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किसान महापंचायत- राजनीति की नई बिसात या अराजकता का नया दौर ?

मुजफ्फरगनर में किसान महापंचायत का आयोजन किया गया। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का दावा रहा है कि यह महापंचायत बेहद सफल रही है।

Mrityunjay Dixit
Written By Mrityunjay DixitPublished By Vidushi Mishra
Published on: 6 Sept 2021 7:45 PM IST
Kisan Mahapanchayat
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किसान महापंचायत (फोटो- सोशल मीडिया)

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को और धार देने के लिए मुजफ्फरगनर में किसान महापंचायत का आयोजन किया गया। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का दावा रहा है कि यह महापंचायत बेहद सफल रही है। जिसमें 300 किसान संगठनों के लगभग पांच लाख किसानों ने भाग लिया और केंद्र व जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं उन्हें आगामी चुनावों में हराने का संकल्प भी लिया गया है।

वैसे तो लग रहा है कि यह किसान महापंचायत सफल रही, लेकिन अब उन्होंने आगामी 27 सिंतबर को भारत बंद का ऐलान किया है और जिसमें अब यह देखना है कि यह भारत बंद कितना सफल होता है। क्योंकि अभी तक किसान नेताओं ने जितने भी आंदोलन किये हैं वह सुपर फॉलोअप रहे हैं।

राजनीति को चमकाने का प्रयास

यही कारण है कि अब सभी किसान नेता महापंचायत के बहाने किसान आंदोलन का मेकओवर करने की तैयारी का प्रयास किया है । यह भी साफ हो गया है कि यह किसान आंदोलन केवल राजनीति चमकाने के लिए हो रहा है और देश के तथाकथित विरोधी दल फर्जी किसान नेताओं के कंधे पर बंदूक रखकर अपनी राजनीति को चमकाने का प्रयास कर रहे है।

महापंचायत के दौरान सबसे मजेदार बात यह रही कि देश के सभी विरोधी दलों के नेता किसानों के प्रति अपनी नकली हमदर्दी दिखाने के लिए दिनभर उनके समर्थन में और पीएम मोदी व उप्र के सीएम योगी जी के खिलाफ चिड़िया उड़ाते रहे।

जिससे यह साफ हो गया कि किसान आंदोलन के टूलकिट का नया भाग शुरू हो गया है। यह भी साफ हो गया है कि किसान आंदोलन के बहाने कुछ ताकतें केवल और केवल देशवासियों पर अपना तथाकथित फर्जी एजेंडा थोपना चाह रही हैं। सभी किसान नेताओें के भाषण सुनें हैं और वीडियो देखे हैं जिसमें कोई भी किसान नेता यह नहीं बता पा रहा था कि आखिर तीनों कृषि कानूनों में काला क्या है ?

यह किसान आंदोलन अब राजनीति के पिटे हुए चेहरों ने अपनी राजनीति को चमकाने के लिए हाईजैक कर लिया है। चुनावी मैदान में पिटेे हुए राजनीति के मोहरे कृषि कानूनों की आढ़ में देश में अराजकता का वातावरण पैदा करना चाह रहे हैं।

भरपूर फसल - वाजिब दाम खुशहाल किसान

किसी भी किसान नेता के पास कोई तर्क नहीं था वहां पर तर्क विहीन राजनीति हो रही थी। दिनभर किसानोे कसेक समर्थन में राजनीतिक दल व नेता टिवट करते रहे। फिर उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पलटवार करते हुए कहा कि किसान नहीें उनके नाम पर दलाली करने वाले लोग परेशान हैं।

किसानों के लिए आजादी के बाद पहली बार सबसे अधिक काम किसानों के लिए हुए हैं। प्रदेश सरकार ने किसानों के हित में किये गये कामों को जनता के सामने रखते हुए एक विज्ञापन भी प्रकाशित करवाया है। भरपूर फसल - वाजिब दाम खुशहाल किसान।

इस विज्ञापन में कृषि उन्नयन हेतु उठाये गये महत्वपूर्ण कदमों की सभी जानकारी दी गयी है कि किस प्रकार सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए व उनके हित में लगातार काम कर रही है। विज्ञापन में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संदेश भी छपा है।

जिसमें वह कह रहे हैं कि किसान अन्नदाता हैं और समाज के भाग्य विधाता भी। किसान भाई सर्दी ,गर्मी ,बरसात और महामारी में भी अपनी मेहनत से अन्न का उत्पादन कर सभी का पेट भरने का कार्य करते हैं। इसीलिए किसान उत्थान उप्र सरकार की सर्वोच्च प्राथमकिता है।

किसान आंदोलन में जिस प्रकार की बयानबाजी हुई है। उससे साफ हो गया है कि इनका एकमात्र उद्देश्य अपनी खोयी हुई ताकत को फिर से प्राप्त करना है। यह किसान नेता अपना आंदोलन भी समाप्त करना चाहते हैं।

लेकिन बात फिर वहीं घूम फिरकर आ जाती है कि किसान नेता रूपी बिल्ली के गले में आखिर घंटी बांधने के लिए कौन आगे आयेगा। किसान महापंचायत पर भाजपा सांसद संजीव बालियान का कहना है कि किसानों के आंदोलन ने अब राजनीतिक रंग ले लिया है। हर किसी को राजनीति करने का अधिकार है।

अगर किसान संयुक्त मोर्चा राजनीति में आना चाहता है तो वह उसका स्वागत करेंगे। महापंचायत की सबसे बड़ी बात यह रही कि टिकैत के भाषण के दौरान हर -हर महादेव व अल्ला -हु -अकबर के नारे भी लगवाये गये।

सियासी नुकसान

मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत (फोटो- सोशल मीडिया)

महापंचायत के बहाने मुजफ्फरनगर में 2013 में जाट व मुसलमनों का जो गठजोड़ टूट गया था उसे नये सिरे से नयी ताकत देने का काम भी किया गया है। जिसके कारण कहा जा रहा है कि यदि किसानों की नाराजगी के साथ जाट- मुसलमान गठजोड़ हो गया, तो इससे पश्चिम में बीजेपी को कुछ सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

लेकिन यहां भी पेंच है यह गठजोड़ तब तक काम नहीं करेगा, जब तक सभी विरोधी दल एक मंच पर नहीं आयेंगे और यह अभी फिलहाल होता नहीं दिखलायी पड़ रहा है। कारण यह है कि किसानों का वोट सभी को चाहिए। जिसमें सपा ,बसपा,कांग्रेेस आप सहित सभही छोटे व बड़े दल तथा फिर उसमें चुनावों के दौरान उतरने वाले निर्दलीय उम्मीदवार भी हैं।

फिर भी बीजेपी विरोधी किसान नेताओं का कहना है कि बीजेपी के लिए अभी भी समय है और वह किसानोें की बातों को मानकर उनकी नाराजगी को कम करें, नही तो पश्चिमी उप्र की 114 विधानसभा सीटों में किसान आंदोलन व जाट मुसलमान गठजोड़ का असर पड़ सकता है और फिर उसका संदेश देश के अन्य हिस्सों में भी जायेगा।

दूसरी बड़ी बात यह रही कि यह महापंचायत मुस्लिम बाहुल्य इलाके में आयोजित की गयी और मुसलमानों के हितों की आवाज भी परोक्ष रूप से उठायी गयी। यह महापंचायत किसानों के मुददो पर नहीं थी, अपितु इसममें वह सब कुछ हुआ जो धर्मनिपरेक्ष राजनीति के लिए सूट करता है।

महापंचायत में एक दुर्भाग्यपूर्ण वीडियो यह भी सामने आ रहा है कि किसानों के भेष में छिपे तथाकथित गुंडों ने टीवी चैनलों की महिला पत्रकारों के साथ अभद्रता की और उनके साथ शारीरिक छेड़छाड़ करते हुए मोदी- योगी विरोधी नारेबाजी भी की। उससे भी शर्मनाक बात सामने आ रही है कि न्यूजक्लिक के पत्रकार ने महिला एंकर चित्रा त्रिपाठी के साथ घटी दुष्कृत्य की घटना को सही बताया है।

किसान नेताओं की पोल कई बार खुली

कृषि कानून विरोधी प्रदर्शनकारी अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान पहले भी घिनौने आचरण में लिप्त रहे हैं। गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन लोगोें ने अराजकता व हिंसा का नंगा नाच किया था। किसान आंदोलन में ही दिल्ली की टिकरी सीमा पर पश्चिम बंगाल की एक लड़की के साथ दुष्कर्म किया गया था।

बाद में पीड़िता की कोविड -19 से मोैत हो गयी थी और इन किसान नेताओं ने पीड़ित के शव को खुली जीप में रखकर जुलूस निकाला था। कई टीवी चैनल इन किसान नेताओं की असलियत को भी स्ट्रिंग ऑपरेशन के जरिये बेनकाब करते रहे हैं।

इन किसान नेताओं की पोल कई बार खुल चुकी है। यह केवल आंदोलनजीवी किसान हैं और विदेशी फंडिंग के बल पर अपनी बुझी हुई राजनीति की लौ को फिर चमकाने का प्रयास कर रहे हैं।

अब यह देखना है महापंचायत के बहाने इन लोगो ने जो अपना नया टूलकिट बनाया है वह कितना सफल होता है। क्योंकि अभी तक किसानों को भारत बंद व चक्का जाम जैसे आंदोलनों में जनता का समर्थन नहीे हासिल हुआ है।

क्योंकि यह पूरी तरह से अराजकतावादी हैं। महापंचायत में जिस प्रकार से नारेबाजी की गयी उससे पता चलता है कि इनकेे इरादे बहुत खतरनाक नजर आ रहे हैं और इस प्रकार कोई कारण नहीं बनता कि सरकार इन लोगों से वार्ता करे।

सरकार किसान नेताओं से 11 बार वार्ता कर चुकी है और वह लगातार प्रयास कर रही है कि किसान वार्ता के लिए आगे आएं। लेकिन फर्जी किसान प्रेमी दल सोशल मीडिया में अपनी चिड़िया उडा़कर किसानों को भड़का रहे हैं।




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Vidushi Mishra

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