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Maharashtra : पिछड़े की कोई जाति नहीं होती
सरकार ने वे आंकड़े उस वक्त जाहिर नहीं किए थे। उन्हें वह अब जाहिर करे।
सर्वोच्च न्यायालय ( Supreme Court) के एक प्रश्न के जवाब में भारत सरकार (Indian government) का यह कहना पूर्णतया तर्कसंगत है कि जनगणना करते समय अन्य पिछड़ी जातियों की जनगणना नहीं की जाएगी। महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) महाराने अदालत से कहा है कि वह केंद्र सरकार को यह निर्देश दे कि वह इस साल हो रही जनगणना में पिछड़ी जातियों की भी गणना करें। महाराष्ट्र की शिवसेना और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का तर्क यह है कि 2011 की जनगणना में सरकार ने एक आयाम जोड़ा था, जिसके अंतर्गत जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर आंकड़े इकट्ठे किए गए थे। सरकार ने वे आंकड़े उस वक्त जाहिर नहीं किए थे। उन्हें वह अब जाहिर करे। इस तर्क को रद्द करते हुए सरकार ने कहा है कि उस समय इकट्ठे किए गए आंकड़े इतने अजीबो-गरीब थे कि उन्हें जाहिर करना उचित नहीं होता।
महाराष्ट्र की आबादी 10 करोड़ 3 लाख है
यह ठीक है कि अब तक सिर्फ अनुसूचित जातियों और कबीलों की गणना की गई है। जहां तक पिछड़ों की गणना का सवाल है, पहली बात तो यह है कि हर जाति के लोग अपने आप को पिछड़ा बताने के लिए तैयार हो जाते हैं, क्योंकि नौकरियों में आरक्षण की चूसनी उनके लिए लटकाई जाएगी। उसका नतीजा यह होना है कि किसी प्रदेश के एक जिले में जो जाति सवर्ण है, वही दूसरे प्रदेश के अन्य जिले में पिछड़ी है। अकेले महाराष्ट्र में जो हुआ, वही हमारे लिए बड़ा सबक है। महाराष्ट्र की आबादी 10 करोड़ 3 लाख है। उसमें से 1.17 करोड़ ने लिखाया कि उनकी कोई जाति नहीं है। शेष लोगों ने अपनी-अपनी जातियां लिखवाई, जिनकी संख्या 4 लाख 28 हजार थी। इनमें अनुसूचित और पिछडी जातियों की संख्या सिर्फ 494 थी। इनमें भी ज्यादतर जातियों में 100 से ज्यादा लोग नहीं होते थे।
2011 की जनगणना में 46 लाख तक पहुंच गई
1931 की जनगणना में जातियों की संख्या पूरे भारत में 4147 थी । लेकिन 2011 की जनगणना में उनकी संख्या छलांग मारकर 46 लाख तक पहुंच गई। किसी भी व्यक्ति की जाति को निर्धारित करने का कोई निश्चित वैज्ञानिक पैमाना नहीं है। वह जो कह दे, वही सही है। सच्चाई तो यह है कि पिछड़ा, पिछड़ा होता है। उसकी कोई जाति नहीं होती। हर जाति में पिछड़े हैं और हर जाति में अगड़े हैं। इसीलिए जनगणना करनेवाले बाबू लोग कभी-कभी बड़े विभ्रम में पड़ जाते हैं। वे देखते हैं कि गांवों के बड़े-बड़े जमींदार, जिनके बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं, वह अपनी जात के आधार पर अपने को पिछड़ों में शामिल करवा लेते हैं।
2011 में पिछड़ेपन का सर्वेक्षण करवाया गया
सरकार ने 2011 में पिछड़ेपन का सर्वेक्षण करवाया था। उसमें जाति संबंधी जानकारी भी मांग ली जाती थी । लेकिन 2010-11 में चले हमारे सर्वदलीय 'मेरी जाति हिंदुस्तानी' आंदोलन ने इतना तगड़ा दबाव बनाया कि सरकार ने उन आंकड़ों को प्रकट ही नहीं किया। वर्तमान भाजपा सरकार का यह संकल्प स्वागत योग्य है कि वह जातीय जनगणना नहीं करवाएगी। महाराष्ट्र सरकार में शामिल सभी वर्तमान और पूर्व कांग्रेसियों को अपनी महान परंपरा का पालन करते हुए जातीय जनगणना का विरोध अवश्य करना चाहिए।