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Taliban Ko Manyata: तालिबान को मान्यता का सवाल

Taliban Ko Manyata: तालिबान सरकार के एक मंत्री ने दुनियाभर के देशों को धमकी दी है कि अगर उन्होंने तालिबान सरकार को जल्दी मान्यता प्रदान नहीं की, तो इसका परिणाम अच्छा साबित नहीं होगा।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Shreya
Published on: 2 Nov 2021 1:58 AM GMT
Taliban Ko Manyata: तालिबान को मान्यता का सवाल
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तालिबान सरकार (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Taliban Ko Manyata: तालिबान सरकार (Taliban Sarkar) के मंत्री जबीउल्लाह मुजाहिद (Zabiullah Mujahid) ने काबुल (Kabul) में एक पत्रकार परिषद में बोलते हुए दुनिया के देशों को धमकी दी है कि यदि विभिन्न राष्ट्रों ने तालिबान सरकार को शीघ्र ही मान्यता नहीं दी तो उसका दुष्परिणाम सारी दुनिया को भुगतना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि मान्यता उनका हक है। उससे उन्हें वंचित करना किसी के हित में नहीं है।

तालिबान की पहली बात व्यावहारिक है। सत्य है लेकिन दूसरी बात अर्धसत्य है। तालिबान को मान्यता देना यदि राष्ट्रों के हित में होता तो वे अभी तक चुप क्यों बैठे रहते? पाकिस्तान-जैसे देश भी उसकी मान्यता को अटकाए हुए हैं। सउदी अरब और यूएई जैसे देशों ने भी तालिबान सरकार को मान्यता अभी तक नहीं दी है। जबकि पिछली तालिबान सरकार को उन्होंने सत्तारुढ़ होते ही मान्यता दे दी थी। तालिबान को सबसे पहले एक सवाल खुद से पूछना चाहिए। वह यह कि पाकिस्तान को अभी तक उनसे क्या परहेज है? पाकिस्तान की मदद के बिना तालिबानी जिंदा ही नहीं रह सकते थे। काबुल पर उनका कब्जा होते ही पाकिस्तान ने अपने गुप्तचर प्रमुख और विदेश मंत्री को काबुल भेजा था।

तालिबान को मान्यता देने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा

उसने तालिबान को यह अनुमति भी दे दी है कि वह इस्लामाबाद में अपना राजदूतावास चला ले। लेकिन वहां कोई राजदूत नहीं होगा। तालिबान के प्रतिनिधि अमेरिका, चीन, रूस, तुर्की, ईरान और यूरोपीय संघ से बराबर मिल रहे हैं। ये देश अफगान जनता को भुखमरी से बचाने के लिए दिल खोलकर मदद भी भिजवा रहे हैं। लेकिन तालिबान सरकार को मान्यता देने की हिम्मत कोई भी देश क्यों नहीं जुटा पा रहा है? इसके कई कारण हैं।

एक तो तालिबान ने अपनी सरकार को खुद ही 'कामचलाऊ' घोषित कर रखा है। यानी उसे अधर में लटका रहा है तो दुनिया के देश उसे जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी क्यों लें? दूसरा, तालिबान सरकार कई गिरोहों से मिलकर बनी हुई है। कब कौन सा गिरोह किसे कत्ल कर देगा, कुछ पता नहीं। 40 साल पहले का खल्की-परचमी ज़माना लोग भूले नहीं हैं। तीसरा, ढाई माह गुजर गए लेकिन अभी तक तालिबान ऐसी सर्वसमावेशी सरकार नहीं बना पाए, जिसे संपूर्ण अफगान जनता का प्रतिनिधि कहा जा सके।


चौथा, अब भी अफगानिस्तान से ऐसी खबरें बराबर आ रही हैं, जो तालिबान की छवि पर धब्बा लगाती हैं। वहां की औरतों, सिखों, छात्रों, पत्रकारों को मारने और सताने की खबरें रुक ही नहीं रही हैं। चाहे खुद तालिबान नेता इस तरह के क्रूर कारनामों को प्रोत्साहित न करते हों। लेकिन वे अपने समर्थकों को रोकने में भी असमर्थ हैं। यदि यही स्थिति चलती रही तो तालिबान को मान्यता मिलना कठिन होगा और अफगानिस्तान की जो 10 अरब डॉलर की राशि अमेरिकी बैंकों में पड़ी हुई है, वह भी उसे नहीं मिल पाएगी। इस समय जरुरी यह है कि अफगान जनता को भुखमरी और अराजकता से बचाया जाए और इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तालिबान को यदि अपने अनुयायिओं के विरुद्ध कठोर कदम उठाना पड़ें तो वे भी बेहिचक उठाए जाएं।

(डॉ. वैदिक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

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Shreya

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