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ढिंचक पूजा - ये नाम और काम ही स्वयं में सृजन का विशिष्ट प्रकार है
अरविंद शर्मा
ढिंचक पूजा - ये नाम और काम ही स्वयं में सृजन का विशिष्ट प्रकार है। ढिंचक पूजा जी सामाजिक चेतना की वो सशक्त आवाज़ हैं जो कई सदियों से दबी हुई थी बल्कि उसे दबाया गया था।
अब जमाना बदल चुका है। नया जमाना नई तकनीक से लैस सशक्तिकरण का है। हर हाथ शक्ति और हर हाथ तरक्की हमें हमारी सरकार मुहैया करवा रही है। कुछ दिन पहले मेरा अपने शहर से चालीस किलोमीटर दूर किसी कस्बे में जाना हुआ था, वहां आमने सामने दो किराने की दुकानें थीं | उन दुकानों के ऊपर किसी वनस्पति तेल के विज्ञापन का बोर्ड लगा हुआ था। उस विज्ञापन में पुरानी वाली भाभी जी “शिल्पा शिंदे’ उस अमुक ब्रांड के तेल के पांच लीटर को डिब्बे को दोनों हाथों से पकड़े हुए मुस्कुरा रही थीं।
सामने वाली दुकान के ऊपर भी इसी ब्रांड के तेल का विज्ञापन था, लेकिन इसमें भाभी जी नहीं थीं बल्कि वह भैया थे, जिनकी नीचे दुकान थी। वह भी बढ़िया पूरे कॉन्फिडेंस के साथ उस तेल का विज्ञापन कर रहे थे। ये नए ज़माने का भारत है। जिसमें व्यक्ति इतना समझदार हो गया है कि सेलेब्रिटी के मोह पाश में न फंसते हुए खुद ही अपनी और अपने प्रोडक्ट की ब्रांडिंग करना सीख गया है। वह जानता है कि तेल तो जितना बिकेगा उतना बिकेगा ही, लेकिन इस सेल्फ-प्रमोशन से पूरा शहर उसको पहचानने लगेगा।
यह सारा मामला दरअसल कॉन्फिडेंस का है। ढिंचक पूजा जी की जहाँ तक बात है, तो उनके आलोचक उनमें गुणवत्ता खोजते हैं। सुर, ताल और पता नहीं क्या क्या फिजूल की चीजें खोजते हैं, लेकिन जो मिसिंग कर जाते हैं, वह है उनका कुतुबमीनार सा कॉन्फिडेंस। जबकि ढिंचक पूजा को पता है, भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। दुनिया में जो भी विनिर्माण हो रहा है उसके केंद्र में भारत है। चाहे वह हवाई जहाज हों या जूते चप्पल। जो दुनिया में कहीं नहीं खपता है, वह हिंदुस्तान में चल जाता है।
बहरहाल अपने सुरक्षित भविष्य की गारंटी हेतु मैं ढिंचक युग के सूत्रधारों विशेषकर श्रद्धेय ढिंचक पूजा जी के सम्मान में शत शत प्रणाम करता हूँ।
ये रही पूजा