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Chhath Puja Special: सूर्य पर्व विशेष सृष्टि में बैकुंठ के प्रकाश से लोक को अनुगृहीत करते हैं सूर्य गीता

Chhath Puja Special: सूर्य जिसके वंश से सृष्टि संचालित है। भगवान श्रीराम का कुल। अंग देश अर्थात आज के बिहार के भागलपुर क्षेत्र का वह भाग जहां कर्ण ने राज्य किया। कुंती के गर्भ से उत्पन्न सूर्य पुत्र।

Sanjay Tiwari
Published on: 7 Nov 2024 8:45 AM IST
Chhath Puja Special ( Pic- Social- Media)
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Chhath Puja Special ( Pic- Social- Media)

Chhath Puja Special: सूर्य पर्व। लोक साधना। अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ्य। वेद और गायत्री की लोक साधना का पर्व। वह पर्व जो बैकुंठ के प्रकाश को सूर्य के माध्यम से सृष्टि को गति देता है। वह सूर्य जिसके वंश से सृष्टि संचालित है। भगवान श्रीराम का कुल। अंग देश अर्थात आज के बिहार के भागलपुर क्षेत्र का वह भाग जहां कर्ण ने राज्य किया। कुंती के गर्भ से उत्पन्न सूर्य पुत्र। कलियुग के कल्पतरु श्री हनुमान जी के गुरु सूर्य की साधना का पर्व। सृष्टि और प्रकृति का अद्भुत पर्व। अद्भुत लोक अनुष्ठान।

श्रीमदभगवद्गीता में सूर्य के बारे में भगवान ने कई बातें कही हैं। गीता में भगवान कहते है कि सूर्य, चंद्रमा, और अग्नि वैकुंठलोक को प्रकाशित नहीं कर सकते। वैकुंठलोक स्वयं प्रकाशित होता है और भौतिक आकाश में उसका प्रकाश ही दिखता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देते समय कहा है कि उन्होंने पहले सूर्यदेव को ही गीता का उपदेश दिया था। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि सृष्टि के आरंभ में उन्होंने अविनाशी योग का ज्ञान सूर्य को दिया था। सूर्य ने यह ज्ञान मनु को दिया और मनु ने इक्ष्वाकु को। कालांतर में उस ज्ञान के क्षीण हो जाने के बाद अब, अर्थात महाभारत के रणक्षेत्र में वही जान वह दे रहे हैं। ( आज से 5300 वर्ष पूर्व)

भगवद् गीता के अध्याय 11, श्लोक 12 में संजय ने भगवान के विश्वरूपी दिव्य तेज का वर्णन किया है। उन्होंने इसकी चमक को हज़ारों चमकते सूर्यों के प्रकाश से तुलना की है। भगवद् गीता के अध्याय 10, श्लोक 21 में श्रीकृष्ण ने सूर्य की शक्ति के बारे में बताया है। उन्होंने कहा है कि रात के समय सभी तारे, चंद्रमा, और दीपक मिलकर भी रात के अंधेरे को दूर नहीं कर सकते, लेकिन सूर्य उदय होने पर रात दूर हो जाती है।श्रीमद्भागवतम् श्लोक 4.12.36 में ऋषि मैत्रेय मुनि विदुरजी को ध्रुव महाराज की वैकुंठ लोक की शानदार यात्रा का वर्णन करते हुए कहते हैं,

यद् ब्रजमानं स्व-रुचैव सर्वतो

लोकास त्रयो ह्य अनु विभ्रजंता एते

यं नवराजं जन्तुषु ये 'नानुग्रहा

व्रजन्ति भद्राणि कैरन्ति ये 'निशम्।।

स्वयं प्रकाशमान वैकुंठ लोक, जिनके प्रकाश से ही इस भौतिक जगत के सभी प्रकाशमान लोक परावर्तित प्रकाश देते हैं, उन तक वे लोग नहीं पहुँच सकते जो अन्य जीवों के प्रति दयालु नहीं हैं। केवल वे व्यक्ति ही वैकुंठ लोक तक पहुँच सकते हैं जो अन्य जीवों के लिए निरंतर कल्याणकारी कार्यों में लगे रहते हैं।यहाँ वैकुंठ लोक के दो पहलुओं का वर्णन है । पहला यह कि वैकुंठ आकाश में सूर्य तथा चन्द्रमा की आवश्यकता नहीं है। इसकी पुष्टि उपनिषदों तथा भगवद्गीता से और भी स्पष्ट होती है।

न तद् भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः ।।(भगवद्गीता 15.6)

आध्यात्मिक जगत में वैकुंठलोक स्वयं प्रकाशित हैं ; इसलिए सूर्य , चन्द्रमा या विद्युत प्रकाश की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में वैकुंठलोक का प्रकाश ही भौतिक आकाश में प्रतिबिम्बित होता है। केवल इस प्रतिबिम्बन से ही भौतिक ब्रह्माण्डों के सूर्य प्रकाशित होते हैं; सूर्य के प्रकाशित होने के पश्चात् सभी तारे तथा चन्द्रमा प्रकाशित होते हैं। दूसरे शब्दों में, भौतिक आकाश में सभी प्रकाशमान प्राणी वैकुंठलोक से प्रकाश प्राप्त करते हैं। हालाँकि, इस भौतिक संसार से लोगों को वैकुंठलोक में स्थानांतरित किया जा सकता है, यदि वे अन्य सभी जीवों के लिए निरंतर कल्याणकारी गतिविधियों में संलग्न हों। ऐसी निरंतर कल्याणकारी गतिविधियाँ वास्तव में केवल कृष्ण चेतना में ही की जा सकती हैं। इस भौतिक संसार में कृष्ण चेतना के अलावा कोई ऐसा परोपकारी कार्य नहीं है जो किसी व्यक्ति को चौबीसों घंटे व्यस्त रख सके।कृष्ण भावनाभावित प्राणी सदैव यह योजना बनाने में लगा रहता है कि समस्त पीड़ित मानवता को कैसे वापस भगवान के पास ले जाया जाए। यदि कोई सभी पतित आत्माओं को वापस भगवान के पास ले जाने में सफल न भी हो, तो भी, चूँकि वह कृष्ण भावनाभावित है , इसलिए वैकुंठलोक का उसका मार्ग खुला रहता है।

वह व्यक्तिगत रूप से वैकुंठलोक में प्रवेश करने के योग्य हो जाता है, और यदि कोई ऐसे भक्त का अनुसरण करता है, तो वह भी वैकुंठलोक में प्रवेश करता है। अन्य, जो ईर्ष्यापूर्ण गतिविधियों में संलग्न होते हैं, कर्मी कहलाते हैं। कर्मी एक-दूसरे से ईर्ष्या करते हैं। केवल इन्द्रिय तृप्ति के लिए, वे हजारों निर्दोष जानवरों को मार सकते हैं। ज्ञानी कर्मी जितने पापी नहीं होते , लेकिन वे दूसरों को वापस भगवान के पास ले जाने का प्रयास नहीं करते। वे अपनी मुक्ति के लिए तपस्या करते हैं। योगी भी रहस्यवादी शक्तियाँ प्राप्त करने का प्रयास करके आत्म-प्रशंसा में लगे रहते हैं। केवल कृष्णभावनाभावित व्यक्ति ही आध्यात्मिक जगत में प्रवेश करने के पात्र हैं। यह इस श्लोक में स्पष्ट रूप से कहा गया है और भगवद्गीता में इसकी पुष्टि की गई है , जिसमें भगवान कहते हैं कि जो लोग संसार को भगवद्गीता का उपदेश देते हैं, उनसे अधिक उन्हें कोई प्रिय नहीं है ।यदि समस्त ब्रह्मांडो में प्रसारित प्रकाश के बारे में भगवान स्वयं व्याख्या करते हैं तो स्वाभाविक है कि सनातन जगत के कण कण में विद्यमान उस परम सत्ता की असीम कृपा पाने का यह लोक यज्ञ सबसे पवित्र और सरल माध्यम ही प्रतीत हो रहा है।

छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।।



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Shalini Rai

Shalini Rai

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