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Taliban-Islamic Countries: तालिबान को खाद-पानी दिया इस्लामिक मुल्कों ने ही

Taliban-Islamic Countries: अफगानिस्तान में तालिबानी लड़ाकों ने कब्जा कर लिया है। वहां पर खुलेआम कत्लेआम जारी है। तालिबानी फौजें जिसे चाह रही हैं, उसे मार रही हैं।

RK Sinha
Written By RK SinhaPublished By Chitra Singh
Published on: 17 Aug 2021 5:49 PM GMT
Taliban-Islamic Countries
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तालिबान-इस्लामिक देश (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Taliban-Islamic Countries: अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबानी लड़ाकों ने कब्जा कर लिया है। वहां पर खुलेआम कत्लेआम जारी है। तालिबानी फौजें जिसे चाह रही हैं, उसे मार रही हैं। यह स्थिति कोई आज नई पैदा नहीं हुई है। वहां पर बम- धमाके और खून-खराबा तो गुजरे कई वर्षों से हो रहा है। पर मजाल है कि कभी भी इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) की तरफ से कभी कोई ठोस कोशिशें की गईं हो वहां पर अमन की बहाली के लिए। वैसे ही 57 सदस्य देशों का संगठन ओओईसी (OOEC) किसी प्रस्ताव को पारित करने के अलावा तो कभी कुछ कर नहीं रहा था।

अफगानिस्तान के मामले में तो हद ही हो गई। उसने तालिबान (Taliban) के खिलाफ लड़ना तो छोड़िए प्रस्ताव भी पारित नहीं किया। इससे साफ है कि ओआईसी भी यही चाहता है कि दुनिया शरीयत के मुताबिक ही चले। आपको याद होगा कि दो दशक पहले जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था, तब औरतों का जीवन नरक हो गया था। उन पर अनेक पाबंदियों लगा दी गई थीं। उनको शिक्षा लेने और नौकरियां करने पर भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। इस बार भी वही होगा। पर तालिबान के खिलाफ कोई भी इस्लामिक मुल्क (Islamic Countries) या ओआईसी बोलने को तैयार नहीं है। दावे तो यहां तक किए जाते हैं कि ये ही इस्लामिक मुल्क उसे धन और हथियारों से मदद पहुंचाते रहे हैं।

इस्लामिक देश ने औरतों के अधिकारों को लेकर अपनाए कठोर रवैया

इस्लामिक देश औरतों के अधिकारों (Women's Rights) को लेकर कठोर रवैया अपनाते रहे हैं। तालिबान की हुकूमत स्त्रियों के लिए नरक की हुकूमत होगी। दुनिया का सबसे नृशंस मजहबी जमात का ही दूसरा रूप तालिबान है। सबसे आश्चर्य है कि हिंदुस्तान के सोशल मीडिया पर मुसलमानो का एक बड़ा तबक़ा जो कथित हिंदू कट्टरवाद के विरुद्ध सेक्युलरिज़्म और संविधान से पनाह मांगता रहता है, वही अफगानिस्तान में तालिबान के समर्थन में अपने घोर सांप्रदायिक चेहरे के दोगलेपन से सेक्युलरिज़्म का मुखौटा हटाकर फेकता मिलता है। तालिबान के कब्जे वाले इलाक़ों में सोलह साल से पैंतालीस साल के बीच की लड़कियों की फ़ेहरिस्त बनाने का फ़रमान ज़ारी हो चुका है ताकि वे तालिबान लड़ाकों के लिए तथाकथित शादी के लिए उपलब्ध कराये जा सकें।

इस्लामिक देश तो नाममात्र के लिये भी धर्मनिरपेक्ष नहीं

दरअसल कोई इस्लामिक देश तो नाममात्र के लिये भी धर्मनिरपेक्ष नहीं है। अगर इंडोनेशिया को थोड़ी देर के लिये छोड़ दिया जाए तो सब कट्टर इस्लामिक देश हैं। इसलिए ओआईसी से कुछ भी सकारात्मक की उम्मीद करना बेकार है। सच बात तो यह है कि ओआईसी एक नंबर का नकारा संगठन है। इसके सदस्य देशों में कोई आपसी तालमेल नहीं है। अफगानिस्तान से जो लोग निकल कर अन्य देशों में बसना चाहते हैं उन्हें कोई भी इस्लामिक मुल्क शरण देने के लिए भी आगे नहीं आ रहा है।

पाकिस्तान (Pakistan) ने अपनी अफगानिस्तान से लगने वाली सभी सरहदों को बंद कर दिया है। उसे तो इस बात की खुश हो रही है कि तालिबान के कब्जा करने के बाद वहां पर चल रही भारत की तरफ से चलाई जा रही परियोजनाएं खत्म हो जाएंगी या उन्हें भारी नुकसान होगा। कितनी नेगटिव मानसिकता है एक उस इस्लामिक देश की जो अपने को ओआईसी का नेता मानता रहा है। याद करें कि इन्हीं इस्लामिक देशों ने रोहिंग्या मुसलमानों को भी अपने यहां शरण नहीं दी थी। म्यांमार के सबसे करीबी पड़ोसी बांग्लादेश ने भी रोहिंग्या मुसलमानों को लेने से मना कर दिया। बांग्लादेश ने कहा था है कि ये रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश (Bangladesh) की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं। इसलिए हम इन्हें शरण नहीं देंगे।

किसी ने सही कहा कि मुस्लिम उन मुसलमानों के लिए रोते हैं जब उनकी गैर मुस्लिम (Muslim) धुनाई करते हैं। मुस्लिम तब शांत रहते हैं जब मुस्लिमों पर मुस्लिमों द्वारा ही जुल्म किया जाता है। दुनिया ने देखा है कि सीरिया या इराक में मुस्लिमों द्वारा मुस्लिमों को मारने का कभी भी विरोध नहीं किया जाता। हालांकि ये चीन के खिलाफ भी कभी जुबान नहीं खोलते। हालांकि चीन में मुसलमानों पर तबीय़त से जुल्मों- सितम होते रहे हैं। पर किसी भी इस्लामिक देश की हिम्मत नहीं कि वह चीन के खिलाफ खुलकर सामने आ जाए। खैर, चीन (China) खुद ही दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी मुल्क है।

एक बड़ा सवाल यह है कि जब मुसलमान (Musalman) किसी देश में अल्पसंख्यक के रूप में रहते हैं तो वे उम्मीद करते हैं कि उनके देश की सरकार सेक्युलर हो। पर यह सोच तब बदल जाती है जब वे इस्लामिक देशों में होते हैं। क्या कोई बता सकता है जब कभी ओआईसी ने अपने सदस्यों का आहवान किया हो कि वे धर्म निरपेक्षता के रास्ते पर चलें। कभी नहीं। इस्लामिक देशों में इस्लामिक कट्टरवाद फल-फूल रहा है। तुर्की (Turkey) से लेकर सीरिया (Syria), पाकिस्तान, बांग्लादेश वगैरह में इस्लामिक आतंकवादी अल्पसंख्यकों को तो दोयम दर्जे का इंसान मानते हैं।

बोको हराम नाइजीरिया का प्रमुख इस्लामी आतंकी संगठन

क्या कभी ओआईसी ने इस्लामिक स्टेट इन सीरि अल-कायदा, लश्करे-तैयबा, बोको हरम जैसे खून संगठनों के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित किया या एक्शन लेने संबंधी कोई योजना बनाई? बोको हराम नाइजीरिया का प्रमुख इस्लामी आतंकी संगठन है। इससे जुड़े आतंकियों को आप जल्लाद भी कह सकते हैं। इनका एकमात्र मकसद पूरे नाइजीरिया में इस्लामीकरण को बढ़ावा देना है। ये मानते हैं कि पश्चिमी शिक्षा हराम है। जो भी इस के खिलाफ जाता है, उसे ये जला देते हैं। बर्बरताओं और हत्याओं के मामले में यह सबसे अधिक निर्दयी संगठन है।

ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉरपोरेशन यानी ओआईसी अधिक से अधिक भारत के खिलाफ बेशर्मी से प्रस्ताव पारित करता रहा है। हालांकि भारत इस संगठन को कतई भाव नहीं देता। मोदी सरकार का इसको लेकर रवैया भी बिलकुल भी गंभीर नहीं है। ये अपने आप को इस लायक भी तो नहीं बना सका।

बहरहाल, अफगानिस्तान के हालातों से भारत का चिंतित होना लाजिमी है। भारत का मित्र देश रहा अफगानिस्तान। वहां से हर साल सैकड़ों छात्र भारत में पढ़ने के लिए आत रहे हैं। अफगानिस्तातन के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने 1979 से 1983 तक अंतर्राष्ट्रीय संबंध एवं राजनीति विज्ञान में अपनी मास्टर डिग्री के लिए शिमला स्थि‍त हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पढ़ाई की थी। वह हिंदी एवं पंजाबी धारा प्रवाह बोलते हैं। भारत की चाहत रहेगी कि अफगानिस्तान में अमन की बहाली हो जाए। वहां पर लोकतान्त्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार सत्ता पर आ जाए। हालांकि ये अभी दूर की संभावना है। अभी तो भारत यही चाहेगा कि वहां पर भारत की मोटी राशि से चल रही परियोजनाएं सुरक्षित रहें।

(लेखक वरिष्ठ स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

Chitra Singh

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