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तमिल खुद सीखेंगे हिंदी

राज्यपाल आर.एन. रवि ने तमिलनाडु की सभी शिक्षा-संस्थाओं को निर्देश दिया है कि वे अपने विद्यार्थियों को तमिल, हिंदी और अंग्रेजी अनिवार्य रुप से पढ़ाएं।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Monika
Published on: 1 Jan 2022 12:53 PM IST
Ruckus in Tamil Nadu over Hindi
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हिंदी को लेकर तमिलनाडु में हंगामा (फोटो : सोशल मीडिया ) 

हिंदी को लेकर तमिलनाडु (Tamil Nadu) में फिर बवाल मच सकता है। केरल (Kerala) तथा कुछ अन्य प्रांतों में उनके राज्यपालों (Governors) और मुख्यमंत्रियों (Chief Ministers) में पहले से भिड़ंत हो रही है। उस भिड़ंत का मुद्दा है— विश्वविद्यालयों के उप-कुलपतियों (Vice-Chancellors) की नियुक्ति (Appointment) लेकिन तमिलनाडु में मुद्दा यह बन गया है कि उसकी पाठशालाओं में केंद्र का त्रिभाषा-सूत्र लागू किया जाए या नहीं? राज्यपाल आर.एन. रवि ने तमिलनाडु की सभी शिक्षा-संस्थाओं को निर्देश दिया है कि वे अपने विद्यार्थियों को तमिल, हिंदी और अंग्रेजी अनिवार्य रुप से पढ़ाएं। लेकिन तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम सरकार (DMK Government) का कहना है कि वह बच्चों की पढ़ाई में हिंदी को अनिवार्य नहीं करेगी (hindi not compulsory) । हिंदी का विकल्प खुला रहेगा। जो बच्चा पढ़ना चाहेगा, वह पढ़ेगा। किसी भाषा को किसी भी राज्य पर थोपना गलत है। द्रमुक के स्वर में स्वर मिलाते हुए तमिलनाडु की भाजपा (BJP) ने भी हिंदी की अनिवार्य पढ़ाई का विरोध किया है।

गत वर्ष जब एम.के. स्तालिन मुख्यमंत्री बने, तभी उन्होंने कह दिया था कि वे नई शिक्षा नीति के त्रिभाषा-सूत्र को लागू नहीं करेंगे। हमें सोचना चाहिए कि अकेले तमिलनाडु के नेता इस तरह की घोषणाएं क्यों कर रहे हैं? इसका एक मात्र कारण है, उस प्रांत की हिंदी-विरोधी राजनीति! हिंदी-विरोध के दम पर ही तमिलनाडु की राजनीति चलती रही है। अन्नादुरई, करुणानिधि, जयललिता और स्तालीन आदि हिंदी-विरोध के दम पर ही वहां मुख्यमंत्री बने हैं। 1965-66 में जब मेरे अंतरराष्ट्रीय राजनीति के शोधग्रंथ को हिंदी में लिखने की बात उठी थी तो अन्नादुरई, के मनोहरन और अंबझगान- जैसे सांसदों ने संसद को ठप्प कर दिया था और तमिलनाडु के हिंदी-विरोधी आंदोलन में स्वतंत्र राष्ट्र की मांग भी उठा दी गई थी। अब तमिलनाडु में पहले जैसा हिंदी विरोध नहीं है लेकिन उसमें किसी भी पार्टी की हिम्मत नहीं है कि वह हिंदी के पक्ष में अपना मुंह खोल सके।

हिंदी भाषा थोपने की जरुरत नहीं

हिंदी की उपयोगिता अब इतनी बढ़ गई है कि उसे तमिल बच्चे अपने आप सीखेंगे। उसे आपको उन पर थोपने की जरुरत नहीं है। वे खुद उसे खुद पर थोपना चाहेंगे। बस जरूरत यह है कि देश की सभी भर्ती परीक्षाओं में आप अंग्रेजी की थुपाई बंद कर दें। अंग्रेजी तथा अन्य विदेशी भाषाओं की एच्छिक पढ़ाई जरूर हो लेकिन भारतीय भाषाओं के जरिए देश के उच्चतम पदों तक पहुंचने की पूर्ण सुविधा होनी चाहिए। हिंदी अपने आप आ जाएगी। जो हिंदी नहीं सीखेंगे, वे अपने प्रांत के बाहर जाकर क्या लोगों की बगलें झांकेगें? वे अपना नुकसान खुद क्यों करेंगे? क्या स्वतंत्र भारत में कोई ऐसी सरकार भी कभी आएगी, जो सचमुच राष्ट्रवादी होगी और जो राष्ट्रभाषा के जरिए सारे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का बीड़ा उठाएगी?

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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