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शौचालयों से ही समृद्धि संभव

तुलसी गौड़ा की सोशल मीडिया में छाई हुई तस्वीर ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा।

Gajendra Singh Shekhawat
Published on: 20 Nov 2021 10:51 AM GMT
शौचालयों से ही समृद्धि संभव
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शौचालयों से ही समृद्धि संभव

हाल ही में सोशल मीडिया (Social Media) पर एक तस्वीर वायरल हुई। बिना चप्पल यानि नंगे पांव आदिवासी पोशाक पहने 72 वर्षीय पद्म श्री से सम्मानित तुलसी गौड़ा (Tulsi Gowda photo Viral) की सोशल मीडिया में छाई हुई तस्वीर ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। उस तस्वीर ने अकेले ही उन चैंपियनों को पुरस्कृत करने की सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया, जो समाज में जमीनी स्तर पर अपना योगदान दे रहे हैं । सहज रूप से सुर्खियों से दूर रहकर साधु जैसी एकाग्रता के साथ चुपचाप अपना काम करते हैं। इसी तरह की एक तस्वीर 2016 में भी वायरल हुई थी। वह माननीय प्रधानमंत्री की 105 वर्षीय कुंवर बाई को नमन करते हुए तस्वीर थी। कुंवर बाई (Kunwar Bai ne banaya 10 toilet) ने अपने गांव में शौचालय बनाने के लिए 10 बकरियां और अपनी अधिकांश संपत्ति बेच दी थी। इस किस्म के दृश्य संख्या और आंकड़ों के मामले में हमारी उपलब्धियों के समान ही मर्मस्पर्शी और जश्न मनाने लायक हैं। जब भारत ने 108 मिलियन शौचालयों का निर्माण कर खुले में शौच से मुक्त का दर्जा हासिल किया तो यह कुंवर बाई की उतनी ही जीत थी, जितनी माननीय प्रधानमंत्री की। चैंपियन हमेशा सरकार की नीतियों के सह-उत्पाद नहीं होते, बल्कि कभी-कभी नीतियां भी चैंपियनों से प्रेरणा लेती हैं। जैसा कि प्रधानमंत्री अक्सर कहते हैं, जब प्रत्येक भारतीय सिर्फ एक कदम उठाता है तो भारत 135 करोड़ कदम आगे बढ़ता है। स्वच्छ भारत अभियान (Bharat Abhiyan), जल शक्ति अभियान (Jal Shakti Abhiyan) , जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission) और हाल ही में टीकाकरण अभियान (Tikakaran abhiyan) जैसे जन-आंदोलन इस उक्ति के जीवंत उदाहरण हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता प्रदान करना बेहद जरूरी

मार्मिकता और प्रेरणा की बात तो एक तरफ लेकिन किसी आंदोलन की शुरुआत करना और उसे गति देना नीतिगत मूल्य श्रृंखला का केवल एक पहलू है। उस आंदोलन की गति को बनाए रखना और पुरानी आदतों की ओर लौटने को हतोत्साहित करना कहीं अधिक बड़ी चुनौती है। इसके लिए व्यापक तकनीकी विशेषज्ञता एवं आधारभूत संरचना की जरूरत होती है। इस उद्देश्य के लिए, स्वच्छता से संबंधित मूल्य श्रृंखला के सभी स्थिर और गतिमान रहने वाले हिस्सों की पड़ताल यानी मल अपशिष्ट की रोकथाम, उसे खाली करना, उसका परिवहन, उसका शोधन और उसके दोबारा उपयोग या निपटान का अहम महत्व है। इन तथ्यों के आलोक में, भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण- 2 को 1,40,881 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ मंजूरी दी थी। इसके तहत खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) की स्थिति और ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन की निरंतरता पर ध्यान केंद्रित किया गया था।

इस विकराल समस्या का केंद्र बिंदु और इसकी सबसे बड़ी पहेलियों में से एक है मल से संबंधित गाद का प्रबंधन (एफएसएम), जो कि 'खुले में शौच से मुक्त' प्लस भारत का एक महत्वपूर्ण लेकिन चुनौतीपूर्ण हिस्सा है। सामुदायिक शौचालयों के निर्माण, ठोस एवं तरल कचरे के प्रभावी प्रबंधन और गांवों की दिखने लायक सफाई के साथ–साथ ओडीएफ प्लस की स्थिति को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण-II के प्रमुख फोकस क्षेत्र के रूप में गिना जाता है। सेप्टिक टैंक और सिंगल पिट जैसे स्थल पर सफाई से जुड़े शौचालयों की काफी संख्या होने की वजह से मल से संबंधित गाद का प्रबंधन (एफएसएम) ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित तरीके से स्वच्छता प्रदान करने की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है।

आगे आने वाली चुनौतियों की विकरालता हमें सर्वोत्तम प्रथाओं और केस स्टडी की पहचान करने के लिए मजबूर करती है। ऐसा ही एक उदाहरण मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के कालीबिल्लौद गांव का है। ग्राम पंचायत द्वारा संचालित एवं व्यवस्थित कालीबिल्लौद मल गाद शोधन संयंत्र, तीन ग्राम पंचायतों के समूह के 45,870 लोगों की जरूरतों को पूरा करता है। इसकी क्षमता तीन किलोलीटर मल से संबंधित गाद के शोधन की है। विभिन्न सेवा प्रदाता हर दिन 3000 लीटर गाद एकत्रित करते हैं। यह गाद शोधन की विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरता है। इसका अंतिम उत्पाद एक किस्म का शोधित अपशिष्ट होता है, जो कि आसपास के परिदृश्य को सुन्दर बनाने के काम आता है। इस किस्म के अन्य चैंपियनों के साथ कालीबिल्लौद एक मिसाल है। इनमें से प्रत्येक चैंपियन को स्थानीय परिस्थितियों और चुनौतियों के अनुरूप ढाला गया है। ग्रामीण भारत स्वच्छता के क्षेत्र में की जाने वाली किसी भी पहल के सामने एक बहुत बड़ी बाधा खड़ी करता है। ग्रामीण भारत में जल–निकासी की व्यवस्था (सीवरेज सिस्टम) का न होना सबसे बड़ी बाधा है। इस प्रकार, यह मल अपशिष्ट के सुरक्षित प्रबंधन पर अधिकतम बोझ डालता है। ट्विन लीच पिट को छोड़कर, सिंगल पिट और सेप्टिक टैंक जैसी मल अपशिष्ट की रोकथाम से जुड़ी अन्य प्रणालियों में मल से संबंधित गाद को हटाकर खाली करने की जरूरत होती है।

वर्ष 50,000 रुपये की बचत

स्वच्छ भारत अभियान द्वारा स्वास्थय और मानव दिवस की दृष्टि से प्रति परिवार प्रति वर्ष 50,000 रुपये की बचत का एकमात्र कारण ट्विन पिट जैसे दूरदर्शी उपाय की शुरुआत थी, जिसके बिना स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) एक बहुत ही बड़ी और अपेक्षाकृत अधिक अनसुलझी समस्या का कारक साबित होता। ट्विन पिट इस सरकार की दूरदर्शिता का एक आदर्श उदाहरण है। यह बेहद ही कम लागत पर स्थल पर शोधन की सुविधा प्रदान करता है। अन्यथा बिना ट्विन पिट के बने 108 मिलियन शौचालयों ने पूरे इकोसिस्टम को नष्ट कर दिया होता, हमारे भूजल को जहरीला बना दिया होता। आम तौर पर हर किसी के लिए जीवन को एक बदबूदार नरक बना दिया होता।अधिकांश चुनौतियों की जड़ें स्वच्छ भारत के पूर्व के दिनों में हैं, जहां शौचालयों का निर्माण इसके रख-रखाव के बारे में सोचे-समझे बिना किया जाता था। स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) मल से संबंधित गाद के प्रबंधन के जरिए वर्तमान में जो कर रहा है, वह और कुछ नहीं बल्कि अतीत की गलतियों को दूर करना और स्वच्छता की खराब प्रणालियों के कारण भूजल एवं जल निकायों में मल की वजह से पैदा होने वाले रोगजनकों के रिसाव को रोकना है। मल प्रबंधन के क्षेत्र में छोटे स्तर के अकुशल एवं अक्सर बिना मशीनी सुविधा वाले अनौपचारिक सेवा प्रदाताओं की भीड़ है। अराजकता के इस वातावरण में समझ पैदा करना और व्यवस्था में अनुशासन लाना एक ऐसी कठिन चुनौती है जिससे हमें स्वच्छता की राह में जूझना होगा। सर्वोत्तम प्रथाओं, जिनके बारे में हमने इस लेख में गंभीरता से चर्चा की है, को संस्थागत बनाना आगे के रास्तों में से एक है। ट्विन पिट की शानदार प्रणाली एक बार फिर से चर्चा में है क्योंकि हम सिंगल पिट को भी तेजी से ट्विन पिट में परिवर्तित कर रहे हैं। जहां तक सेप्टिक टैंक का सवाल है, आंशिक रूप से शोधित अपशिष्ट जल के निपटान के उद्देश्य से सेप्टिक टैंक के लिए लीच पिट बनाए जा रहे हैं।

विश्व शौचालय दिवस 2021

विश्व शौचालय दिवस 2021 का विषय 'शौचालयों का महत्व' है। अगर दुनिया में किसी देश ने सही मायने में शौचालय को महत्व दिया है, तो वह इस सरकार के अधीन यह देश है। जहां दूसरों ने शौचालयों को कचरे के रूप में देखा, वहीं हमने इसे महिलाओं के आत्मसम्मान को बनाए रखने के एक साधन के रूप में देखा। जहां कई लोगों ने शौचालयों को एक विषय के रूप में चर्चा के लिए प्रधानमंत्री के पद की गरिमा के प्रतिकूल माना, वहीं माननीय प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से इसके बारे में बात की। उन्होंने इसे अपने जीवन का मिशन बना लिया । कुंवर बाई जैसे लाखों लोग उनके इस अभियान में शामिल हुए। अब स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) चरण-2 की जिम्मेदारी को आगे सौंपा गया है । मुझे विश्वास है कि 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों में शामिल छठा लक्ष्य यानी सभी के लिए पानी और स्वच्छता के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा। उस पायदान पर खड़े होना वाकई एक शानदार उपलब्धि होगी और एक राष्ट्र के रूप में, हम इसके लिए तैयार हैं। स्वच्छता के चैंपियन के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए हम तैयार हैं। हम एक बार फिर से खुद को गौरवान्वित करने के लिए तैयार हैं।

Ragini Sinha

Ragini Sinha

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