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तालिबानः भारत की सही पहल

Taliban : तालिबान काबुल में काबिज हुए हैं, अफगानिस्तान के सारे पड़ौसी देश और तीनों महाशक्तियाँ निरंतर सक्रिय हैं। वे कुछ न कुछ कदम उठा रही हैं ।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Shraddha
Published on: 21 Oct 2021 10:43 AM IST
तालिबान ने भारत से की बातचीत
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तालिबान ने भारत से की बातचीत (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

Taliban : पिछले ढाई महिने से हमारी विदेश नीति बगले झांक रही थी। मुझे खुशी है कि अब वह धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी है। जब से तालिबान (Taliban) काबुल में काबिज हुए हैं, अफगानिस्तान (Afghanistan) के सारे पड़ौसी देश और तीनों महाशक्तियाँ निरंतर सक्रिय हैं। वे कुछ न कुछ कदम उठा रही हैं । लेकिन भारत की नीति शुद्ध पिछलग्गूपन की रही है। हमारे विदेश मंत्री कहते रहे कि हमारी विदेश नीति है— बैठे रहो और देखते रहो की है। मैं कहता रहा कि यह नीति है— लेटे रहो और देखते रहो की। चलो, कोई बात नहीं।

देर आयद, दुरुस्त आयद! अब भारत सरकार ने नवंबर में अफगानिस्तान के सवाल पर एक बैठक करने की घोषणा की है। इसके लिए उसने पाकिस्तान, ईरान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, चीन और रूस के सुरक्षा सलाहकारों को आमंत्रित किया है। इस निमंत्रण पर मेरे दो सवाल हैं। पहला, यह कि सिर्फ सुरक्षा सलाहकारों को क्यों बुलाया जा रहा है? उनके विदेश मंत्रियों को क्यों नहीं? हमारे सुरक्षा सलाहकार की हैसियत तो भारत के उप-प्रधानमंत्री जैसी है । लेकिन बाकी सभी देशों में उनका महत्व उतना ही है, जितना किसी अन्य नौकरशाह का होता है। हमारे विदेश मंत्री भी मूलतः नौकरशाह ही हैं। नौकरशाह फैसले नहीं करते हैं। ये काम नेताओं का है। नौकरशाहों का काम फैसलों को लागू करना है। दूसरा सवाल यह है कि जब चीन और रूस को बुलाया जा रहा है तो अमेरिका को भारत ने क्यों नहीं बुलाया? इस समय अफगान-संकट के मूल में तो अमेरिका ही है। क्या अमेरिका को इसलिए नहीं बुलाया जा रहा है कि भारत ही उसका प्रवक्ता बन गया है? अमेरिकी हितों की रक्षा का ठेका कहीं भारत ने तो ही नहीं ले लिया है? यदि ऐसा है तो यह कदम भारत के स्वतंत्र अस्तित्व और उसकी संप्रभुता को ठेस पहुंचा सकता है।

अफगानिस्तान के सवाल पर एक बैठक करने की घोषणा की (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

पता नहीं, पाकिस्तान हमारा निमंत्रण स्वीकार करेगा या नहीं? यदि पाकिस्तान आता है तो इससे ज्यादा खुशी की कोई बात नहीं है। तालिबान के काबुल में सत्तारुढ़ होते ही मैंने लिखा था कि भारत को पाकिस्तान से बात करके कोई संयुक्त पहल करनी चाहिए। काबुल में यदि अस्थिरता और अराजकता बढ़ेगी तो उसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव पाकिस्तान और भारत पर ही होगा। दोनों देशों का दर्द समान होगा । तो ये दोनों देश मिलकर उसकी दवा भी समान क्यों न करें ? इसीलिए मेरी बधाई ! यदि तालिबान के सवाल पर दोनों देश सहयोग करें तो कश्मीर का हल तो अपने आप निकल आएगा।


अफगानिस्तान में तालिबान का कब्ज़ा (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

इस समय अफगानिस्तान को सबसे ज्यादा जरुरत खाद्यान्न की है। भुखमरी का दौर वहाँ शुरु हो गया है। यूरोपीय देश गैर-तालिबान संस्थाओं के जरिए मदद पहुंचा रहे हैं । लेकिन भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है। इस वक्त यदि वह अफगान जनता की खुद मदद करे। इस काम में सभी देशों की अगुवाई करे । तो तालिबान भी उसके शुक्रगुजार हो जाएंगे। अफगान जनता तो पहले से उसकी आभारी है ही। विभिन्न देशों के सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में भारत क्या-क्या मुद्दे उठाए और उनकी समग्र रणनीति क्या हो, इस पर अभी से हमारे विचारों में स्पष्टता होनी जरुरी है।



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Shraddha

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