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कोरोना, जमात और बदलाव के लिए तेजी से आगे बढ़ने का वक्त

फतवा के तमाम मामलों में मुल्ला और मौलवियों के चेहरे भी बेनकाब हुए हैं। कुछ पंडितों और पादरियों की भी पोल खुली है, लेकिन यह तो तय ही हो गया है कि युग बदला तुम बदलो अपनी निष्ठाएं - देखो दूर दिशा में प्राची लाल हो गई, तम की सकल संपदा भी कंगाल हो गई।

राम केवी
Published on: 8 April 2020 8:26 PM IST
कोरोना, जमात और बदलाव के लिए तेजी से आगे बढ़ने का वक्त
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योगेश मिश्र

  • उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में रविवार सुबहलॉकडाउन के दौरान तब्लीगी जमातियों पर टिप्पणी करने पर एक युवक लोटन निषाद की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

  • हिमाचल के ऊना जिले के गांव बनगढ़ में 37 साल के मोहम्मद दिलशाद ने गांव वालों के तानों और सामाजिक भेदभाव से तंग आकर आत्महत्या कर ली। उनकी गलती ये थी कि वह एक ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आए थे, जो तब्लीगी जमात से लौटा था और गांव की मस्जिद में रह रहा था। हालांकि दिलशाद की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव थी।

ऐसी तमाम रिपोर्ट्स देश के अलग-अलग इलाकों और समाज से आपको सुनने को मिल रही होंगी, जिससे दुखी होना लाजिमी है। लॉकडाउन के इस दौर में वैसे ही तमाम दुखों और आशंकाओं ने आपको घेर रखा होगा। एक ऐसे समय जब दुख और आशंकाओं से उबरने के लिए सामूहिक शक्ति की सक्रियता की दिशा में प्रधानमंत्री मोदी कभी ताली और थाली बजाओ तो कभी प्रकाश फैलाओ का आह्वान करके हर एक दूसरे से यह संदेश दिलवा रहे हों कि ‘मैं हूं ना। हम सब हैं ना।’ तब कोरोना से लड़ने वाले योद्धाओं के खिलाफ की जाने वाली ऐसी हरकतें जो सर झुकाने के लिए मजबूर कर देती हों अथवा किसी जात अथवा जमात को कोरोना का सुपर कैरियर होने का संदेश देती हों तो यह भी शर्मसार करने वाला कहा जाएगा।

जमात का चरित्र जानने की जरूरत

अगर तब्लीगी जमात के और जमात से संक्रमित कोरोना मरीजों की संख्या को हटा दिया जाए, तो भारत के लिए यह कहना निसंदेह गर्व का विषय हो सकता है कि हम सब ने मिलकर कोरोना को कम्युनिटी स्प्रेड से पहले थाम लिया है। हम सब की इतनी बड़ी उपलब्धि पर पलीता लगा देने वाली तब्लीगी जमात पर लोगों का गुस्सा होना जायज है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि इस जमात के बारे में जाना जाए।

1927 में इस जमात की स्थापना इलियास कांधलवी ने की थी। वह उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के कांधला गांव के रहने वाले थे। उन्होंने सहारनपुर के मदरसा मजाहिरुल उलूम में पढ़ाया भी था। तब्लीगी का मतलब धर्म का प्रचार होता है। इस जमात ने अपना धर्म प्रचार हरियाणा के मेवात से शुरू किया था। इस जमात के दुनिया भर में 140 केंद्र हैं। बंगलादेश और पाकिस्तान में इनका हर साल एक कार्यक्रम होता है। इनका कोई लिखित ढांचा नहीं है।

विकीलिक्स के दस्तावेजों के मुताबिक अमेरिका द्वारा हिरासत में लिए गए 9/11हमले के कुछ अलकायदा संदिग्ध दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तब्लीगी जमात के परिसर में रुके थे। तब्लीगी देवबंदी विचारधारा के हनफी संप्रदाय से आते हैं। सऊदी अरब और ईरान में इस जमात पर प्रतिबंध लगा हुआ है।

उठी हैं उंगलियां नपाक रिश्तों के बाबत

कहा जाता है प्रतिबंधित आतंकी संगठन हरकत उल मुजाहिदीन के मूल संस्थापक तब्लीगी जमात के सदस्य थे। भारतीय खुफिया अधिकारी और सुरक्षा विशेषज्ञ बी रमन ने इस बात का उल्लेख किया है कि हरकत उल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों के सदस्य खुद को तब्लीगी जमात का प्रचारक बताकर वीजा हासिल करते थे और विदेश जाकर पाकिस्तान में आतंकी प्रशिक्षण के लिए मुस्लिम युवकों की भर्ती करते थे।

इन सब जानकारियों और तब्लीगी जमात के लोगों के कोरोना के सुपर करियर होने की जानकारियों के बीच जमात के लोग इसे धर्म की लड़ाई से जोड़ना चाहते हैं। पर इन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान के सिंध में भी तब्लीगी जमात के लोगों को स्थानीय विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यही नहीं लरकाना जिले के सैहर कस्बे की मस्जिद में तब्लीगी जमात के लोगों के जमावड़े की शिकायत अधिकारियों से भी की गई। तब्लीगी जमात पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग वैश्विक संगठनों के नुमाइंदे भी करने लगे हैं।

धर्म के सही संदर्भों को समझने की जरूरत

भारत जैसे देश में जहां धर्म का बहुत ही व्यापक संदर्भ में उपयोग व प्रयोग होता है, वहां धर्म का रिश्ता उपासना पद्धति से जोड़ना ठीक नहीं कहा जाएगा। हमारे यहां राजा और प्रजा के भी धर्म हैं। आपद् धर्म भी हैं। सामाजिक धर्म भी है, लेकिन धर्म की इन विभिन्नताओं में दूसरे को दुख पहुंचाने की कोई जगह नहीं है। हिन्दुस्तान के धर्म में प्राणि मात्र के कल्याण का भाव है।

जब इस देश का बहुसंख्यक समाज नवरात्र में मंदिर जाने से खुद को दूर रखता है तब मस्जिद में नमाज पढ़ने की कोशिश दूसरों को ही नहीं सबको दुख पहुंचाने का तरीका कही जाएगी। डॉक्टरों के साथ मारपीट करना, जांच करने वाली टीम पर हमला बोल देना, अस्पतालों का माहौल बिगाड़ना यह बताता है कि दो-दो हाथ के लिए एक हाथ अनावश्यक आगे आ रहा है। देश की धर्म निरपेक्षता किसी जात और जमात की थाती नहीं है। इसके लिए सबको थोड़ा थोड़ा आगे आना होगा और थोड़ा बहुत पीछे हटना होगा। लेकिन इस स्थिति के लिए तैयारी दिखती नहीं है।

मोदी ने मिथ तोड़े

भारत सात सौ साल मुगलों खिलजियों का गुलाम रहा है। 200 साल हमने अंग्रेजों की गुलामी झेली है फिर भी हम अकबर महान मानते और कहते हैं। हम मानते और कहते हैं कि अंग्रेजों ने देश में डाक और रेलवे का बड़ा नेटवर्क बिछाया। वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के जनादेश ने एक अलग तरह का आदेश दिया है।

इन चुनावों से पहले राजनेता और लोकतंत्र यह बताते और जताते थे कि अल्पसंख्यकों के बिना कोई सरकार नहीं बन सकती। नरेंद्र मोदी ने इन दोनो चुनावों में यह साबित कर दिखाया कि बहुसंख्यक बहुमत की सरकार बना सकते हैं। यह नया राजनैतिक फार्मूला उन तमाम लोगों को हाशिये पर भी ढकेल सकता है जो राजनेताओं के कंधे पर सवार होकर सरकार की चाभी अपनी जेब में रखकर घूमते रहे हैं।

तेजी से आगे बढ़ने, बताने और जताने का समय

शायद यह धर्म निरपेक्ष छद्म धर्मनिरपेक्ष दोनो ताकतों को थोड़ अपच लगे कि अब दूसरी ओर से तेजी से आगे बढ़ने, यह बताने और जताने का समय आ गया है कि अगर भारत पर आक्रमण करके राज करने वाले किसी बादशाह और उनकी किसी पीढ़ी ने कोई गलती की है तो हम सब सुधारने को तैयार हैं। अल्पसंख्यकों को शिक्षा देने वाली जमात का चरित्र तो कोरोना के दौर में साफ हो गया है।

फतवा के तमाम मामलों में मुल्ला और मौलवियों के चेहरे भी बेनकाब हुए हैं। कुछ पंडितों और पादरियों की भी पोल खुली है, लेकिन यह तो तय ही हो गया है कि युग बदला तुम बदलो अपनी निष्ठाएं - देखो दूर दिशा में प्राची लाल हो गई, तम की सकल संपदा भी कंगाल हो गई।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)



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राम केवी

राम केवी

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