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Tribute to George Fernandes: इंदिरा गांधी के मास्को दौरे से टला जॉर्ज का एनकाउंटर

कोलकता के चौरंगी के पास संत पाल कैथिड्रल था। बडौदा फिर दिल्ली से भागते हुये जार्ज ने कोलकता के चर्च में पनाह पाई...

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Shivani
Published on: 2 Jun 2021 8:11 PM IST
Tribute to George Fernandes: इंदिरा गांधी के मास्को दौरे से टला जॉर्ज का एनकाउंटर
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Tribute to George Fernandes: आज (3 जून 2021) बागी लोहियावादी जार्ज मैथ्यू फर्नाण्डिस 91 वर्ष के होते। जिस युवा समाजवादी (Samajwadi) द्वारा बन्द के एक ऐलान पर सदागतिमान, करोड़ की आबादीवाली मुम्बई सुन्न पड़ जाती थी। जिस मजदूर पुरोधा के एक संकेत पर देश में रेल का चक्का जाम हो जाता था। जिस सत्तर—वर्षीय पलटन मंत्री ने विश्व की उच्चतम रणभूमि कारगिल की अठारह बार यात्रा कर मियां मोहम्मद परवेज मुर्शरफ (Pervez Musharraf) को पटकनी दी थी। सरकारें बनाने-उलटने का दंभ भरनेवाले कार्पोरेट बांकों को उनके सम्मेलन में ही जिस उद्योग मंत्री ने तानाशाह (इमर्जेंसी में) के सामने हड़बड़ाते हुये चूहे की संज्ञा दी, वही पुरूष सुधबुध खोये, दक्षिण दिल्ली (Delhi) के पंचशील पार्क में क्लांत जीवन बसर करते चिरनिद्रा में सो गया था। जार्ज के देशभर में फैले मित्र आज याद करते हैं, नम आँखों से। विशेषकर श्रमिक नेता विजय नारायण (काशीवासी) और साहित्यकार कमलेश शुक्ल दोनों मेरे साथ तिहाड़ जेल में बडौदा डायनामाइट केस में जार्ज के 24 सहअभियुक्तों में रहे। अपने बावन वर्षों के सामीप्य पर आधारित स्मृतियां लिये एक सुहृद्र को याद करते मेरे इस लेख का मकसद यही है कि कुछ उन घटनाओं और बातों का चर्चा हो, जो अनजानी रहीं। काफी अचरजभरी रहीं।

मसलन यही जून का महीना था। चालीस साल बीते। इन्दिरा गांधी का हुकुम स्पष्ट था सी.बी.आई. के लिये कि भूमिगत जार्ज फर्नाण्डिस को जीवित नहीं पकड़ना है। दौर इमर्जेंसी का था। दो लाख विरोधी सीखचो के पीछे ढकेल दिये गये थे। कुछ ही जननेता कैद से बचे थे। नानाजी देशमुख, कर्पूरी ठाकुर आदि। जार्ज की खोज सरगर्मी से थी। उस दिन (10 जून 1976) की शाम को बडौदा जेल में हमें जेल अधीक्षक ने बताया कि कलकत्ता में जार्ज को पकड़ लिया गया है। तब तक मैं अभियुक्त नम्बर एक था। मुकदमों का शीर्षक ''भारत सरकार बनाम मुलजिम विक्रम राव तथा अन्य'' था। फिर क्रम बदल गया। जार्ज का नाम मेरे ऊपर आ गया। तिहाड़ जेल में पहुँचने पर साथी विजय नारायण से जार्ज की गिरफ्तारी का सारा किस्सा पता चला।

कोलकता के चौरंगी के पास संत पाल कैथिड्रल था। बडौदा फिर दिल्ली से भागते हुये जार्ज ने कोलकता के चर्च में पनाह पाई। कभी तरूणाई में बंगलौर में पादरी का प्रशिक्षण ठुकरानेवाले, धर्म को बकवास कहनेवाले जार्ज ने अपने राजनेता मित्र रूडोल्फ राड्रिक्स की मदद से चर्च में कमरा पाया। रूडोल्फ को 1977 में जनता पार्टी सरकार ने राज्य सभा में एंग्लो-इण्डियन प्रतिनिधि के तौर पर मनोनीत किया था। सभी राज्यों की पुलिस और सी.बी.आई. के टोहीजन शिकार को सूंघने में जुटे रहे। शिकंजा कसता गया। चर्च पर छापा पड़ा। पादरी विजयन ने जार्ज को छिपा रखा था। पुलिस को बताया कि उनका ईसाई अतिथि रह रहा है। पर पुलिसिया तहकीकात चालू रही। कमरे में ही एक छोटे से बक्से में एक रेलवे कार्ड मिला।

वह आल-इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेशन के अध्यक्ष का प्रथम एसी वाला कार्डपास था। नाम लिखा था जार्ज फर्नाण्डिस। बस पुलिस टीम उछल पड़ी, मानो लाटरी खुल गई हो। तुरन्त प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क साधा गया। बेशकीमती कैदी का क्या किया जाए ? उस रात जार्ज को गुपचुप रूसी फौजी जहाज इल्यूशिन से दिल्ली ले जाया गया। इन्दिरा गांधी तब मास्को के दौरे पर थीं। उनसे फोन पर निर्देश लेने में समय लगा। इस बीच पादरी विजयन ने कोलकता में ब्रिटिश और जर्मन उपराजदूतावास की बता दिया कि जार्ज कैद हो गये है। खबर लन्दन और बाॅन पहुंची। ब्रिटिश प्रधान मंत्री जेम्स कैलाघन, जर्मन चांसलर विली ब्राण्ड तथा नार्वे के प्रधानमंत्री ओडवार नोर्डी जो सोशलिस्ट इन्टर्नेशनल के नेता थे ने एक साथ इन्दिरा गांधी को मास्को में फोन पर गंभीर परिणामों से आगाह किया यदि जार्ज का एनकाउन्टर कर दिया गया तो। वर्ना जार्ज की लाश तक न मिलती। गुमशुदा दिखा दिया जाता। वे बच गये और तिहाड़ जेल में रखे गये।

जार्ज की राजनेतावाली ओजस्विता तिहाड़ जेल में हमारे बड़े काम आयी। दशहरा का पर्व आया (अक्टूबर 1976)। तय हुआ कि अखण्ड मानस पाठ किया जाय। पूर्वी रेल यूनियन के नेता महेन्द्र नारायण वाजपेयी ने संचालन संभाला। मानस की प्रतियां भी आ गई। आसन साधा गया। मुश्किल आई कि हम हिन्दूजन केवल आधे-पौन घंटे की क्षमतावाले ही थे। कम से कम दो तीन घंटे का माद्दा केवल जार्ज में था। आखिर श्रमिक रैली, चुनावी सभाओं और लोकसभा में भाषण की आदत तो थी ही। तय हुआ कि जार्ज को पाठ के लिए चौबीस में से बारह घंटे चार दौर में आवंटित किये जाये। शेष हम बारह लोग एक एक घंटे तक दो किश्तों में पाठ करें। इसमें थे सर्वोदयी प्रभुदास पटवारी जो तमिलनाडु के राज्यपाल बने।

प्रधानमंत्री फिर बनते ही इन्दिरा गांधी ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था। स्वर्गीय वीरेन शाह थे। नामी गिरामी उद्योगपति और भाजपाई सांसद जो पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। दोहों के उच्चारण, लय तथा शुद्धता में कमलेश शुक्ल माहिर रहे। आखिर पूर्वी उत्तर प्रदेश के विप्रशिरोमणि है। विजय नारायण, महेन्द्र नारायण वाजपेयी, वकील जसवंत चैहान बड़े सहायक रहे। तभी भारतीय जनसंघ (तब भाजपा जन्मी नहीं थी) के विजय मलहोत्रा, मदनलाल खुराना और प्राणनाथ लेखी, अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल आदि भी हमारे सत्रह नम्बर वार्ड में यदाकदा आते थे। एक बार हम सब को भोजन करते समय ये राजनेता ''त्वदीयम् वस्तु गोविन्दम्'' उच्चारते देखकर अचरज में पड़ गये। वे समझते थे कि लोहिया के अनुयायी सब अनीश्वरवादी होते हैं।

लोहिया का चेला हो और विवादित व्यक्तित्व वाला न हो ? नामुमकिन। भ्रष्टाचार के तीन भयंकर आरोप लगे थे जार्ज़ पर। कारगिल के शहीदों की लाशें लाने के लिये विदेश से अल्मूनियन के ताबूत का आयात किया गया। आरोप था कि इनकी खरीद में लूट हुई है। जार्ज को सोनिया गांधी ने कफन चोर कहा था। तहलका ने एक स्टिंग आपरेशन में शस्त्रों की खरीद में दलाली का आरोप दिखाया गया। इस्राइल से शस्त्र खरीदने में भी रिश्वत का आरोप लगाया गया। सबकी सी.बी.आई. ने जांच की। रक्षा विशेषज्ञ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जो बाद में राष्ट्रपति बने ने गवाही दी थी। सोनियानीत यूपीए सरकार ने चार वर्षों तक जांच टाला। अन्ततः सी.बी.आई. ने तीनों मामलों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बता दिया कि जार्ज फर्नाण्डिस निरपराध हैं, दोषमुक्त करार दे दिये गये।

एक बात जार्ज के बारे में और। समाजवादी हो और आतिशी न हो ? यह तो उनकी फितरत है। जार्ज के रक्षामंत्री के आवास (तीन कृष्ण मेनन मर्जा) में बर्मा के विद्रोहियों का दफ्तर खोल दिया। ये लोग फौजी तानाशाहों के विरूद्ध मोर्चा खोले थे। तिब्बत में दलाई लामा की घर वापसी का समर्थन और उनके अप्रवासियों को धन-मन से जार्ज मदद करते रहे। अण्डमान के समीप भारतीय नौसेना ने शस्त्रों से लदे जहाज पकडे़ जो अराकान पर्वत के मुस्लिम विद्रोहियों के लिये लाये जा रहे थे। जार्ज ने जलसेना कमाण्डर को आदेश दिया कि ये जहाज रोके न जायं। श्रीलंका के तमिल विद्रोहियों ने अपने दिवंगत नेता वी. प्रभाकरण के बाद जार्ज को अपना सबसे निकट का हमदर्द माना था। सच्चा समाजवादी दुनिया के हर कोने में हो रहे प्रत्येक विप्लव, विद्रोह, क्रान्ति, उथलपुथल, संघर्ष और गदर का समर्थक होता है। क्योंकि उससे व्यवस्था बदलती है, सुधरती है। जार्ज सदा बदलाव के पक्षधर रहे। इसलिए आज भी आम जन के वे मनपसन्द राजनेता है।



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