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British War Office Turned Hotel: सिंधी व्यापारी का लंदन होटल है! चर्चिल का कार्यालय था !!

British War Office Turned Hotel: जब लंदन के मेरे पत्रकार मित्रों ने बताया कि 83-वर्षीय सिंधी शरणार्थी गोपीचंद हिंदुजा ने पुराने ब्रिटिश वॉर ऑफिस भवन को बत्तीस अरब रुपए (तीन सौ मिलियन पाउंड) में ढाई सौ साल की लीज पर ले लिया है और उसे बेहतरीन महंगा होटल बनाएंगे, तो दिल अत्यंत खुश हुआ।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 20 Nov 2023 7:46 PM IST (Updated on: 20 Nov 2023 7:47 PM IST)
This is a Sindhi businessman
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सिंधी व्यापारी का लंदन होटल है! चर्चिल का कार्यालय था !!: Photo- Newstrack

British War Office Turned Hotel: ब्रिटेन पर जब कोई विपदा पड़ती है तो मन बड़ा खुश हो जाता है। हर्षित हो जाता है। सदियों से ये उपनिवेशी हम अश्वेत दासों का शोषण करते रहे। हमारे उत्पीड़क थे। मेरे संपादक-पिता को 1942 में जेल में रखा था। मैं तब नन्हा था। लुटेरे तो मुगल भी रहे। पर वे हिंदुस्तान में ही बस गए थे। गोरे तो इस सोने की चिड़िया के पंख तक काटकर ले गये थे। इसीलिए जब लंदन के मेरे पत्रकार मित्रों ने बताया कि 83-वर्षीय सिंधी शरणार्थी गोपीचंद हिंदुजा ने पुराने ब्रिटिश वॉर ऑफिस भवन को बत्तीस अरब रुपए (तीन सौ मिलियन पाउंड) में ढाई सौ साल की लीज पर ले लिया है और उसे बेहतरीन महंगा होटल बनाएंगे, तो दिल अत्यंत खुश हुआ। कारण कई हैं। यह 1100 कमरे वाला, सात मंजिला, सौ साल पुराना भव्य भवन अब सराय बनेगा। यहां ब्रिटिश प्रधानमंत्री और भारत के घोर शत्रु रहे सर विंस्टन चर्चिल ने अपना युद्ध मुख्यालय बना रखा था। इस भवन को कहते भी थे “वॉर ऑफिस।” साम्राज्यवादी शासक चर्चिल का गिरोह जहां कार्यरत था, अब वहां भारतीय पर्यटक रातें बिताएंगे। आराम फरमाएंगे।

इसी युद्ध कार्यालय से संचालित ब्रिटिश सेना ने 1857 के प्रथम भारतीय राष्ट्रीय संग्राम को कुचला था। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को रंगून जेल दर बदर कर दिया था। वहीं वे मर गये। उनकी अंतिम कविता थी : “दो गज जमीन भी न मिली”। दिल्ली में उनके पूर्वज बाबर (बाद में काबुल) से लेकर सभी 18 बादशाह दफन रहे। जफर 19वें थे, आखिरी भी।

लंदन में यह पुराना युद्ध कार्यालय बना होटल

लंदन में यह पुराना युद्ध कार्यालय 1857 से 1964 के बीच ब्रिटिश सेना के प्रशासन का मुख्यालय था। बाद में इसे नए रक्षा मंत्रालय को स्थानांतरित कर दिया गया। यह “युद्ध सचिव” का कार्यालय था और 17वीं और 18वीं शताब्दी में कई सेना प्रशासन के विभिन्न पहलुओं का केंद्र भी था। सबसे महत्वपूर्ण थे सेनाओं के कमांडर-इन-चीफ, युद्ध सचिव और राज्य के जुड़वां सचिव, जिनकी अधिकांश सैन्य जिम्मेदारियाँ 1794 में युद्ध के लिए एक नए राज्य सचिव को सौंप दी गईं।

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रक्षा मंत्रालय द्वारा 1964 के बाद “द ओल्ड वॉर ऑफिस” के नाम से इस इमारत का उपयोग होता था। इस इमारत को 1 जून 2007 को गंभीर संगठित अपराध और पुलिस अधिनियम 2005 की धारा 128 के लिए एक संरक्षित स्थल नामित किया गया था। इसका नतीजा था कि किसी व्यक्ति द्वारा इमारत पर अतिक्रमण करना एक विशिष्ट आपराधिक अपराध बन गया था।

औसत भारतीयों के लिए यह युद्ध कार्यालय भवन आतंक, अत्याचार और चूसने का पीड़ादायी प्रतीक रहा। मसलन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने यहां बैठकर महात्मा गांधी को खत्म करने की साजिश रची थी। चर्चिल को एडोल्फ हिटलर का सुझाव यही था कि भारतीय बागियों को गोली से मरवा दो। फिर जब भीमराव अंबेडकर की खतरनाक योजना रही कि त्रिकोणीय मतदाता गुट बनें सवर्ण, मुसलमान और दलित। बापू ने तब हिंदू समाज को दलित और गैरदलित वर्णों में बाटने के विरुद्ध आमरण अनशन किया था। अंबेडकर को तब दलितों को हिंदू समाज में बने रहने पर विवश कर दिया गया था। इसी लंदन के युद्ध कार्यालय से यह साजिश रची गई थी।

इसी युद्ध कार्यालय में 30 अक्टूबर 1948 को चर्चिल से हर्बर्ट मारिसन ने पूछा था कि यदि वे प्रधानमंत्री पद पर रहते, हर्बर्ट बजाय सर क्लीमेंट एटली के, तो क्या भारत को स्वतंत्रता मिल जाती ? तब इस ब्रिटिश लेबर पार्टी के विदेश मंत्री रहे मारिसरन से चर्चिल ने कहा था : “वह ब्रिटिश सैनिकों को फिलिस्तीन के झगड़े में न उलझाते, तो उसके बजाय वह 30-40 हजार ब्रिटिश सैनिक हिंदुस्तान में रख देते, जिनकी सहायता से दिल्ली में व्यवस्था कायम रखते। अर्थात तलवार के बल पर चर्चिल हिंदुस्तान पर कब्जा बनाए रखते। (दैनिक हिंदुस्तान : नई दिल्ली : 30 अक्टूबर 1948)।

क्या विडम्बना, बल्कि विद्रूप है, कि इसी राजधानी नगर लंदन के उत्तरी हिस्से के क्रामवेल मेंशन में इंडिया हाउस भी है। यह भारतीय स्वाधीनता सेनानियों का केंद्र रहा। अधुना यह भारतीय उच्चायुक्त कार्यालय है। इसकी 1905 में स्थापना हुई थी। तब यहां वीर सावरकर रहे थे। इसका निर्माण स्वाधीनता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा ने किया था। यह तब छात्रालय था। श्यामजी वर्मा ने 1888 में राजस्थान के अजमेर में वकालत के साथ स्वराज के लिये काम किया था। बाद में रतलाम रियासत में वे दीवान नियुक्त हो गये। राजस्थान और जूनागढ़ में काफी लम्बे समय तक दीवान रहे। अंग्रेजों की नाक के नीचे लन्दन में उन्होंने हाईगेट के पास एक तिमंजिला भवन खरीद लिया जो किसी पुराने रईस ने आर्थिक तंगी के कारण बेच दिया था। इस भवन का नाम उन्होंने “इण्डिया हाउस” रखा। उसमें रहने वाले भारतीय छात्रों को छात्रवृत्ति देकर लन्दन में उनकी शिक्षा का व्यवस्था की।

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श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी भानुमती के निधन के पश्चात उन दोनों की अस्थियों को जिनेवा की सेण्ट जॉर्ज सीमेट्री में सुरक्षित रख दिया गया था। भारत की स्वतन्त्रता के 2003 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन अस्थियों को श्यामजी के जन्म-स्थान माण्डवी में क्रान्ति-तीर्थ बनाकर उन्हें समुचित संरक्षण प्रदान किया। क्रान्ति-तीर्थ के परिसर में इण्डिया हाउस की हू-ब-हू अनुकृति बनाकर उसमें क्रान्तिकारियों के चित्र व साहित्य भी रखा गया है। कच्छ जाने वाले सभी देशी विदेशी पर्यटकों के लिये माण्डवी का क्रान्ति-तीर्थ एक उल्लेखनीय पर्यटन स्थल बन चुका है। इसे देखने दूर-दूर से आते हैं। लंदन प्रवास के भारतीयों के लिए यह दोनों भवन अपार ऐतिहासिक रुचि के हैं।



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Shashi kant gautam

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