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S Ve Shekher Controversy: महिला पत्रकार की आबरू रखी, सुप्रीम कोर्ट ने ! सिनेस्टार दंडित

S Ve Shekher Controversy: वह इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) की तमिलनाडु इकाई मद्रास यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स की वरिष्ठ सदस्या रहीं। इस प्रकरण में बनवारीलाल पुरोहित, अब पंजाब के राज्यपाल (तब तमिलनाडु गवर्नर), का संदर्भ भी था।

K Vikram Rao
Published on: 1 Sept 2023 8:24 AM IST
S Ve Shekher Controversy: महिला पत्रकार की आबरू रखी, सुप्रीम कोर्ट ने ! सिनेस्टार दंडित
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S Ve Shekher Controversy: photo: social media )

S Ve Shekher Controversy: सुप्रीम कोर्ट ने निर्दिष्ट किया है कि सोशल मीडिया पर डाले अभद्र पोस्ट पर क्षमा याचना करके भी कोई बच नहीं पाएगा। कोई भी हीलाहवाली, टालमटोल, बहानेबाजी स्वीकार्य नहीं है। उसको सजा भुगतना जरूरी है। न्यायालय की खंडपीठ (न्यायमूर्तिद्वय भूषण रामकृष्ण गवई तथा प्रशांत कुमार) ने 18 अगस्त , 2023 को यह फैसला दिया। मामला तमिलनाडु के एक महिला पत्रकार का है। वह इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) की तमिलनाडु इकाई मद्रास यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स की वरिष्ठ सदस्या रहीं। इस प्रकरण में बनवारीलाल पुरोहित, अब पंजाब के राज्यपाल (तब तमिलनाडु गवर्नर), का संदर्भ भी था।

आरोपी हैं विख्यात तमिल फिल्मी सितारे एस. वे. शेखर जो अब भाजपा विधायक हैं। पहले अन्ना द्रमुक के थे। वे रंगकर्मी, पटकथा-लेखक, अभिनेता, निदेशक, राजनेता और तमिलभाषा के विद्वान हैं। दक्षिण भारत में ब्राह्मण संगठनों के महासंघ की संस्थापक भी। पूर्व मैकेनिकल इंजीनियर से बने इस एक्टर ने कोर्ट को बताया कि उसने बगैर पढ़े एक पोस्ट को फॉरवर्ड किया था। तब उनकी आंखो में दवाई पड़ी थी, अतः वह ठीक से पोस्ट पढ़ नहीं सके। इस फिल्मी अदाकार के सहयोगी हैं कमल हसन, रजनीकांत, आदि। पूर्व राष्ट्रपति स्व. एपीजे अब्दुल कलाम ने शेखर को उम्दा हास्य अभिनेता कहा था। उन्हें तमिलनाडु का शीर्ष कलैनार पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।

न्यायमूर्तिद्वय ने इस 73-वर्षीय सिनेस्टार के हर तर्क को खारिज कर दिया। उनके इस पोस्ट के बाद काफी विवाद हुआ था। DMK ने विधानसभा से उनके इस्तीफे की मांग की थी। शेखर ने बाद में माफी मांगी और पोस्ट भी डिलीट कर दिया था, लेकिन इस पोस्ट को लेकर उनके खिलाफ तमिलनाडु में केस दर्ज किए गए थे। इस एक्टर ने किसी और का पोस्ट शेयर किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा : “आपको सोशल मीडिया पर लाखो लोग फॉलो करते हैं, जिसकी वजह से पोस्ट शेयर करते ही वायरल हो गया।”

सूचनाओं का आदान प्रदान होता है, तो जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती

सोशल मीडिया के दौर में हम कुछ पोस्ट, ट्वीट, मैसेज, फोटो और वीडियो को आगे फॉरवर्ड कर देते हैं, बिना इस बात की तस्दीक किए कि ये सच या झूठ, अफवाह है या हकीकत ? हम ऐसे करते वक्त नहीं सोचते हैं कि किसी भी झूठ, भ्रामक वायरल मैसेज, वीडियो, फोटो या ट्वीट को शेयर करते ही ये सैकड़ों-हजारों लोगों तक पहुंच जाता है। सोशल मीडिया को हम मनोरंजन के तौर पर बेशक इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जब सूचनाओं का आदान प्रदान होता है, तो हमारी जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है। इसलिए हमें पता होना चाहिए कि झूठी खबर को बिना सोचे समझे शेयर करना कितना भारी पड़ सकता है, कौन कौन सी धाराओं में आप पर कार्रवाई हो सकती है ? अक्सर यूजर्स अपने अकाउंट के बायो में लिखते हैं कि ‘रि-ट्विट नॉट एंडॉर्समेंट’, लेकिन क्या ऐसा लिखने से टि्वटर यूजर्स अपनी जिम्मेदरियों से किसी आपराधिक दायित्व से बच सकते हैं ? कदापि नहीं।

यह सारा प्रकरण 18 अप्रैल 2018 का है जब तमिलनाडु के तत्कालीन राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित (अधुना हरियाणा के गवर्नर) थे। एकदा चेन्नई राजभवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुरोहितजी ने एक महिला रिपोर्टर साप्ताहिक, “दि वीक” की विशेष संवाददाता रहीं, लक्ष्मी सुब्रमण्यम के कपोल का स्पर्श किया था। उस पत्रकार ने शिकायत की कि इन 80-वर्षीय पुरुष ने उसके गालों को थपथपाया था। उसने ट्विटर पर कहा : "मैंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तमिलनाडु के राज्यपाल से एक सवाल पूछा और उन्होंने मेरी सहमति के बिना मेरे गाल को छुआ। लक्ष्मी ने गवर्नर को विरोध पत्र में लिखा : “मैंने कई बार अपना चेहरा धोया, लेकिन इस घटना से उबर नहीं पाई हूं। यह आपकी ओर से प्रशंसा की घटना हो सकती थी, लेकिन मुझे आपकी यह हरकत पसंद नहीं आयी। किसी महिला की इजाजत के बिना उसे छूना सही नहीं है।” कई वरिष्ठ पत्रकारों और मंत्रियों ने राज्यपाल पुरोहित के कृत्य की निंदा की थी।

महिला को लिखे जवाब में राज्यपाल ने क्या लिखा ?

बाद में इस महिला को लिखे जवाब में राज्यपाल ने कहा कि “तुम मेरी पोती जैसी हो।” उन्होंने खेद भी व्यक्त किया। माफी भी मांगी। पुरोहितजी ने लिखा : “मैं 40 वर्षों से पत्रकारिता में हूं। मैं क्षमा मांगता हूं।” पुरोहितजी राजनीति में पत्रकारिता से आए हैं। मूलतः बनवारीलाल पुरोहित शुरू में घी के व्यापारी थे। अशोक घी नामक विक्रेता संस्थान उनका पैतृक व्यवसाय था। फिर सियासत में प्रवेश किया। प्रारंभ में वे इंदिरा-कांग्रेस के सदस्य थे। दो बार सांसद रहे। (दल बदलकर भाजपा में आए)। उसके पूर्व वे विदर्भ के समर्थन में पृथकतावादी सियासत करते रहे। फिर राम मंदिर के मसले पर भाजपा में आ गये।

मगर अभिनेता शेखर पर तो अदालत ने बहुत रोष व्यक्त किया। प्रारंभिक सुनवाई में मद्रास हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश ने शेखर की क्षमा याचना को नामंजूर कर दिया था। इस पूरे “लक्ष्मी प्रकरण” पर शेखर ने सोशल मीडिया पर लिखा था कि “हालिया शिकायतों से ज़ाहिर है, वे (पत्रकार) रिपोर्टर और एंकर तब तक नहीं बन सकती हैं, जब तक वे बड़े लोगों के साथ सो न लें। अनपढ़ बेवकूफ भद्दे लोग। तमिलनाडु मीडिया में मोटे तौर पर यही हैं। यह महिला भी अपवाद नहीं है।" दरअसल, राज्यपाल को उस महिला को छूने के बाद 'अपने हाथ फिनाइल से धोने चाहिए था।'

न्यायमूर्ति वेंकटेश ने शेखर की भर्त्सना करते लिखा कि सोशल मीडिया पोस्ट एक तीर की तरह है जो तरकश से निकला तो न वापस लिया जा सकता है और न मिटाया जा सकता है। नतीजन सुप्रीम कोर्ट ने भी शेखर को दोषी माना और दंड दिया। हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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K Vikram Rao

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