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Motivational Story in Hindi: आओ मुझे हरा दो

Motivational Story in Hindi: वह खेल में हिस्सा लेता है, खेलने के लिए नहीं, जीतने के लिए। वह कॉलेज जाता है, उसके मन में फीड कर दिया गया है, तुम्हें जीतना है। सबसे आगे रहना है। नंबर वन। नौकरी में, व्यापार में हर जगह उसे जीतना सिखाया गया है। वह जीवन का प्रयोजन जीत मानता है। उसे हारना स्वीकार नहीं। बस जीत चाहिए।

Sanjay Sinha
Written By Sanjay Sinha
Published on: 14 Feb 2025 2:24 PM IST
Today Best Motivational Story in Hindi
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Today Best Motivational Story in Hindi 

Motivational Story in Hindi: होड़ मची है जीतने की। घर, बाहर, स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, अदालत, सोशल साइट… हर जगह जीत की होड़ है। सबके मन में तमन्ना है जीतने की। लोग दुनिया में आते हैं, जीतने के लिए। क्या जीतेंगे? क्या हो जाएगा जीतकर? संजय सिन्हा के मन में कई बार ऐसे प्रश्न उठते हैं। आदमी सुबह से देर रात तक बस जीतना चाहता है। उसने मान लिया है कि इस संसार में वह युद्ध के लिए आया है। युद्ध का मतलब जीत। एक बच्चा नर्सरी कक्षा में जाता है, वहां से उसके मन में ये बिठा दिया जाता है कि तुम्हें बेस्ट होना है, हर मामले में। तुम्हें जीतना है।

वह खेल में हिस्सा लेता है, खेलने के लिए नहीं, जीतने के लिए। वह कॉलेज जाता है, उसके मन में फीड कर दिया गया है, तुम्हें जीतना है। सबसे आगे रहना है। नंबर वन। नौकरी में, व्यापार में हर जगह उसे जीतना सिखाया गया है। वह जीवन का प्रयोजन जीत मानता है। उसे हारना स्वीकार नहीं। बस जीत चाहिए।

जन्म से ही उसे इतना भर बताया गया है कि जीवन जीतने का नाम है। उसके मन में बसा दिया गया है, जो जीतता है वही सिकंदर है, और हारने वाले कुछ नहीं। आदमी कितने समय के लिए इस दुनिया में आता है? कभी हिसाब लगाकर देखा है आपने? गिनिए न, उंगलियों पर गिन लेंगे। आदमी के आने और जाने की तारीख। मां के गर्भ में आने की तारीख से लेकर दुनिया से चले जाने की तारीख तक। क्या मिलेगा? नौ महीने से लेकर कुल जमा नौ सौ महीने।

दिन, घंटा, मिनट, सेकंड जिस इकाई में चाहें गिन लीजिए। फिर सोचिए कि प्रयोजन क्या है? जीतना। कोई जीतता है? लगता है जीत गए। पर कैसे? क्या मिला जीतकर? जीत और हार आपके होने का प्रयोजन बदल देती है। सुबह से शाम तक आप इसी उलझन में हैं, "मैं जीत जाऊं।"

चलिए, आप जीत गए। हर बहस, हर युद्ध। फिर? जो प्रयोजन था आने का उसका पता ही नहीं चला। आप जीतकर चले गए। हारकर चले गए। होने और नहीं होने का क्या हुआ?

मैं सोचता हूं। हर जीत के बाद सोचता हूं, "क्या मिला संजय?" मैं सोचता हूं। हर हार के बाद सोचता हूं, "क्या गया संजय?" जब आप सोचेंगे तो समझेंगे कि न जीतने वाला कुछ प्राप्त करता है, न हारने वाला कुछ खोता है। लेकिन इतने से प्रयोजन बदल जाता है। हम मूल से चूक जाते हैं। होने और नहीं होने का प्रयोजन खो देते हैं।

जीवन एक यात्रा है। दिल्ली से मुंबई तक। दो घंटे से लेकर 24 घंटे की। यात्रा सुगम बनाइए। सामने वाले मुसाफिर से मुहब्बत का रिश्ता बनाइए। जीत-हार का नहीं। यात्रा में आपकी जंग सिर्फ सहयात्रियों से होती है। सोचिए कितनी बड़ी विडंबना है। सहयात्रियों से। दूसरे कोच में बैठे मुसाफिरों से कोई नाता नहीं। जो जीत है, हार है, किससे है? अपनों से।

घर में आपके अपने हैं। घर के बाहर भी जिनसे आपका वास्ता पड़ता है, वो अपने हैं। स्कूल, कॉलेज, बाजार, पुलिस, थाना, अदालत, अस्पताल, कारोबार, नौकरी—हर जगह आपके अपने। फिर भी आप जीत की तमन्ना पाले बैठे हैं। किससे? अपनों से।

मेरी बात मानिए। संजय सिन्हा दुनिया देख कर कह रहे हैं। आप हारना सीख लीजिए। हार जाइए। हर युद्ध, हर बहस, हर प्रतिस्पर्धा। खेलिए। सिर्फ खेलने के लिए। दुनिया में जीने के लिए आए हैं। जीने का अभ्यास कीजिए। जीत-हार से ऊपर होकर। यही सोचकर कि जीतकर कुछ मिलेगा नहीं, हारकर कुछ खोएगा नहीं।

ज़िंदगी जश्न है। हर पल जश्न में रहिए। जीतने दीजिए अपनों को। हर युद्ध।

मुझे हार मंजूर है। किसी ने कहा है—

“मैं इस कदर हार जाऊंगा, तुम जीतकर पछताओगे।”

(साभार संजय सिन्हा की फेस वॉल से साभार।)



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