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किस्सा सास-बहू का दोबारा !

यूं तो मार्गरेट बोफोर्स काण्ड पर सोनिया के साथ डटी रही और राजीव गांधी की पक्षघर रहीं, पर जैन हवाला काण्ड पर मार्गरेट के ढुलमुलपन से सोनिया रुष्ट हो गयीं थीं।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 18 July 2022 7:40 PM IST
The story of mother-in-law and daughter-in-law again!
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मार्गरेट अलवा- वायलेट अलवा: Design Photo - Newstrack

राष्ट्रीय विपक्ष के राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पदों हेतु प्रत्याशी को मानों संग्रहालय (म्यूजियम) से खोजकर (बल्कि खोदकर) पेश किया गया है। जैसे बड़े दुर्लभ !! ऐसी लोकप्रतीति हो रही है। स्वनामधन्य पंडित अटल बिहारी वाजपेयी (Pandit Atal Bihari Vajpayee) ने संप्रग से ऐसी ही कुछ कमतर हरकत की थी। उस वर्ष कल्याण सिंह (Kalyan Singh) की जगह 76—वर्षीय राम प्रकाश गुप्त को (12 नवम्बर 1999) यूपी का मुख्यमंत्री उन्होंने नामित कर दिया था।

तभी पदच्युत हुई मुख्यमंत्री बहन कुमारी सुश्री मायावती ( Mayawati) ने चुटकी ली थी : ''म्यूजियम से निकालकर राम प्रकाश को अटलजी सीएम पद पर लाये हैं।'' आज विपक्ष पर यही कथन पूर्णतया सार्थक होता है। गमनीय बात एक और। यशवंत सिन्हा, 85 वर्षीय, विपक्ष की चौथी पसंद हैं। गनीमत है मार्गरेट निरंजन अल्वा, 80 वर्षीया, तो तीसरी हैं।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महबूबा मुफ्ती का नाम सुझाया

सर्वप्रथम मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव येचूरी सीताराम ने पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त शाहबुद्दीन याकूब कुरैशी का नाम सुझाया था। कुरैशी साहब है जो पचास वर्षों तक आईएएस के आला अफसर रहे और मुसलमानों की आबादी की बढ़त को नकारते है। अब रिटायर होकर वे बताते है कि भारतीय मुसलमान पर अस्तित्व का संकट आसन्न है। ठीक रिटायर्ड उप राष्ट्रपति मियां मोहम्मद हामिद अंसारी की भांति। येचूरी के प्रस्ताव को कुरैशी ने नकार दिया। इसके बाद तृणमूल कांग्रेस की बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महबूबा मुफ्ती का नाम सुझाया। स्वीकार नहीं हो पाया। हार तय है। तो दावे का साहस कौन करे? अत: बिसरायी, खोई (कांग्रेसी) मार्गरेट का उत्खन्न किया गया।

इसीलिए अब तहकीकात हो कि आखिर (14 अप्रैल 1942 को जन्मी) यह महिला 14वें उपराष्ट्रपति बनने की प्रत्याशा क्यों लिये हुए हैं? आखिर वह हैं कौन ? संयोग है कि इनकी सास स्वर्गीय वायलेट जोकिम अल्वा 1952 से प्रथम राज्यसभा की सदस्या रहीं हैं और उपसभापति भी थी। करीब 1969 में उन्हें इंदिरा गांधी ने उपराष्ट्रपति नहीं बनाया, तो रुष्ट हो कर उन्होंने पार्टी तज दी थी। मार्गरेट तनिक भिन्न रही थी, जब उन्हें पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी ने कांग्रेस से निष्कासित कर दिया था।

हालांकि मार्गरेट पार्टी में काफी उच्च पदों पर (महासचिव), चार प्रधानमंत्रियों को केन्द्रीय काबीना में मंत्री रह चुकी हैं। कई राज्यों में गवर्नर भी रहीं। उनको निकालने का कारण था कि उन्होंने सोनिया के चहेतों राजा दिग्विजय सिंह (मध्य प्रदेश) तथा पृथ्वीराज चह्वान (महाराष्ट्र) के पार्टी दिग्गजों पर कर्नाटक निर्वाचन में पार्टी के नामांकन के टिकट बेचने का अभियोग लगाया था। मार्गरेट अपने पुत्र निवेदित के लिये कांग्रेस से टिकट मांग रही थीं। न पाने पर आरोप लगाया कि टिकट के दाम वसूले जा रहे हैं। तब अनुशासन समिति के एके एंटोनी ने मार्गरेट के निष्कासन की सिफारिश की थी। पलटकर मार्गरेट ने एंटोनी पर आरोप लगाया था कि चूंकि उन्होंने ने एंटोनी को केरल के मुख्यमंत्री पद से हटाने की बात की थी अत: अब एंटोनी उनसे बदला ले रहे हैं। जबकि दोनों आस्थावान ईसाई हैं। निष्ठावान सोनिया कांग्रेसी हैं।

मार्गरेट (Margaret) बोफोर्स काण्ड पर सोनिया के साथ डटी रही

यूं तो मार्गरेट (Margaret) बोफोर्स काण्ड पर सोनिया के साथ डटी रही और राजीव गांधी की पक्षघर रहीं, पर जैन हवाला काण्ड (पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री कार्यकाल में) पर मार्गरेट के ढुलमुलपन से सोनिया रुष्ट हो गयीं थीं। उन पर छींटे पड़े थे। यूं मार्गरेट अपने पुत्र को कर्नाटक में पार्टी टिकट से वंचित करने से ही नाराज चल ही रहीं थीं।

मार्गरेट की प्रत्युत्पन्नमति की एक रुचिकर घटना है। वे एक विश्व सम्मेलन में हवाना (क्यूबा) 1983 में गयी थीं। वहां कम्युनिस्ट क्रांतिकारी राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने कहा : ''यदि स्पेनी साम्राज्यवादी बजाये क्यूबा के भारत को अपना उपनिवेश बनाते तो इतिहास कैसा होता ?'' मार्गरेट ने जवाब दिया : ''त​ब फिदेल कास्त्रो भारत के स्वतंत्रता सेनानी होते।'' प्रफुल्लित होकर कास्त्रो ने मार्गरेट को सीने से लगा लिया। वे बोले : ''मैं भारत से बहुत अधिक प्यार करता हूं।'' मगर इन्हीं मार्गरेट ने जयपुर रेलवे स्टेशन पर भिन्न व्यवहार दिखाया, जब वे राजस्थान की राज्यपाल नियुक्त होने पर जयपुर गयीं थीं। भाजपायी विपक्ष की नेता वसुंधराराजे सिंधिया को उन्होंने बाहुपाश में समेट लिया। उन्हीं की कांग्रेस पार्टी के नेता अशोक गहलोत को गले नहीं लगाया। पत्रकार द्वारा पूछने पर ​कि ऐसा भेदभाव क्यों? तो मार्गरेट का संक्षिप्त, सधा हुआ उत्तर था : ''अशोक गहलोत को मैं बाहुपाश में चिपटाती, तो राजस्थान में बवाल मच जाता।''

एक बार आंध्र प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे डा. मर्री चन्ना रेड्डि जो अपने द्विअर्थी टिप्पणियों के लिये मशहूर, बल्कि बड़े बदनाम रहे, स्वास्थ्य-लाभ कर भारत लौटे। दिल्ली की एक प्रीतिभोज में चन्ना रेड्डि की बेहतर तंदरुस्ति और स्वास्थ्य-लाभ पर चुटकी तो ली गयी। मार्गरेट ने रेड्डि के हाथों में जाने माने चांदी के मूंठवाले पुराने सोटे की जगह नयी स्टिक देखी। तारीफ में मार्गरेट ने टीका की, ''डा. रेड्डि, आपकी छड़ी बड़ी ऐंठवाली लग रही है।'' अपने चिरपरिचित अंदाज में लखनऊ में गर्वनर रहे धोतीधारी डा. रेड्डि ने प्रतिप्रश्न किया : ''कौन सी छड़ी ?''

मगर मार्गरेट की श्लाधा करनी होगी कि निश्चित पराजय मुंह बाये खड़ी हो तब भी रणभूमि में बांके तेवर से उतरी हैं। ऊर्जा से ओतप्रोत।



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Shashi kant gautam

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