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कहानी: गिरगिट- अच्छा! तो तू काटेगा? शैतान कहीं का!

raghvendra
Published on: 15 Dec 2017 4:41 PM IST
कहानी: गिरगिट- अच्छा! तो तू काटेगा? शैतान कहीं का!
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अन्तोन चेखव

पुलिस का दारोगा ओचुमेलोव नया ओवरकोट पहने, बगल में एक बण्डल दबाये बाजार के चौक से गुजर रहा था। उसके पीछे-पीछे लाल बालों वाला पुलिस का एक सिपाही हाथ में एक टोकरी लिये लपका चला आ रहा था। टोकरी जब्त की गई झड़बेरियों से ऊपर तक भरी हुई थी। चारों ओर खामोशी। चौक में एक भी आदमी नहीं। भूखे लोगों की तरह दुकानों और शराबखानों के खुले हुए दरवाजे ईश्वर की सृष्टि को उदासी भरी निगाहों से ताक रहे थे, यहंा तक कि कोई भिखारी भी आसपास दिखायी नहीं देता था।

अच्छा! तो तू काटेगा? शैतान कहीं का! ओचुमेलोव के कानों में सहसा यह आवाज आयी, पकड़ तो लो, छोकरो! जाने न पाये! अब तो काटना मना हो गया है! पकड़ लो! आ आह!

कुत्ते की किकियाने की आवाज सुनायी दी। आचुमेलोव ने मुडक़र देखा कि व्यापारी पिचूगिन की लकड़ी की टाल में से एक कुत्ता तीन टांगों से भागता हुआ चला आ रहा है। कलफदार छपी हुई कमीज पहने, वास्कट के बटन खोले एक आदमी उसका पीछा कर रहा है। वह कुत्ते के पीछे लपका और उसे पकडऩे की कोशिश में गिरते-गिरते भी कुत्ते की पिछली टांग पकड़ ली। कुत्ते के किकियाने और वही चीख- ‘जाने न पाये!’ दोबारा सुनाई दी। ऊंघते हुए लोग दुकानों से बाहर गरदनें निकालकर देखने लगे, और देखते-देखते एक भीड़ टाल के पास जमा हो गयी, मानो जमीन फाडक़र निकल आयी हो।

हुजूर! मालूम पड़ता है कि कुछ झगड़ा-फसाद हो रहा है! सिपाही बोला। आचुमेलोव बाईं ओर मुड़ा और भीड़ की तरफ चल दिया। उसने देखा कि टाल के फाटक पर वही आदमी खड़ा है। उसकी वास्कट के बटन खुले हुए थे। वह अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाये, भीड़ को अपनी लहूलुहान उँगली दिखा रहा था। लगता था कि उसके नशीले चेहरे पर साफ लिखा हुआ हो, अरे बदमाश! और उसकी उँगली जीत का झंडा है। आचुमेलोव ने इस व्यक्ति को पहचान लिया। यह सुनार खूकिन था। भीड़ के बाचोंबीच अगली टांगें फैलाये अपराधी, सफेद ग्रेहाउँड का पिल्ला, छिपा पड़ा, ऊपर से नीचे तक कंाप रहा था। उसकी आंसू-भरी आंखों में मुसीबत और डर की छाप थी।

यह क्या हंगामा मचा रखा है यहंा? आचुमलोव ने कंधों से भीड़ को चीरते हुए सवाल किया। यह उॅँगली क्यों ऊपर उठाये हो? कौन चिल्ला रहा था?

हुजूर! मैं चुपचाप अपनी राह जा रहा था, बिल्कुल गाय की तरह, खूकिन ने अपने मुँह पर हाथ रखकर, खाँसते हुए कहना शुरू किया, मिस्त्री मित्रिच से मुझे लकड़ी के बारे में कुछ काम था। एकएक, न जाने क्यों, इस बदमाश ने उँगली में काट लिया।.. हुजूर माफ करें, पर मैं कामकाजी आदमी ठहरा, और फिर हमारा काम भी बड़ा पेचीदा है। एक हफ्ते तक शायद मेरी उँगुली काम के लायक न हो पायेगी। कुछ मुझे हर्जाना दिलवा दीजिए। और हुजूर, कानून में भी कहीं नहीं लिखा है कि हम जानवरों को चुपचाप बरदाश्त करते रहें।

..अगर सभी ऐसे ही काटने लगें, तब तो जीना दूभर हो जायेगा। हुंह..अच्छा.. ओचुमेलाव ने गला साफ करके, त्योरियाँ चढ़ाते हुए कहा, ठीक है। अच्छा, यह कुत्ता है किसका? मैं इस मामले को यहीं नहीं छोडूँगा! कुत्तों को खुला छोड़ रखने के लिए मैं इन लोगों को मजा चखाऊँगा! जो लोग कानून के अनुसार नहीं चलते, उनके साथ अब सख्ती से पेश आना पड़ेगा! ऐसा जुर्माना ठोकूँगा कि छठी का दूध याद आ जायेगा। बदमाश कहीं के! मैं अच्छी तरह सिखा दूँगा कि कुत्तों और हर तरह के ढोर-डंगर को ऐसे छुट्टा छोड़ देने का क्या मतलब है! मैं उसकी अक्ल दुरुस्त कर दूँगा, येल्दीरिन!

सिपाही को संबोधित कर दरोगा चिल्लाया, पता लगाओ कि यह कुत्ता है किसका, और रिपोर्ट तैयार करो! कुत्ते को फौरन मरवा दो! यह शायद पागल होगा। मैं पूछता हूं, यह कुत्ता किसका है? शायद जनरल जिगालोव का हो! भीड़ में से किसी ने कहा।

जनरल जिगालोव का? हुँह येल्दीरिन, जरा मेरा कोट तो उतारना। ओफ, बड़ी गरमी है। मालूम पड़ता है कि बारिश होगी। अच्छा, एक बात मेरी समझ में नही आती कि इसने तुम्हें काटा कैसे? ओचुमेलोव खूकिन की ओर मुड़ा, यह तुम्हारी उँगली तक पहुंचा कैसे? यह ठहरा छोटा-सा जानवर और तुम हो पूरे लम्बे-चौड़े। किसी कील-वील से उँगली छील ली होगी और सोचा होगा कि कुत्ते के सिर मढक़र ह$र्जाना वसूल कर लो। मैं खूब समझता हूं! तुम्हारे जैसे बदमाशों की तो मैं नस-नस पहचानता हूं! इसने उसके मुंह पर जलती सिगरेट लगा दी थी, हुजूर! यूं ही मजाक में और यह कुत्ता बेवकूफ तो है नहीं, उसने काट लिया। यह शख्स बड़ा फिरती है, हुजूर!

अबे! झूठ क्यों बोलता है? जब तूने देखा नहीं, तो गप्प क्यों मारता है? और सरकार तो खुद समझदार हैं। वह जानते हैं कि कौन झूठा है और कौन सच्चा। और अगर मैं झूठा हूँ तो अदालत में फैसला करा लो। कानून में लिखा है अब हम सब बराबर हैं। खुद मेरा भाई पुलिस में है..बताये देता हूं.हाँ। बंद करो यह बकवास! नहीं, यह जनरल साहब का कुत्ता नहीं है। सिपाही ने गंभीरतापूर्वक कहा, उनके पास ऐसा कोई कुत्ता है ही नहीं, उनके तो सभी कुत्ते शिकारी पौण्डर हैं।

तुम्हें ठीक मालूम है? जी सरकार। मैं भी जनता हूं। जनरल साहब के सब कुत्ते अच्छी नस्ल के हैं। एक-से-एक कीमती कुत्ता है उनके पास। और यह तो बिल्कुल ऐसा-वैसा ही है, देखो न! बिल्कुल मरियल है। कौन रखेगा ऐसा कुत्ता? तुम लोगों का दिमाग तो खराब नहीं हुआ? अगर ऐसा कुत्ता मास्को या पीटर्सबर्ग में दिखाई दे तो जानते हो क्या हो? कानून की परवाह किये बिना, एक मिनट में उससे छुट्टी पा ली जाये! खूकिन! तुम्हें चोट लगी है। तुम इस मामले को यों ही मत टालो। इन लोगों को मजा चखाना चाहिए! ऐसे काम नहीं चलेगा। लेकिन मुमकिन है, यह जनरल साहब का ही हो। सिपाही बड़बड़ाया, इसके माथे पर तो लिखा नहीं है। जनरल साहब के अहाते में मैंने कल बिल्कुल ऐसा ही कुत्ता देखा था। हंा-हंा, जनरल साहब का तो है ही! भीड़ में से किसी की आवाज आयी।

येल्दीरिन, जरा मुझे कोट तो पहना दो। अभी हवा का एक झोंका आया था, मुझे सर्दी लग रही है। कुत्ते को जनरल साहब के यहंा ले जाओ और वहंा मालूम करो। कह देना कि मैने इस सडक़ पर देखा था और वापस भिजवाया है। और हॉँ, देखो, यह कह देना कि इसे सडक़ पर न निकलने दिया करें। मालूम नहीं, कितना कीमती कुत्ता हो और अगर हर बदमाश इसके मुँह में सिगरेट घुसेड़ता रहा तो कुत्ता बहुत जल्दी तबाह हो जायेगा। कुत्ता बहुत नाजुक जानवर होता है। और तू हाथ नीचा कर, गधा कहीं का! अपनी गन्दी उँगली क्यों दिखा रहा है?

सारा कुसूर तेरा ही है। यह जनरल साहब का बावर्ची आ रहा है, उससे पूछ लिया जाये। ऐ प्रोखोर! जरा इधर तो आना, भाई! इस कुत्ते को देखना, तुम्हारे यहंा का तो नहीं है? वाह! हमारे यहंा कभी भी ऐसा कुत्ता नहीं था! इसमें पूछने की क्या बात थी? बेकार वक्त खराब करना है, ओचुमेनलोव ने कहा, आवारा कुत्ता है। यहंा खड़े-खड़े इसके बारे में बात करना समय बरबाद करना है। तुमसे कहा गया है कि आवारा है तो आवारा ही समझो। मार डालो और छुट्टी पाओ?’’ हमारा तो नहीं है। प्रोखोर ने फिर आगे कहा, यह जनरल साहब के भाई का कुत्ता है। हमारे जनरल साहब को ग्रेहाउँड के कुत्तों में कोई दिलचस्पी नहीं है, पर उनके भाई साहब को यह नस्ल पसन्द है।

क्या? जनरल साहब के भाई आये हैं? ब्लादीमिर इवानिच? अचम्भे से ओचुमेलोव बोल उठा, उसका चेहरा आह्वाद से चमक उठा। सोचो तो! मुझे मालूम भी नहीं! अभी ठहरेंगे क्या?

हाँ। वाह जी वाह! वह अपने भाई से मिलने आये और मुझे मालूम भी नहीं कि वह आये हैं! तो यह उनका कुत्ता है? बहुत खुशी की बात है। इसे ले जाओ। कैसा प्यारा नन्हा-सा मुन्ना-सा कुत्ता है। इसकी उँगली पर झपटा था! बस-बस, अब कंापों मत। गुर्र गुर्र शैतान गुस्से में है कितना बढिय़ा पिल्ला है! प्रोखोर ने कुत्ते को बुलाया और उसे अपने साथ लेकर टाल से चल दिया। भीड़ खूकिन पर हंसने लगी। मैं तुझे ठीक कर दूंगा। ओचुमेलोव ने उसे धमकाया और अपना लबदा लपेटता हुआ बाजार के चौक के बीच अपने रास्ते चला गया।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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