Hate Speech: नफरती बयानों पर तुरंत रोक लगे

Hate Statement: सर्वोच्च न्यायालय का सरकार से यह आग्रह बिल्कुल उचित है कि नफरती बयानों पर रोक लगाने के लिए वह तुरंत कानून बनाए।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 16 Jan 2023 1:56 PM GMT
Supreme Court
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Supreme Court (Social Media)

Hate Statement: सर्वोच्च न्यायालय का सरकार से यह आग्रह बिल्कुल उचित है कि नफरती बयानों पर रोक लगाने के लिए वह तुरंत कानून बनाए। यह कानून कैसा हो और उसे कैसे लागू किया जाए, इन मुद्दों पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि संसद, सारे जज और न्यायविद् और देश के सारे बुद्धिजीवी मिलकर विचार करें। यह मामला इतना पेचीदा है कि इस पर आनन-फानन कोई कानून नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि देश के बड़े से बड़े नेता, नामी-गिरामी बुद्धिजीवी, कई धर्मध्वजी और टीवी पर जुबान चलानेवाले दंगलबाज- सभी अपने बेलगाम बोलों के लिए जाने जाते हैं।

उत्तर प्रदेश में पिछले एक साल में ऐसे मामलों की 400 प्रतिशत बढ़ोतरी

कभी वे दो टूक शब्दों में दूसरे धर्मों, जातियों, पार्टियों और लोगों पर हमला बोल देते हैं और कभी इतनी घुमा-फिराकर अपनी बात कहते हैं कि उसके कई अर्थ निकाले जा सकते हैं। वैसे अखबार तो इस मामले में जरा सावधानी बरतते हैं। यदि वे स्वयं सीमा लांघें तो उन्हें पकड़ना आसान होता है लेकिन टीवी चैनल और सामाजिक मीडिया में सीमाओं के उल्लंघन की कोई सीमा नहीं है। अकेले उत्तर प्रदेश में सिर्फ पिछले एक साल में ऐसे मामलों की 400 प्रतिशत बढ़ोतरी हो गई है। वहां और उत्तराखंड में 581 ऐसे मामले सामने आए हैं।

2008 से लेकर अब तक आपत्तिजनक बयानों पर 4000 शिकायतें दर्ज

2008 से लेकर अब तक हमारे टीवी चैनलों पर ऐसे आपत्तिजनक बयानों पर 4000 शिकायतें दर्ज हुई हैं। अखबार में छपे हुए नफरती बयानों से कहीं ज्यादा असर टीवी चैनलों पर बोले गए बयानों का होता है। करोड़ों लोग उन्हें सुनते हैं और उस पर उनकी प्रतिक्रिया तुरंत होती है। उदयपुर में एक दर्जी की हत्या कैसे हुई और कुछ प्रदेशों में दंगे कैसे भड़के? ये सब टीवी चैनलों की मेहरबानी के कारण हुआ। हमारे ज्यादातर टीवी चैनल अपनी दर्शक-संख्या बढ़ाने के लिए कोई भी दांव-पेंच अख्तियार कर लेते हैं। उन्हें न राष्ट्रहित की चिंता होती है और न ही वे सामाजिक सद्भाव की परवाह करते हैं। ऐसे मर्यादाहीन चैनलों को दंडित करने के लिए कड़े कानून बनाए जाने चाहिए। यदि ऐसे कानून बन गए तो ये चैनल हर वाद-विवाद को रेकार्ड करके पहले संयमित करेंगे और फिर उसे अपने दर्शकों को दिखाएंगे।

इससे भी ज्यादा करूण कहानी तथाकथित सामाजिक मीडिया (सोश्यल मीडिया) की है। इसका नाम 'सामाजिक' है लेकिन यह सबसे ज्यादा 'असामाजिक' हो जाता है। यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अद्भुत मंच है लेकिन इसका जितना दुरूपयोग होता है, किसी और माध्यम का नहीं होता। इसको मर्यादित करने के लिए भी कई उपाय किए जा सकते हैं। सरकार ने अश्लीलता के विरुद्ध तो कुछ सराहनीय कदम उठाए हैं लेकिन नफरती सामग्री के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जरूरत है।

Deepak Kumar

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