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Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में तख्तापलट के मायने

Bangladesh Crisis: शेख हसीना का सत्ता से बाहर होना दिल्ली के हित में नहीं है। शेख हसीना के शासनकाल में ढाका और दिल्ली के मध्य मित्रवत संबंध थे। एक लंबे समय से बांग्लादेश में भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हैं

Surya Prakash Agrahari
Published on: 7 Aug 2024 4:06 PM IST
Bangladesh Crisis
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Bangladesh Crisis

Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में हुए तख्तापलट का तात्कालिक कारण आरक्षण के मामले से उपजे छात्र आंदोलन को माना जा सकता है लेकिन इस हालात की पटकथा लंबे समय से लिखी जा रही थी। पिछले 15 सालों से सत्ता पर काबिज अवामी लीग की शेख हसीना अपना पिछला चुनाव विपक्षी दलों के बहिष्कार के बीच जीता था। इसके साथ ही उन पर हमेशा यह आरोप लगाता रहा है कि उन्होंने सरकारी संस्थाओं के दुरुपयोग और सत्ता की ताकत से विरोध का दमन करने और लोकतंत्र में विपक्ष को समाप्त करने का भरसक प्रयास किया है। विरोधियों की चाल भांपने में नाकाम रही प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरक्षण विरोधी आंदोलन के मध्य अपना इस्तीफा देकर बांग्लादेश छोड़ फिलहाल भारत की शरण में आ गयी हैं। आगे उनके लंदन या फिनलैंड जाने के कयास लगाए जा रहे हैं।

शेख हसीना का सत्ता से बाहर होना दिल्ली के हित में नहीं है। शेख हसीना के शासनकाल में ढाका और दिल्ली के मध्य मित्रवत संबंध थे। एक लंबे समय से बांग्लादेश में भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हैं, आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान इन ताकतों को और अधिक बल मिला जोकि भारत और भारतीयों की सुरक्षा दृष्टि से लाभकारी नहीं है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि शासन परिवर्तन गेम के मास्टर माने जाने वाले अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट के असिस्टेंट सेक्रेटरी डॉनल्ड लू का बांग्लादेश दौरा भी तख्तापलट का कारण था।


बांग्लादेशी सेना के मिलीभगत के बिना यह सब संभव नहीं था। सेना प्रमुख का शहसीना के नजदीकी होने के बावजूद सेना के निचले पदाधिकारी हसीना सरकार से संतुष्ट नहीं थे। बांग्लादेश में तख्तापलट का इतिहास लगभग 50 वर्ष पुराना है। पहली बार 1975 में बांग्लादेश में तख्तापलट पलट हुआ था जब देश के पहले प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान तथा उनके परिवार के ज्यादातर सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। उस समय जनरल जियाउर रहमान ने सत्ता पर कब्जा किया था। वर्तमान में फिलहाल सेना अपने हाथ में प्रत्यक्ष रूप से शासन नहीं लेना चाहती है। बांग्लादेश में शेख हसीना की वापसी से भी इंकार नहीं किया जा सकता।


आरक्षण से संबंधित विरोधों के उपजने की बात करें तो यह पूरा मामला बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद से शुरू होता है। सन् 1971 में बांग्लादेश स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दुनिया के नक्शे पर उभरा तथा बतौर देश इसे 1972 में मान्यता मिली। तत्कालीन सरकार ने 1972 में ही मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और उनके वंशजों को सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण देने का प्रावधान किया था। आरक्षण की यह व्यवस्था सन् 2018 में शेख हसीना की सरकार ने खत्म कर दिया। अब तक बांग्लादेश आरक्षण के मुद्दे पर शांत था।

परंतु जून में आये हाईकोर्ट के एक निर्णय ने बांग्लादेश को अस्थिरता के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले ने इस आरक्षण प्रणाली को खत्म करने के सरकार के फैसले को गैरकानूनी बताते हुए इसे दोबारा लागू कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ शेख हसीना सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की। उच्चतम न्यायालय ने हाई कोर्ट के आदेश को निलंबित कर दिया तथा केवल 5% नौकरियां स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए आरक्षित करने का फैसला दिया। इस दौरान शेख हसीना द्वारा प्रदर्शनकारियों को रजाकार कहने पर बांग्लादेश में व्यापक स्तर पर हिंसा और विरोध प्रदर्शन होते रहे। अगली सुनवाई से पहले ही प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन और प्रधानमंत्री आवास पर हमला कर राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दे दिया।


भारत और बांग्लादेश के मध्य संबंधों की नींव वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से पड़ी थी। दोनों देशों के मध्य घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंधों का एक सुनहरा इतिहास रहा है। हालांकि बीच-बीच में दोनों देशों के मध्य संबंध भी प्रभावित हुए हैं जैसे 1970 के दशक के मध्य में जल बंटवारे एवं सीमा विवाद के मुद्दों से बांग्लादेश में भारत के विरोध में एक बड़ा तबका सामने आया था। दोनों देशों के मध्य संबंधों क प्रगाढ़ करने में शेख हसीना की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वर्ष 1996 में शेख हसीना के सत्ता में आने पर दिल्ली और ढाका के मध्य संबंधों में प्रगति हुई है।

एक साझा इतिहास, एक साझी विरासत, भाषा, संस्कृति का मेल, साहित्य, संगीत और कला से प्रेम, भारत के साथ बांग्लादेश का न केवल स्वाधीनता संग्राम के संघर्ष और मुक्ति की साझी विरासत है, अपितु दोनों एक-दूसरे के अंतरंग भावनाओं को भ्रातृवत भाव से अनुभव करते हैं। यही साझेदारी बांग्लादेश के साथ बहु-आयामीय संबंधों के विभिन्न स्तर के क्रियाकलापों में झलकती है। भारत और बांग्लादेश व्यापार, ऊर्जा, आधारभूत अवसंरचना, अवैध अप्रवासन, कनेक्टिविटी तथा रक्षा क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ मिलकर प्रगति कर रहे हैं। अगर हम अवसंरचना के क्षेत्र में बात करें तो भारत और बांग्लादेश ने वर्ष 2015 में भूमि सीमा समझौते तथा क्षेत्रीय जल पर समुद्री विवाद जैसे लंबे समय से लंबित मुद्दों को सफलतापूर्वक हल किया है।


इसके साथ ही साथ वर्ष 2023 में अखौरा-अगरतला रेल लिंक का उद्घाटन किया जो बांग्लादेश तथा पूर्वोत्तर को त्रिपुरा के माध्यम से जोड़ता है। इससे असम और त्रिपुरा में लघु उद्योग को तथा विकास को बढ़ावा मिलने की संभावना है। भारत के सामरिक दृष्टि से त्रिपुरा से 100 किलोमीटर दूर बांग्लादेश द्वारा बनाया जा रहे हैं मटरबारी बंदरगाह अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह बंदरगाह ढाका और पूर्वोत्तर भारत को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण औद्योगिक गलियारा बनाएगा। अवसंरचना और कनेक्टिविटी भारत और बांग्लादेश के मध्य संबंधों की प्रगति में एक महत्वपूर्ण कारक है। 2016 से अब तक भारत तीन बार लाइन ऑफ क्रेडिट को बांग्लादेश के लिए बढ़ा चुका है जिससे रोड, रेल, बंदरगाहों का निर्माण हो सके।


बांग्लादेश के साथ भारत की भौगोलिक निकटता ने इसे सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक के रूप में उभरने का अवसर दिया है। अगर हम बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की बात करें पिछले कुछ समय से वहाँ की आर्थिक नींव में दरारें दिखने लगी थी। कभी आर्थिक मोर्चे पर अव्वल प्रदर्शन कर दुनिया को चौंकाने वाला यह देश पिछले एक महीने से चल रही विरोध प्रदर्शन के बाद विपरीत हालात से जूझ रहा है। शेख हसीना के शासनकाल में बांग्लादेश 2026 तक मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था बनने की तरफ अग्रसर था। प्रति व्यक्ति आय के मामले में बांग्लादेश पिछले कुछ वर्षों में भारत से भी आगे था और दक्षिण एशिया में कई मानव सूचकांकों पर इसका प्रदर्शन शानदार रहा था हालांकि पिछले वर्ष इस देश को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहायता लेनी पड़ी थी।


बांग्लादेश भारत का 25वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत, बांग्लादेश को आवश्यक खाद्य वस्तुओं के साथ-साथ कृषि, बिजली एवं औद्योगिक उपकरण तथा पेट्रोलियम उत्पादन की आपूर्ति सबसे अधिक करता है। बांग्लादेश में उपजे राजनीतिक-आर्थिक संकट के कारण निर्यात बाजार अनिश्चितता के जाल में फंस सकता है। बांग्लादेश से भारत को होने वाले आयत का आकार निर्यात के मुकाबले बहुत छोटा है। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान बांग्लादेश से 1.8 अरब डॉलर का आयात हुआ था। इसमें कुछ अन्य सामान के साथ-साथ लोहा, इस्पात के उत्पाद, कपड़ा व चमड़े से बनी वस्तुएं शामिल थी। भारत और बांग्लादेश के मध्य 12.9 अरब डॉलर का कारोबार होता है। इस व्यापार में बड़ा हिस्सा निर्यात का है। बांग्लादेश में आर्थिक अनिश्चितता के कारण अवैध प्रवासन की चुनौती भारत के समक्ष आ सकती है। इसके साथ ही साथ बांग्लादेश भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने और चीन समर्थित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी को आगे बढ़ाने हेतु उत्सुक रहता है। बांग्लादेश का यह दोहरा रवैया भारत के लिए चिंता का विषय है।


मात्र 22 किलोमीटर संकरे चिकन नेक के माध्यम से भारत पूर्वोत्तर राज्यों से जुड़ा हुआ है। पूर्वोत्तर राज्यों में चीन की दखलंदाजी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए तथा इसके साथ ही बांग्लादेश में बढ़ते चीनी प्रभाव भी सामरिक दृष्टि से अनुकूल नहीं है। बांग्लादेश में अवसंरचनात्मक विकास कार्यों में चीन का निवेश भारत के लिए एक चिंता का विषय बनकर उभर रहा है। अमेरिका द्वारा बांग्लादेश, पूर्वोत्तर भारत और म्यांमार के कुछ हिस्सों को एक क्रिश्चियन स्टेट, जिसे जोगम नाम दिया जा रहा है, बनाने का प्रयास भारत की संप्रभुता एवं सुरक्षा के लिए प्रतिकूल है। मणिपुर में फैली हिंसा में अमेरिका के सीआईए के हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता। भारत के लिए बांग्लादेश में लोकतांत्रिक सरकार का पतन उसके राष्ट्रीय हितों के लिए प्रतिकूल है।


भारत अब ऐसे पड़ोसियों से घिर चुका है जहां पर लोकतंत्र न के बराबर है और राजनीतिक अस्थिरता जन्म ले चुकी है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका के बाद अब बांग्लादेश में भी लोकतंत्र का पतन हो चुका है। आने वाले समय में बांग्लादेश में सैन्य समर्थित अंतरिम सरकार के साथ भारत नए तरीके से कूटनीतिक रणनीति अपनानी पड़ेगी। भारत की सुरक्षा को लेकर सबसे बड़ी चुनौती हिंद महासागर क्षेत्र में बंगाल की खाड़ी में आ सकती है। मलाका से चीन के मालवाहक जहाजों का प्रमुख आवाजाही बंगाल की खाड़ी के पूर्व में होती है। अब तक बांग्लादेश के साथ हम भारत इस क्षेत्र में समुद्री पेट्रोलिंग करते रहे हैं। आने वाले समय में यह देखना होगा कि ढाका के साथ दिल्ली के संबंध कितने मधुर रहते हैं। सीमा पार से मादक पदार्थों की तस्करी और अवैध प्रवासन की समस्या भारत के लिए एक जटिल समस्या है। फिलहाल बांग्लादेश में फैली अराजकता को देखते हुए भारत की प्राथमिकता अपने नागरिकों और राजनयिकों की सुरक्षा होगी।

(लेखक महराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रवक्ता हैं।)



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Shalini singh

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