि मुक्ति तो दिव्य मार्ग की निम्नतम कोटि की उपलब्धि है। उसके आगे अभी बहुत कुछ हासिल करने के लिए बाकी है।

यह तो अनंत सागर है जिसका विस्तार अपरिमित है, असीमित है। समाधि की वास्तविक अवस्था वह है जिसमें इंसान पवित्र और सरल असलियत से हर क्षण जुड़ा रहता है, चाहे वह सांसारिक काम-काज और दायित्वों में हमेशा कितना ही व्यस्त क्यों न हो। बकौल बाबूजी, इसी को सहज-समाधि कहते हैं जो श्रेष्ठ उपलब्धियों में से एक है।

मानवीय प्रकृति का रूपांतरण दिव्य प्रकृति में

आज श्री रामचंद्र मिशन संसार के लगभग हर देश में मौजूद हैं और करोड़ों मनुष्य इससे अपनी मानवीय प्रकृति का रूपांतरण हृदय में स्थित उस दिव्य प्रकृति में कर रहे हैं। इन अभ्यासों से मनुष्य अहंकार की कैद से अहंकार से मुक्ति की ओर, साकार पूजा से निराकार की ओर, संकुचन से विस्तार की ओर, बेचैनी से चैन की ओर, बनावट से असल की ओर, हठ से स्वीकार्यता की ओर, असन्तुलन से सन्तुलन की ओर, अँधेरे से उजाले की ओर, भारीपन से हल्केपन की ओर, स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर, ‘यहाँ और अभी’ से शाश्वत व समय-रहित अस्तित्व की ओर, परिधि से अस्तित्व के उद्‌गम, स्रोत या उच्च स्व की ओर तेज़ी से रूपांतरित हो रहा है।

बाबूजी का यूपी में हुआ जन्म

30 अप्रैल, 1899 में शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) में बाबूजी का जन्म हुआ था। जून, 1922 में बाईस साल की उम्र में उनकी भेंट अपने गुरुदेव से हुई। संयोगवश उनका नाम भी रामचन्द्र ही था जो फतेहगढ़ में रहते थे। प्यार से लोग उन्हें लालाजी कहते थे। अपने गुरुदेव के पवित्र नाम को सम्मानित करने के लिए उन्होंने 1945 में श्री रामचन्द्र मिशन की स्थापना की। उस समय की यह छोटी सी शुरुआत आज अपने 75वें साल में है।

इसके गर्भ से उपजा श्री रामचंद्र मिशन अब 140 से अधिक देशों में फैल चुका है। करोड़ों लोग इसकी दिव्य रूपांतरण की प्रक्रिया से लाभान्वित हो रहे हैं। भारत में हैदराबाद से 50 किलोमीटर दूर रंगा रेड्डी जिले में चेगुर गाँव के पास स्थित कान्हा शांति वनम् में 1400 एकड़ के परिसर में श्री रामचंद्र मिशन का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय है।

श्री रामचंद्र मिशन के वर्तमान वैश्विक गाइड श्री कमलेश पटेल (दाजी) ने हाल ही में इस परिसर में विश्व का सबसे बड़ा ध्यान केंद्र आध्यात्मिकता के जिज्ञासुओं को समर्पित किया। इसके मेडिटेशन हॉल में एक साथ एक लाख लोग बैठकर सामूहिक ध्यान कर सकते हैं।

सामूहिक ध्यान बाबूजी की तमाम वैज्ञानिक-आध्यात्मिक खोजों की श्रंखला में एक बड़ी और महत्वपूर्ण नेमत है। बाबा रामदेव से लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और बैडमिंटन स्टार पी.वी. सिन्धु से लेकर कई राज्यों के राज्यपाल तक इस गौरवशाली क्षण के गवाह बने।

(लेखक आईटी कंपनी आई.बी.एम में बतौर ग्लोबल लीडर कार्यरत हैं और हार्टफुलनेस के सर्टीफाइड ट्रेनर हैं । वह वास्तविकता के विषयों पर एक विचारक और प्रसिद्ध वक्ता हैं )

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