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पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब का मुहावरा बदलने वाले हमारे हीरो

कभी माता-पिता और गुरू बच्चों को यह समझाते थे- “पढ़ोगे, लिखोगे बनोगे नवाब। खेलोगे कूदोगे होगे ख़राब।”

Yogesh Mishra
Published on: 11 Aug 2021 12:17 AM IST
Tokyo Olympics 2020
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सम्मान समारोह के दौरान नीरज चोपड़ा, खेल मंत्री अनुराग ठाकुर और किरण रिजिजू (फोटो: ट्टिवटर) 

कभी माता-पिता और गुरू बच्चों को यह समझाते थे- "पढ़ोगे, लिखोगे बनोगे नवाब। खेलोगे कूदोगे होगे ख़राब।" लेकिन हमारे क्रिकेट खिलाड़ियों ने जाने कब का इसे उलट कर रख दिया है। पर बाद में इस खेल पर सरकार व दर्शकों का इस कदर प्यार उमड़ा कि बाक़ी खिलाड़ियों व बाक़ी खेल प्रेमियों को क्रिकेट से रश्क हो उठा। हद तो यह हुई की क्रिकेट के प्यार में हमारा राष्ट्रीय खेल हाकी पता नहीं कहाँ नेपथ्य में चला गया। क्रिकेट को छोड़ बाक़ी सभी खिलाड़ियों की हालत सुधरने का नाम लेने की स्थिति ही नहीं आने दी गयी। नतीजतन, क्रिकेट को अभिजात्य वर्ग का खेल स्वीकार करके ख़ारिज किया जाने लगा।

लेकिन हालिया ओलंपिक के नतीजों व इनमें पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को देशभर से मिले प्यार व पैसे ने क्रिकेट के खिलाड़ियों की भी आँखें खोल कर रख दी। पहली बार हमने ट्रैक एंड फ़ील्ड प्रतियोगिता में सोना जीता। सारा देश हर्ष से झूम उठा। हमारा राष्ट्र गान बजा। पोडियम पर चीन व पाकिस्तान के खिलाड़ी हमारे नीरज चोपड़ा से नीचे खड़े थे। हमारी हाकी टीम इकतालीस साल बाद पदक तालिका में अपना नाम लिखा पायी। महिला हाकी टीम ने हार के बाद भी समूचे भारत का दिल जीता। टोक्यो ओलिंपिक में भारत का सफ़र बढ़िया रहा है। मुक्केबाजी, भारोत्तोलन, बैडमिन्टन, कुश्ती, भाला फेंक आदि स्पर्धाओं में खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किये।

सिडनी ओलंपिक 2000 के बाद से यह पहला ऐसा अवसर है, जब हॉकी के दोनों वर्गों में एशिया से कोई देश सेमीफाइनल में पहुंचा। इसका श्रेय ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को जाता है। जिन्होंने न सिर्फ हॉकी टीमों को प्रायोजित किया। बल्कि उनको बेहतरीन ट्रेनिंग व अन्य तरह की सुविधाएँ प्रदान कीं। नवीन पटनायक ने जब 2018 में हॉकी इंडिया के साथ पुरुष और महिला दोनों राष्ट्रीय टीमों को प्रायोजित करने के लिए पांच साल का करार किया था। तब आलोचक हैरान रह गए थे। उनका सवाल था कि बार-बार प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने वाला यह गरीब राज्य क्या इस खेल के लिए सरकारी खजाने पर 100 करोड़ रुपये का खर्च वहन कर पाएगा।

ठीक तीन साल बाद ओलंपिक के नतीजे देख ओडिशा सरकार ने सभी राष्ट्रीय और स्थानीय दैनिक अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन देकर घोषणा की- "इस उल्लेखनीय यात्रा में हॉकी इंडिया के साथ भागीदारी करके ओडिशा को गर्व है।" नवीन पटनायक ने आलोचकों को माकूल जवाब देते हुए कहा- "खेल में निवेश युवाओं में निवेश है।" उन्होंने कहा कि पांच साल तक प्रायोजक बनने का करार ओडिशा का राष्ट्र को तोहफा है। उन्होंने प्रायोजन राशि को भी बढ़ाकर 150 करोड़ किया। 2018 में ओडिशा ने हॉकी वर्ल्ड कप की मेजबानी भी की थी। बहुत से लोगों को तो पता ही नहीं होगा कि नवीन पटनायक दून स्कूल में पढ़ाई के समय गोलकीपर के रूप में हॉकी खेलते थे।

ओलिंपिक के इतिहास में अब तक भारत ने 9 स्वर्ण, 8 रजत और 15 कांस्य पदक जीते हैं। लगभग सभी ओलिंपिक खेलों में भाग लिया है। लेकिन पदकों की दौड़ में बहुत पीछे रहा। इसकी वजह खेलों पर ध्यान न दिया जाना, खेलों-खिलाड़ियों के लिए सुविधाओं की कमी और बहुत कम फंडिंग तथा खेलों पर राजनीति का हावी होना रहा है।


अन्य देशों से तुलना करें तो 2012 के ओलिंपिक खेलों में ब्रिटेन द्वारा जीते गए एक-एक पदक की लागत 45 लाख पौंड आई थी।

हर साल अमेरिका की ओलिंपिक कमेटी 40 से ज्यादा राष्ट्रीय खेल संघों को 5 करोड़ डॉलर से ज्यादा देती हैं। यदि किसी खेल में पदक नहीं जीता जाता है, तो सम्बंधित खेल संघ की फंडिंग घटा दी जाती है।

चीन ने 2016 में खेल प्रशासन को 65 करोड़ डालर से ज्यादा की फंडिंग की थी।जो 2011 की तुलना में 45 फीसदी ज्यादा थी। 2016 में ऑस्ट्रेलिया सरकार ने अपने खेल संघों के लिए 27 करोड़ 20 लाख डालर बजट दिया था।

इन सब देशों की तुलना में भारत काफी पीछे है। खेलों पर तो वर्ष 2020-21 के बजट में पिछले वर्ष की तुलना में कटौती ही कर दी गई। जबकि यह ओलिंपिक खेलों का वर्ष था। 2020-2021 के बजट में खेलों के लिए 2596.14 करोड़ दिए गए। जबकि पिछले साल 2775.90 करोड़ की फंडिंग थी। यानी 230.78 करोड़ रुपये कम कर दिए गए। वर्ष 2016 में सरकार का महत्वाकांक्षी खेलों इंडिया प्रोग्राम लांच हुआ था। लेकिन 2021 उसकी फंडिंग भी कम कर दी गयी। इस साल खेलों इंडिया के लिए 657.71 करोड़ रुपये दिए गए। जबकि 2020 के बजट में 890.92 करोड़ था। 2018-19 से अब तक खेल महासंघों को 711.46 करोड़ रुपये दिए गये हैं। भारत के खेल महासंघों में 47 फीसदी अध्यक्ष राजनेता हैं। बाकी या तो खेलों के बिजनेस से जुड़े हैं या फिर ऐसे हैं जिनका कभी खेलों से कोई वास्ता नहीं रहा है।

टोक्यो ओलिंपिक में भारत ने खिलाड़ियों का सबसे बड़ा दल भेजा था। जिसमें 70 पुरुष व 55 महिला खिलाड़ी थे। भारत के दल में जहाँ हरियाणा के 31 खिलाड़ी, वहीं पंजाब के 16, तमिलनाडु के 12, केरल के 8, यूपी के 8, महाराष्ट्र के 7, कर्नाटक के 5, ओडीशा के 5, मणिपुर के 5, दिल्ली के 4, राजस्थान के 4, बंगाल, मध्यप्रदेश, और झारखण्ड के तीन-तीन, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश और गुजरात के दो-दो तथा असम, उत्तराखंड, हिमाचल, मिजोरम और सिक्किम के एक-एक खिलाड़ी थे।

हरियाणा की जनसंख्या देश की आबादी की 2 फीसदी है। लेकिन ओलंपिक में भाग लेने वाले 25 फीसदी खिलाड़ी हरियाणा से आते हैं। ओलंपिक पदक जीतने वाले हरियाणवी खिलाड़ियों का प्रतिशत 40 से अधिक है।

हरियाणा में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के तहत बने कुल 22 सेंटर्स हैं। इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से भी तमाम इलाकों में विश्वस्तरीय स्टेडियम और स्पोर्ट्स यूनिट्स का निर्माण किया गया है। हरियाणा में अपनी खेल यूनिवर्सिटी भी है। राज्य के खेल मंत्रालय की कमान भी भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान संदीप सिंह को सौंपी गई है। टोक्यो ओलंपिक में गए कुश्ती दल के सभी पहलवान (पुरुष-महिला) हरियाणा के हैं। अधिकांश मुक्केबाज़ और महिला हॉकी टीम की 9 खिलाड़ी भी हरियाणा से ही हैं। 2020-21 में हरियाणा का खेल बजट 6433 करोड़ रुपये का था जो 2021-22 में 7733 करोड़ रुपये कर दिया गया।


हरियाणा की खेल नीति के मुताबिक़ अंतरराष्ट्रीय खेलों में विभिन्न श्रेणी के पदक जीतने व स्पोर्ट्स ग्रेडेशन सार्टिफिकेट के आधार पर खिलाड़ियों को डीएसपी और इन्स्पेक्टर स्तर की नौकरी मिलती है। करोड़ों की नगद प्रोत्साहन राशि, मुफ्त फ़्लैट और रियायती क़ीमतों पर प्लॉट, खेल एकेडमी खोलने के लिए ज़मीन, बड़ी स्पर्धाओं में चयनित होने वाले हर खिलाड़ी को तैयारियों के लिए 5 लाख रुपये की आर्थिक मदद, अच्छी कोचिंग के लिए खिलाड़ियों को सरकारी खर्चे पर विदेश भेजा जाता है। खिलाड़ियों को खान-पान के लिए प्रतिदिन 250 रुपये दिए जाते हैं।

इसकी शुरुआत 2006 की खेल नीति से हुई है। सबसे पहले ओम प्रकाश चौटाला ने 2000 के सिडनी ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतने पर एक करोड़ रुपये देने का ऐलान किया था। हालाँकि पदक तो कोई नहीं जीत पाया। लेकिन उनकी घोषणा एक नजीर बन गयी।

ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी को 6 करोड़, सिल्वर मेडल जीतने वाले खिलाड़ी को 4 करोड़ और ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले को 2.5 करोड़ रुपये हरियाणा सरकार देती है। इसके अलावा ऐसे खिलाड़ियों के कोच को भी 20 लाख रुपये की राशि इनाम के रूप में दी जाती है। हाल ही में हरियाणा सरकार ने ओलंपिक में चौथे स्थान पर आने वाली महिला हॉकी टीम के प्लेयर्स को भी इनाम देने का ऐलान किया है। इस टीम के 9 सदस्यों को राज्य सरकार की ओर से 50-50 लाख रुपये की राशि देने की घोषणा हुई है।

आज़ादी के पहले पंजाब के जमींदार और राजा कुश्ती को संरक्षण देते थे। सो वह अब ये खेल परम्परा में शामिल हो गया।

हरियाणा के लोगों की मजबूत शारीरिक बनावट होती है। वे मेहनतकश होते हैं, यह भी खेलों में उनकी सफलता का राज है। हरियाणा में खेल और खिलाड़ियों की सफलता के पीछे सेना की बड़ी भूमिका है। क्योंकि इस राज्य से ढेरों युवक सेना में जाते हैं। वहां खेलों में भाग लेते हैं। इनमें से बहुत से लोग बाद में रिटायर होने पर अपने राज्य में युवाओं को प्रशिक्षण देने में लग जाते हैं। और खेलों की परम्परा को आगे बढ़ाते हैं।

1966 में हरियाणा के हवा सिंह ने एशियाई खेलों में बॉक्सिंग का गोल्ड मेडल जीता था, उन्होंने सेना में भर्ती होने के बाद बॉक्सिंग सीखी थी। रिटायर होने के बाद हवा सिंह बॉक्सिंग कोच बन गए। उन्होंने हरियाणा को बॉक्सिंग हब में तब्दील कर दिया।

ओलंपिक में भाला फेंक में इतिहास रचने वाले नीरज चोपड़ा के लिए उनके गृह राज्य हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ग्रुप एक की नौकरी देने के एलान के साथ छह करोड़ रुपए नगद, रियायती दर पर प्लाट और पंचकूला एथलेटिक ट्रैक बनाकर उसका हेड बनाने की घोषणा की है। फ़िलहाल नीरज 2016 से सेना के राजपूताना रेंजिमेंट में सूबेदार के पद पर हैं। अगर खेल हमारे देश का गौरव बढ़ाने के इतने काम आते हैं तो निश्चित ही हमारे देश को विदेशों से और देश के दूसरे राज्यों को हरियाणा व उड़ीसा से कुछ न कुछ तो ज़रूर सीखना चाहिए। हमारे यहाँ प्रतिभाओं की कमी नहीं है। कमी उन्हें पहचानकर अवसर देने वाले नज़रिये और संसाधन देने वाले हाथ व मन की है।

हरियाणा के प्रसिद्ध खिलाड़ी

संतोष यादव– पर्वतारोहण– पद्मश्री– एवरेस्ट विजेता

ममता सौदा– पर्वतारोहण– पद्मश्री- एवरेस्ट विजेता

साइना नेहवाल– बैडमिन्टन– अर्जुन अवार्ड, राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड, पद्मश्री

योगेश्वर दत्त– कुश्ती– राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड– 2012 में ओलिंपिक कांस्य, राष्ट्रमंडल खेलों में 4 बार गोल्ड मेडल

विकास कृष्ण यादव– बॉक्सिंग– अर्जुन अवार्ड, राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड

विजेंदर सिंह– बॉक्सिंग– अर्जुन अवार्ड, राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड

सरदारा सिंह– हॉकी- अर्जुन अवार्ड, द्रोणाचार्य अवार्ड

संदीप सिंह– हॉकी- अर्जुन अवार्ड

गीता जुत्शी– एथलीट– पद्मश्री

ममता खराब– हॉकी- अर्जुन अवार्ड

कविता चहल– बॉक्सिंग- अर्जुन अवार्ड

अखिल कुमार– बॉक्सिंग- अर्जुन अवार्ड, राष्ट्रमंडल खेलों में गोल्ड मेडल विजेता

नेहा राठी– कुश्ती- अर्जुन अवार्ड

अमित सरोहा– पैरा ओलिंपिक में डिस्कस थ्रो– अर्जुन अवार्ड

कृष्णा पूनिया– डिस्कस थ्रो– पद्मश्री

जसजीत कौर हांडा– हॉकी- अर्जुन अवार्ड

अनूप कुमार– कबड्डी– अर्जुन अवार्ड

ऋतू रानी– हॉकी– अर्जुन अवार्ड

दलेल सिंह– वॉलीबॉल– अर्जुन अवार्ड

मनोज कुमार– बॉक्सिंग– एशियाई खेलों में दो बार कांस्य पदक

गीता फोगाट– कुश्ती

बबिता फोगाट– कुश्ती

विनेश फोगाट– कुश्ती

दिनेश कुमार– बॉक्सिंग

रानी रामपाल– हॉकी

सविता पूनिया– हॉकी

प्रीतम रानी सिवाच– हॉकी

साक्षी मलिक- कुश्ती– 2016 में ओलिंपिक कांस्य

सीमा पूनिया– डिस्कस थ्रो

परमजीत समोता– बॉक्सिंग

दिनेश कुमार– बॉक्सिंग

राजेंदर– कुश्ती

सूबे सिंह– वॉलीबाल

हरप्रीत सिंह– शूटिंग

कपिल देव– क्रिकेट

वीरेंदर सहवाग– क्रिकेट

विजय यादव– क्रिकेट

जोगेंद्र शर्मा– क्रिकेट

चेतन शर्मा– क्रिकेट

अशोक मल्होत्रा– क्रिकेट

(लेखक अपना भारत/न्यूजट्रैक के संपादक हैं)



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Raghvendra Prasad Mishra

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