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TV TRP News: मतभेद रखें लेकिन मनभेद नहीं

बहसों में शामिल लोग एक-दूसरे की बात काटने के लिए अनर्गल भाषा का इस्तेमाल करते हैं, ऐसी बातें नहीं कहते हैं, जिनसे करोड़ों दर्शकों का ज्ञानवर्द्धन हो।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 8 July 2022 2:52 AM GMT
TV TRP News
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टीवी चैनल टीआरपी में वयस्थ (फोटो =सोशल मीडिया )

TV TRP News: आजकल हमारे टीवी चैनलों और कुछ नेताओं को पता नहीं क्या हो गया है? वे ऐसे विषयों को तूल देने लगे हैं, जो देश की उन्नति और समृद्धि में कोई योगदान नहीं कर सकते। जैसे भाजपा प्रवक्ता के द्वारा पैगंबर मोहम्मद के बारे में दिया बयान और अब कनाडा में बनी फिल्म 'काली' को लेकर देश का कितना समय बर्बाद हो रहा है। हमारे लगभग सभी टीवी चैनल दिन भर इसी तरह के मुद्दों पर पार्टी-प्रवक्ताओं और बड़बोले सतही वक्ताओं को बुलाकर उनका दंगल दिखाते रहते हैं।

इन बहसों का एकमात्र लक्ष्य यही होता है कि टीवी चैनल अपनी दर्शक-संख्या (टीआरपी) में वृद्धि करें। इन बहसों में शामिल लोग एक-दूसरे की बात काटने के लिए अनर्गल भाषा का इस्तेमाल करते हैं, एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाते हैं और ऐसी बातें नहीं कहते हैं, जिनसे करोड़ों दर्शकों का ज्ञानवर्द्धन हो।

देश के अनेक विचारशील और गंभीर स्वभाव के लोग इन बहसों को देखकर दुखी होते हैं और उनमें से बहुत-से लोग टीवी देखना ही टालते रहते हैं। वे मानते हैं कि इन बहसों को देखना अपना समय नष्ट करना है। लेकिन आम आदमियों पर ऐसी बहसों का कुप्रभाव आजकल हम जोरों से देख रहे हैं। कभी उन्हें लगता है कि फलां वक्ता ने शिवजी का अपमान कर दिया है, फलां ने पैगंबर के बारे में घोर आपत्तिजनक बात कह दी है और फलां ने काली माता की छवि चौपट कर दी है। यदि ऐसा किसी विधर्मी के द्वारा हुआ है तो फिर आप क्या पूछते हैं? सारे देश में प्रदर्शनों, जुलूसों और हिंसा का माहौल बन जाता है।

हत्या व आगजनी पर भी उतारु

हमारी सभी पार्टियों के नेताओं की गोटियां गरम होने लगती हैं। वे एक-दूसरे के विरुद्ध न सिर्फ तेजाबी बयान जारी करते रहते हैं बल्कि पुलिस थानों में रपटें लिखवाते हैं, अदालतों में मुकदमे दायर कर देते हैं और कुछ सिरफिरे लोग हत्या व आगजनी पर भी उतारु हो जाते हैं। वे यह क्यों नहीं समझते कि उनके धर्मों के देवी-देवताओं या महापुरुषों की महिमा क्या इतनी छुई-मुई है कि उनके खिलाफ कही गई कुछ ऊटपटांग बातों के कारण उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है? क्या उनके प्रति सदियों से चली आ रही श्रद्धा और भक्ति की परंपरा इन चलताऊ टिप्पणियों के कारण नष्ट हो सकती है? मैं तो सोचता हूं कि बहस का जवाब बंदूक से नहीं, बहस से दिया जाना चाहिए। सभी धर्मों के महापुरुषों का व्यक्ति के रूप में पूर्ण सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन उनके व्यक्तित्वों और सिद्धांतों पर खुली बहस होनी चाहिए। यदि हमारे देश में खुली बहस पर प्रतिबंध लग गया तो यह विश्व-गुरु विश्व-चेला बनने लायक भी नहीं रहेगा। भारत तो हजारों वर्षों से 'शास्त्रार्थों' और खुली बहसों के लिए जाना जाता रहा है। सन्मति और सहमति के निर्माण में तर्क-वितर्क और बहस-मुबाहिसा तो चलते ही रहना चाहिए। जर्मन दार्शनिक हीगल और कार्ल मार्क्स भी वाद-प्रतिवाद और समन्वयवाद के समर्थक थे। मनुष्यों में मतभेद तो रहता ही है, बस कोशिश यह होनी चाहिए कि मनभेद न रहे।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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