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कचरापुर से सफाईपुर : एक इलाके के कायापलट की कहानी

raghvendra
Published on: 17 Feb 2018 1:30 PM IST
कचरापुर से सफाईपुर : एक इलाके के कायापलट की कहानी
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मुदिता गिरोत्रा

देश की राजधानी दिल्ली की एक मलिन बस्ती के बच्चों ने सामूहिक प्रयास से स्वच्छ व स्वास्थ्यवर्धक परिवेश बनाने व आर्थिक रूप से सबल बनने के प्रति लोगों में जो जागरूकता जगाई है, वह अन्य क्षेत्रों के लिए मिसाल बन सकती है। मुस्लिम आबादी बहुल इलाका हजरत निजामुद्दीन वैसे तो सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की पवित्र दरगाह के लिए दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन यहां स्थित मलिन बस्ती के पास कचरे का अंबार लगने के कारण इसे बाहर से आनेवाले लोग कचरापुर कहने लगे थे। लेकिन बच्चों के प्रयास से इलाके में ऐसा जादुई बदलाव आया कि कचरापुर की पहचान अब सफाईपुर से होने लगी है। यहां गंदी बस्ती के दक्षिणी छोर पर जर्जर व खस्ताहाल मगर पक्की ईंटों के मकानों के साथ एक खुला नाला है, जिसे बारापुला कहा जाता है। कभी ये यमुना की सहायक नदी थी, जो अब गंदे नाले में तब्दील हो गई है। यह नाला घुमावदार रास्ते से मध्य दिल्ली से चलकर पूर्वी दिल्ली तक आठ किलोमीटर का सफर तय करता है।

मल-मूत्र और कचरों से आनेवाली बदबू और उसमें अवारा सूअरों की मटरगस्ती से पूरा इलाका बदहाल था। लेकिन वह जगह, जहां कभी लोग कूड़ा-कचरा फेंकते थे और वह बीमारी का घर था, वह अब बच्चों के लिए खेल का मैदान तो बुजुर्गो के लिए सैरगाह व सुस्ताने का मनपसंद ठिकाना बन गया है। इस जादुई बदलाव में बस्ती के बच्चों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और इनकी मदद में खड़ा हुआ आगा खां ट्रस्ट फॉर कल्चर (एकेटीएफसी)। 11 वर्षी अब्बास ने कहा, ‘कचरापुर या मलबापुर में कोई रहना नहीं चाहता है, इसलिए सफाईपुर हमारी ट्रेन का आखिरी स्टेशन है।’ वह अपनी सफाई एक्सप्रेस के बारे में बता रहा था, जो इलाके के बच्चों के लिए हर सप्ताह खेला जाने वाला एक लोकप्रिय खेल है। एककेटीसी के कार्यकर्ताओं ने इनके बीच खेल के रूप में सफाई अभियान की शुरुआत की है, जिसे निमामुद्दीन बस्ती अर्बन रिन्युअल इनिशिएटिव कहा जाता है। यह परियोजना 2007 में आरंभ हुई, लेकिन बारापुला फ्लाईओवर निर्माण के कारण इसे रोक दिया गया। दोबारा 2012 में इसे शुरू किया गया।

एकेटीसी की कार्यक्रम निदेशक ज्योत्सना लाल ने कहा ‘रंग-रोगन इस परियोजना का सबसे अहम हिस्सा है। कंगूरों अर्थात मकान के बाहरी हिस्सों के रंग-रोगन के पीछे कई अनकही कहानियां हैं।’ अब यहां घर-घर से कचरा जमा किया जाता है और नाले को भी चार फुट गहरा करके उसकी सफाई की गई है। बच्चों ने यहां लोगों को इस काम के लिए तैयार किया। उन्होंने लोगों से वचन लिया कि वे कचरा नाले के पास नहीं डालेंगे। चांदनी ने बताया, ‘हमने कचरा नहीं फैलाने का संकल्प लिया है और अपने माता-पिता व अन्य लोगों से भी कोई कचरा यहां नहीं डालने का आग्रह किया है।’ २००८ में यहां 25 फीसदी लोगों के घरों में शौचालय नहीं थे। इसके बाद यहां शुरू की गई नवीनीकरण परियोजना के तहत मौजूदा सुविधाओं की मरम्मत व नवीनीकरण का काम शुरू हुआ। नए शौचालय बनाए गए।

इस परियोजना के तहत बस्ती के सभी भागों में ठोस कचरे का प्रबंधन किया जाता है, जिसमें समुदाय की महती भूमिका है और दक्षिण दिल्ली महानगर निगम की भी इसमें भागीदारी है।

आजीविका कार्यक्रम के तहत आगा खां ट्रस्ट निजामुद्दीन निवासी महिलाओं को सशक्त बना रहा है। इंशा-ए-नूर आकर्षक कढ़ाई, सांझी चित्रकारी और क्रोशिया से कढ़ाई की मिसाल है। जायका-ए-निजामुद्दीन एक महिला स्वयं सहायता समूह की ओर से चलाई जाने वाली रसोई है। रहनुमाई नामक संसाधन केंद्र लोगों को विभिन्न सरकारी योजनाओं व सुविधाओं का हक दिलाने के लिए उनसे जोडऩे का काम करता है। सैर-ए-निजामुद्दीन नामक एक और स्वयं सहायता समूह है, जिसमें निजामुद्दीन की सांस्कृतिक विरासत का प्रचार-प्रसार किया जाता है। इस समूह के सदस्य 700 साल पुरानी विरासत से पर्यटकों व स्कूली विद्यार्थियों को रूबरू कराते हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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