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मोदीनॉमिक्स का ट्रंप बना हाउडी मोदी

raghvendra
Published on: 14 Jun 2023 7:26 PM IST (Updated on: 14 Jun 2023 8:04 PM IST)
मोदीनॉमिक्स का ट्रंप बना हाउडी मोदी
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दिखाई भारत की ताकत, मोदी ने तोड़ीं इमरान की उम्मीदें

योगेश मिश्र योगेश मिश्र

कभी नरेन्द्र दामोदरदास मोदी को वीजा न देने वाले अमेरिका में जिस तरह उनका खैरमकदम हुआ उससे यह तो साबित हो ही गया कि सिर्फ भारत को अमेरिका की नहीं, बल्कि अमेरिका को भी भारत की इन दिनों बेहद जरूरत है। यह पहला मौका है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति को इस बात का इलहाम हुआ है कि उसका चुनावी अभियान भारतीय प्रधानमंत्री के कंधों के बिना नहीं चल सकता। शायद इसी एहसास का नतीजा है कि पहली बार कोई अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसे कार्यक्रम में शामिल हुआ जिसे राजधानी के बाहर दूसरे देश के प्रधानमंत्री के लिए आयोजित किया गया। कई परंपराएं तोड़ी गईं। प्रोटोकॉल दरकिनार किये गए। ट्रंप के भाषण के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति की मुहर को हटाकर दोनों देश के झंडे रखे गये। हाउडी मोदी रैली भारत-अमेरिका के बढ़ते संबंधों की गवाह बनी। रैली में भारत-अमेरिकी रिश्तों का जुनून देखते बन रहा था।

एक ऐसे समय जब भारत अमेरिकी कारोबार को लेकर तनाव है, डाटा सुरक्षा कानून को लेकर तनातनी जारी है, तब ट्रंप द्वारा मोदी का स्वागत किया जाना यह संदेश देता है कि 370 हटाने के बाद शक्तिशाली देशों को अपने पक्ष में खड़ा करने में मोदी कामयाब हुए हैं। कश्मीरी पंडितों का 370 हटाने के लिए शुक्रिया अदा करना, दाऊदी बोहरा समुदाय द्वारा कृतज्ञता जताना मोदी को और मजबूत कर रहा था। अमेरिका में रहने वाले 20 फीसदी एशियाई समुदाय का झुकाव प्राय: डेमोक्रेट्स की तरफ रहता है। ह्यूस्टन रैली के चलते अगर इस समुदाय का थोड़ा भी झुकाव रिपब्लिकन की तरफ हो जाता है तो ट्रंप को बड़ा फायदा मिल सकता है।

ह्यूस्टन के एनआरजी स्टेडियम में उपस्थित लोगों के हुजूम, संगीत-नृत्य और मस्ती के प्रवाह में झूमते समुदाय ने ‘साझा स्वप्न और सुनहरा भविष्य‘ की दिशा में जो कदम बढ़ाए उसमें यह तय करना मुश्किल हो उठा कि हाउडी मोदी का असली विजेता कौन है- ट्रंप या मोदी? क्योंकि दोनों नेताओं ने चुनावी पकड़ के लिए आपसी मजबूत समझ दिखाई, रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में उम्मीद की नई यात्रा की ओर बढ़े, आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए नया संकल्प पढ़ा। मोदी ने ‘अबकी बार, ट्रंप सरकार‘ कह कर साफ कर दिया कि अमेरिकी चुनाव में अप्रवासी भारतीयों की भूमिका होनी क्या चाहिए। अमेरिका में 40 लाख भारतीय रहते हैं। नरेंद्र मोदी ने कहा कि हम लोग नया इतिहास बनते हुए देख रहे हैं। उत्साह और जोश से नई केमेस्ट्री भी बन रही है। भारत, अमेरिकी रिश्तों के लिहाज से हाउडी मोदी नई केमेस्ट्री ही कही जानी चाहिए क्योंकि दोनों देशों के आपसी संबंध कई मतभेदों के बाद भी ऊंचाइयों पर पहुंचे। दोनों देशों के हित साधने वाले कारोबारी समझौतों की उम्मीद जगी। ऊर्जा क्षेत्र में की गई पहल से पेट्रोनिट लिक्वड नेचुरल गैस (एलपीजी) का अमेरिका की होमोथ-टेल्यूरिन इंक से समझौता बड़ी कामयाबी कही जा सकती है; जिसके तहत पेट्रोनेट अमेरिकी कंपनी से 5 मिलियन टन एलपीजी आयात करेगी।

हाउडी मोदी से यह दिखा कि अमेरिका में बसे भारतीयों पर मोदी का चुंबकीय असर है। आयोजन ने बताया कि दोनों देशों के साझा मूल्य हैं। स्वतंत्रता, आजादी तथा उदारता के लिए उनका प्रेम भारत-अमेरिका को एक-दूसरे से जोड़ता है। दोनों देशों के संविधान तीन शब्दों से शुरू होते हैं- वी द पीपल। पंजाबी भागड़ा, गुजराती गरबा, गुरुवाणी और संस्कृत के मंत्रों के बीच योग के आसन, समोसे से बर्गर तक का रिश्ता, जगजीत सिंह की गज़ल की प्रस्तुति यह बता रही थी कि अपनी भारतीयता पर गर्व करने वाला टेक्सास का यह समाज जहां अमेरिकी संस्कृति, मूल्य तथा समृद्धि का वाहक है, वहीं इसने भारतीय संस्कृति, सभ्यता, कला, संगीत, नृत्य और धार्मिक आस्थाओं को सहेज कर रखने का काम भी किया है।

टेक्सास में बसे भारतीयों का एक संगठन टेक्सास इंडिया फोरम (टीएफआई) हाउडी मोदी कार्यक्रम का आयोजक रहा। अमेरिका में बसे भारतीय मूल के लोगों ने ह्यूस्टन को इस कार्यक्रम के लिए क्यों चुना, यह जानना बेहद जरूरी है। ह्यूस्टन में करीब 1.3 लाख इंडियन-अमेरिकन रहते हैं। यह कम्युनिटी राजनीतिक और व्यापारिक रूप से काफी ताकतवर है। ह्यूस्टन में इंडियन-अमेरिकन का दबदबा इसी से जाना जा सकता है कि यहां महिंद्रा एंड महिंद्रा, रिलायंस, लार्सेन टूब्रो, ओएनजीसी, गेल, आयल इंडिया जैसी कई कंपनियों के कॉर्पोरेट मुख्यालय हैं। इसी साल जून में ह्यूस्टन के 25 प्रमुख भारतीय प्रोफेशनल्स ने मोदी को पत्र लिख कर आग्रह किया था कि वे ह्यूस्टन आएं।

मोदी की अगवानी की होड़ में बोस्टन और शिकागो शहर भी थे। बोस्टन अकादमिक हब है, जहां बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं। इन शहरों के प्रमुख भारतीय मूल के लोगों ने भी मोदी को आमंत्रित करने के लिए पत्र लिखे, लॉबिंग की, लेकिन सोच समझ कर ह्यूस्टन को ही चुना गया। जून 2019 में ईरान तेल संकट पर भारत और अमेरिका में बातचीत चल रही थी। ह्यूस्टन के इंडो-अमेरिकी बाशिंदों को ये सुनहरा अवसर लगा क्योंकि अमेरिका में कच्चे तेल का केंद्र टेक्सास राज्य है। ह्यूस्टन को एनर्जी कैपिटल भी कहा जाता है। भारत को तेल चाहिए और इसे ह्यूस्टन पूरा कर सकता है। इसी रणनीति के तहत ह्यूस्टन वालों ने मोदी को आमंत्रित किया और इसी वजह से मोदी ने इसे स्वीकार भी कर लिया। टेक्सास में जितना तेल पैदा होता है उससे भारत की एनर्जी डिमांड का 70 फीसदी हिस्सा पूरा हो सकता है। मोदी की अगवानी के लिए टेक्सास इंडिया फोरम बनाया गया जिसके चेयरमैन जुगल मालानी बनाए गए। इस फोरम में टॉप कंपनियों और संगठनों के भारत मूल के लोग शामिल हैं। मोदी की ह्यूस्टन रैली के लिए टेक्सास इंडिया फोरम ने 24 लाख डालर जमा किए। रैली में 50 हजार लोग शामिल हुए। ह्यूस्टन में मोदी ने टॉप अमेरिकी कंपनियों के अधिकारियों के संग मीटिंग की। इन कंपनियों में एक्सान मोबिल, ब्रिटिश पेट्रोलियम, डोमिनियन एनर्जी, शेनियरे एनर्जी, पेरोत ग्रुप आदि शामिल रहे। ये सभी टॉप एनर्जी कम्पनियां हैं।

मोदी की यात्रा के रोमांचक क्षण और उपलब्धियों के बाद यह जानना अनिवार्य हो जाता है कि आखिर हाउडी मोदी है क्या? हाउडी अंग्रेजी का वह शब्द है जो हाउ डू यू डू से बना है जिसका हिन्दी में अर्थ आप कैसे हैं, होता है। हालांकि अमेरिकी समाज में यह शब्द धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर जाता जा रहा है। यहां पर हेलो या हाय शब्द का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। परन्तु दक्षिण पश्चिम अमेरिका के कुछ इलाकों में हाउडी का प्रचलन आज भी है। भारत में 2010 में इस शब्द को मध्यवर्गीय लोगों ने माइनेम इज खान फिल्म के जरिए समझा। इस फिल्म के अंत में जब नायक शाहरूख खान नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलते हैं तो वह उन्हें होमलैंड सिक्योरिटी के आफिसर जॉन मार्शल के लिए एक संदेश देते हैं। इस संदेश में शाहरूख, राष्ट्रपति से कहते हैं कि वह जॉन मार्शल से कहें- हाउडी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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