×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

ये टीवी चैनल हैं या ‘मूरख-बक्से’, सिद्ध तो महामूरख बक्सा ही कर रहे हैं

वे अपनी इज्जत गिरा रहे हैं। वे मजाक का विषय बन गए हैं। एक-दूसरे के विरुद्ध उन्होंने महाभारत का युद्ध छेड़ रखा है। उनकी इस सुशांत-लीला के कारण देश के राजनीतिक दल भी अशांत हो रहे हैं। वे अपने स्वार्थ के लिए सिने-जगत की प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहे हैं।

Newstrack
Published on: 1 Sept 2020 5:14 PM IST
ये टीवी चैनल हैं या ‘मूरख-बक्से’, सिद्ध तो महामूरख बक्सा ही कर रहे हैं
X

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

जब मैं अपने पीएच.डी. शोधकार्य के लिए कोलंबिया युनिवर्सिटी गया तो पहली बार न्यूयार्क में मैंने टीवी देखा। मैंने मेरे पास बैठी अमेरिकी महिला से पूछा कि यह क्या है ? तो वे बोलीं, यह ‘इडियट बाॅक्स’ है याने ‘मूरख बक्सा’! अर्थात यह मूर्खों का, मूर्खों के लिए, मूर्खों के द्वारा चलाए जानेवाला बक्सा है। उनकी यह टिप्पणी सुनकर मैं हतप्रभ रह गया लेकिन मैं कुछ बोला नहीं।

आज भी मैं उनकी बात से पूरी तरह सहमत नहीं हूं। लेकिन भारतीय टीवी चैनलों का आजकल जो हाल है, उसे देखकर मुझे मदाम क्लेयर की वह सख्त टिप्पणी याद आ रही है। फिल्म कलाकार सुशांत राजपूत की हत्या हुई या आत्महत्या हुई, इस मुद्दे को लेकर हमारे टीवी चैनल लगभग पगला गए हैं।

कर क्या रहे हैं टीवी चैनल

उन्होंने इस दुर्घटना को ऐसा रुप दे दिया है कि जैसे महात्मा गांधी की हत्या से भी यह अधिक गंभीर घटना है। पहले तो सिने-जगत के नामी-गिरामी कलाकारों और फिल्म-निर्माताओं को बदनाम करने की कोशिश की गई और अब सुशांत की महिला-मित्रों को तंग किया जा रहा है।

सारी दुनिया को, चाहे वह गलत ही हो, यह पता चल रहा है कि सिने-जगत में कितनी नशाखोरी, कितना व्यभिचार, कितना दुराचार और कितनी लूट-पाट होती है। ऐसे लोगों पर दिन-रात ढोल पीट-पीटकर ये चैनल अपने आप को मूरख-बक्सा नहीं, महामूरख-बक्सा सिद्ध कर रहे हैं।

वे अपनी इज्जत गिरा रहे हैं। वे मजाक का विषय बन गए हैं। एक-दूसरे के विरुद्ध उन्होंने महाभारत का युद्ध छेड़ रखा है। उनकी इस सुशांत-लीला के कारण देश के राजनीतिक दल भी अशांत हो रहे हैं। वे अपने स्वार्थ के लिए सिने-जगत की प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहे हैं।

उनका स्वार्थ क्या है ? उन्हें सुशांत राजपूत से कुछ लेना-देना नहीं है। उनका स्वार्थ है— अपनी दर्शक-संख्या (टीआरपी) बढ़ाना लेकिन अब दर्शक भी ऊबने लगे हैं। इन चैनलों को कोरोना से त्रस्त करोड़ों भूखे और बेरोजगार लोगों, पाताल को सिधारती अर्थ-व्यवस्था, कश्मीर और नगालैंड की समस्या और भारत-चीन तनाव की कोई परवाह दिखाई नहीं पड़ती।

यों भी पिछले कुछ वर्षों से लगभग सभी चैनल या तो अखाड़े बन गए हैं या नौटंकी के मंच ! पार्टी-प्रवक्ताओं और सेवा-निवृत्त फौजियों को अपने इन दंगलों में झोंक दिया जाता है। किसी भी मुद्दे पर हमारे चैनलों पर कोई गंभीर बहस या प्रामाणिक बौद्धिक विचार-विमर्श शायद ही कभी दिखाई पड़ता है। इन चैनलों के मालिकों को सावधान होने की जरुरत है, क्योंकि वे लोकतंत्र के सबसे मजबूत चौथे खम्भे हैं।



\
Newstrack

Newstrack

Next Story