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Ramkatha Painting Tradition: लघु चित्रों में रामकथा की परम्परा
Ramkatha Painting Tradition: सनातनता को सहारा देने का काम या संभालने का काम लघु चित्रकारों ने किया। उत्तर भारत में प्रसरित लगभग सभी शैलियों में किसी न किसी रूप में रामकथा का रूपायन कहीं श्रृंखलाबद्ध रूप में तो कहीं विच्छृंखलित रूप में किया गया।
Ramkatha Painting Tradition: भारतीय संस्कृति के दो महाकाव्य रामायण और महाभारत में वर्णित कथाएं विकसनशील होने के कारण दोनों की ग्रंथों के उपजीव्य काव्य ही हैं, जो परवर्ती रचनाकारों के लिए आधारग्रंथ हैं। कहा तो यहाँ तक जा सकता है कि सम्पूर्ण भारतीय साहित्य वाल्मीकि और व्यास का उच्छिष्ट अथवा जूठन है। रामकथा की परम्परा की चर्चा करें तो एक लम्बी अनुक्रमणी हमारे सामने उपस्थित होती है; जिसमें महाकाव्य भी हैं, काव्य भी हैं और नाटक भी हैं, जो अधोलिखित हैं
1. रघुवंश . कालिदास (प्रथम शती ई.पू.)
2. सेतुबंध. प्रवरसेन
3. जानकीहरण • कुमारदास
4. महाकाव्य भट्टि
5. रामचरित अभिनन्द 726 ई.
6. रामायण चम्पू भोज (1050 से 1054 ई.)
7. उत्तर चम्पू वेंकटध्वरि (उत्तरकाण्ड की घटना)
8. रामायण तथा भारतमंजरी क्षेमेन्द्र (990 से 1066 ई.)
आलेख इलाहाबाद संग्रहालय में सुरक्षित लघुचित्रों पर आधारित है।
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9. राघवपाण्डवीयम् विद्यामाधव
नाटकों में-
1. कुन्दमाला : दिङ्नाग
2. प्रतिमानाटकम् भास
3. उत्तररामचरितम् एवं महावीरचरित भवभूति
4. अनर्घराघव मुरारि
5. आश्चर्यचूणामणि शक्तिभद्र
6. हनुमन्नाटक अनंग हर्षमायूराज
7. बालरामायण राजशेखर
8. उन्मत्तराघव विरूपाक्ष
9. रघुनाथचरित वामनभट्ट
10. प्रसन्नराघव जयदेव
11. रामाभ्युदयम् रामदेव व्यास
12. आनन्दराघव राजचूणामणि दीक्षित
13. मैथिलीकल्याण हस्तिमल्ल
14. दूतांगद सुभट
15. उल्लाघराघव सोमेश्वर
के अतिरिक्त भागवत, अग्निपुराण का रामोपाख्यान, योगवशिष्ठ, आध्यात्म रामायण, आनन्द रामायण तथा अद्भुत रामायण में रामकथा को विविध पक्ष से या विविध दृष्टि से वर्णित किया गया है।
इस प्रकार नाटक, चम्पूकाव्य, काव्य एवं महाकाव्य के रूप में रामकथा लगभग प्रत्येक युग में लिखी जाती रही है। चौदहवीं शताब्दी के उपरान्त
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संस्कृत में रामकथा के लेखन की परम्परा विशृंखलित है। इस मध्य विच्छिन्न होती इस सनातनता को सहारा देने का काम या संभालने का काम लघु चित्रकारों ने किया। उत्तर भारत में प्रसरित लगभग सभी शैलियों में किसी न किसी रूप में रामकथा का रूपायन कहीं श्रृंखलाबद्ध रूप में तो कहीं विच्छृंखलित रूप में किया गया।
यदि मूर्तिशिल्प में दृष्टिपात करें तो रामकथा का अंकन प्रयत्नपूर्वक यन्त्र- तत्र ही मिलता है, जिसका एक उदाहरण श्रृंग्वेरपुर से प्राप्त तथा हमारे संग्रहालय की प्रस्तरशिल्प वीथिका में प्रदर्शित प्रस्तर फलक है, जिस पर भगवान राम एवं लक्ष्मण वानर सखाओं के साथ दर्शाये गए हैं, किन्तु लघुचित्रों में रामकथा के अंकन की परम्परा प्रभूत मात्रा में मिलती है, जिनमें संग्रहालय के लघुचित्र सुरक्षित संग्रह में संरक्षित कुछ चित्र उदाहरण के रूप में यहाँ प्रस्तुत हैं: (चित्र 1)
उपरोक्त लघुचित्र में दृश्य दण्डकारण्य का है, जिसमें राम और सीता वृक्ष के नीचे कमलासन पर बैठे हैं, सामने लक्ष्मण एक घायल हिरन को कंधे पर रखे हुए चले आ रहे हैं। यह लघुचित्र वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड के नौवें सर्ग के 27वें श्लोक का चित्रण है, जिसमें सीता यह अनुरोध करती हुई चित्रित की गयी हैं-
क्व च शस्त्रं, क्व च वनं, क्व च क्षात्रं तपः क्व च।
व्याविद्धमिद्मस्माभिर्देषधर्मस्तु पूज्यताम् ।।
वाल्मीकि, अरण्यकाण्ड, 9.27
अर्थात् कहाँ शस्त्र धारण और कहाँ वनवास। कहाँ क्षत्रिय का हिंसामय कठोर कर्म और कहाँ सब प्राणियों पर दया करना रूप तप, ये परस्पर विरुद्ध जान पड़ते हैं। अतः हम लोगों को देश धर्म का ही आदर करना चाहिए। (इस समय हम तपोवन रूप देश में निवास कर रहे हैं, अतः यहाँ के
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अहिंसामय धर्म का पालन करना ही हमारा कर्तव्य है) इस प्रकार यह लघुचित्र उक्त श्लोक से सादृश्य रखते हुए सीता के द्वारा तपोवन के अहिंसामय धर्म के अनुपालन का अंकन है। (चित्र 2)
इस लघु चित्र में दण्डकारण्य में मारीच वध का दृश्य दिखाया गया है, प्रथम दृश्य में स्वर्णमृग का रूप धारण किये हुए मारीच शरविद्ध है तथा अपने मौलिक राक्षसी स्वरूप में परिवर्तित होते दिख रहा है। इस चित्र में मुख्य बात यह है कि मायामृग पर राम और लक्ष्मण दोनों प्रहार करते हुए अथवा बाण चलाते हुए दिख रहे हैं, नीचे दूसरे दृश्य में सीता के समीप रावण साधु के वेश में उपस्थित है। (चित्र 3)
यह दृश्य सीता की खोज में जंगल में भटकते हुए हनुमान से हुई भेंट से सम्बन्धित है। इस लघुचित्र में कुल तीन दृश्य हैं-
प्रथम दृश्य में अशोक वाटिका में शोकरत सीता बैठी हैं, दूसरे दृश्य में राम-लक्ष्मण, सीता की खोज की करते हुए वन में भटक रहे हैं, तीसरे दृश्य में हनुमान आभूषण की पोटली लिये हुए दिखाए गये हैं।
इस लघुचित्र में मुख्य बात यह है कि राम को गौरांग दिखाया गया है तथा सीता को भी आभूषण युक्त दिखाया गया है। (चित्र 4)
इस लघुचित्र का दृश्य किष्किन्धाकाण्ड एवं लक्ष्मण-सुग्रीव संवाद से सम्बन्धित है। चित्र में कुल चार दृश्य हैं।
प्रथम दृश्य में श्रीराम, वानर वीर योद्धाओं से बात करते हुए दिख रहे हैं, जबकि दूसरे दृश्य में लक्ष्मण एवं वानरराज सुग्रीव का संवाद हो रहा है तथा पास में लक्ष्मण, अंगद के साथ महल में प्रवेश करते हुए दिखाए गए हैं।
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तीसरे दृश्य में सुग्रीव एवं लक्ष्मण साथ खड़े हैं तथा सुग्रीव अपनी वानर सेना को आदेश दे रहे हैं कि जाओ, सीता को खोज के लाओ, चौथा दृश्य अंतःपुर का है जिसमें सुग्रीव की पत्नी रूमा एवं वानरराज बालि की पत्नी तारा परस्पर संवादरत हैं।
वानर सखाओं के साथ राम-लक्ष्मण, श्रृंग्वेरपुर, इलाहाबाद, लगभग 5वीं शती. ई.। इस प्रस्तर फलक पर राम, सुग्रीव मैत्री का दृश्य अंकित है जो कि किष्किन्धाकाण्ड से सम्बन्धित है, जिसमें राम और लक्ष्मण की आकृतियाँ बहुत स्पष्ट नहीं हैं, उनके बाएँ कंधे पर धनुष एवं तूणीर है तथा उनके बाएँ सुग्रीव, राम तथा अंगद खड़े हैं।
पृष्ठभूमि में ऋष्यमूक पर्वत का प्राकृतिक दृश्य दर्शाया गया है जिसमें नागकेसर, अशोक तथा केले के वृक्ष सम्भवतः प्रस्तुत किए गए हैं। (चित्र 5)
इस लघुचित्र में समुद्र तट का दृश्य दिखाया गया है, जिसमें बड़ी संख्या में वानर एवं भालू शिलाओं से समुद्र पर सेतु निर्माण के कार्य में रत हैं। (चित्र 6)
इस लघुचित्र में कुम्भकर्ण को युद्ध क्षेत्र में उपस्थित दिखाया गया है जिस पर वानर योद्धा आक्रमण कर रहे हैं तथा श्रीराम भी धनुष पर बाण चढ़ा रहे हैं, उनके पीछे लक्ष्मण भी धनुष बाण लिए युद्ध के लिए तैयार हैं।
दूसरी तरफ लंका के परकोटों में अलग-अलग राक्षसों को दुर्ग की सुरक्षा में तैनात दिखाया गया है। कुम्भकर्ण परिखा में खड़ा दिखाई दे रहा है जिसमें जलीय जीव भी तैरते दिखाई दे रहे हैं। दुर्ग की सुरक्षा के लिए पहले परिखा प्राचीर के उल्लेख प्राचीन साहित्य में मिलते हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में आठ प्रकार की परिखाओं का उल्लेख मिलता है। जो कि दुर्ग की सुरक्षा के लिए बनाये जाते थे। इस चित्र में जल परिखा का अंकन चित्रकार द्वारा किया गया है। (चित्र 7)
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इस दृश्य में राम की सेना तथा लंका में स्थित योद्धाओं को दिखाया गया है, चित्र में लंका के राजमहल में ऊपर की तरफ रावण तथा मन्दोदरी को संवादरत चित्रित किया गया है तथा विभिन्न स्थानों पर तैनात दिग्गज राक्षसों का भी चित्रण किया गया है। चित्र के निम्न भाग में-
राम की सेना एवं वानर योद्धाओं का नाम सहित चित्रण भी चित्रकार द्वारा किया गया है।
इस दृश्य में राम की सेना तथा लंका में स्थित योद्धाओं को दिखाया गया है, जिसका उल्लेख रामचरितमानस में इस प्रकार किया गया है :
कुमुख अकंपन कुलिसरद धूमकेतु अतिकाय।
एक एक जग जीति सक ऐसे सुभट निकाय।।
बालकाण्ड, रामचरितमानस
यह इस बात का संकेत है कि तत्कालीन चित्रकार मात्र कला से ही नहीं, कथावस्तु से भी परिचित था। मूलतः इस लघुचित्र में कुम्भकर्ण से राम-लक्ष्मण सहित वानर-भालू युद्धरत हैं, राजमहल के योद्धाओं का भी उल्लेख बाबा तुलसीदास ने मानस में इस प्रकार किया है (चित्र 8)
द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि ॥
-सुन्दरकाण्ड, रामचरितमानस
भावार्थ-द्वबिद, मयंद, नील, नल, अंगद, गद, विकटास्य, दधिमुख, केसरी, निसठ, सठ और जाम्बवान ये सभी बल की राशि हैं।
इस मुगल शैली के लघुचित्र में दरबार में राम-सीता परस्पर संवादरत हैं, पीछे लक्ष्मण छत्र लिए खड़े हैं, नीचे भरत एवं शत्रुघ्न बैठे हुए हैं, हनुमान जी भी निषाद राज के साथ हाथ जोड़े खड़े दर्शाये गये हैं, साथ में विभीषण
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भी हाथ जोड़े हुए खड़े हैं। इस लघुचित्र में मुख्य बात यह है कि विभीषण को पूर्णतः मुगल राजा की तरह दर्शाया गया है तथा लघुचित्र में मुगल शैली का प्रभाव इस चित्र में दिखाई पड़ता है जिसे एक होती मुगल और हिन्दू संस्कृति के प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है। इस लघुचित्र को मुगल और सनातन संस्कृति की तादात्म्यावस्था का द्योतक कहा जा सकता है।
(लेखक भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत आने वाले इलाहाबाद संग्रहालय से अधिकारी के तौर पर जुड़े हुए हैं। ‘ कला व संस्कृति में श्रीराम ‘ पुस्तक से साभार ।यह पुस्तक उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के संरक्षक , संस्कृति व पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह के मार्ग दर्शन , प्रमुख सचिव पर्यटन व संस्कृति मुकेश कुमार मेश्राम के निर्देशन, संस्कृति निदेशालय के निदेशक शिशिर तथा कार्यकारी संपादक तथा अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ लव कुश द्विवेदी के सहयोग से प्रकाशित हुई है।)