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सावरकर को न्याय

प्रश्न यहाँ यह है कि मिलते जुलते अपराधों के लिए विषम दण्ड प्रावधान अपनाना नाइंसाफ़ी है कि नहीं ? यूं तो जेल से हर तरीके से हर कोई बाहर आना चाहेगा| वह मानवकृत नरक है| जघन्यता का चरम है| काला पानी के जेल में सावरकर ग्यारह वर्ष रहे| अन्य भारतीय जेल अंडमान जेल की तुलना में आरामगृह सरीखे ही रहे|

K Vikram Rao
Published on: 4 Sep 2023 4:51 PM GMT
सावरकर को न्याय
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विनायक सावरकर को भारत रत्न देने का महज दो कारणों से विरोध हो रहा है| उन्होंने अंडमान जेल से रिहाई चाही थी और बर्तानवी सरकार से सहकार की इच्छा व्यक्त की थी| प्रश्न यहाँ यह है कि मिलते जुलते अपराधों के लिए विषम दण्ड प्रावधान अपनाना नाइंसाफ़ी है कि नहीं ? यूं तो जेल से हर तरीके से हर कोई बाहर आना चाहेगा| वह मानवकृत नरक है| जघन्यता का चरम है| काला पानी के जेल में सावरकर ग्यारह वर्ष रहे| अन्य भारतीय जेल अंडमान जेल की तुलना में आरामगृह सरीखे ही रहे|

एक और भी अंतर है| अमूमन आन्दोलनकारी एक कालावधि के बाद रिहा हो जाते हैं| यातनाएं कम पीड़ादायिनी होती हैं| पांच जेलों में तेरह महीने वाला मेरा ऐसा ही अनुभव है| फिर भी सारे कैदी सदिच्छा संजोते हैं कि जेल के फाटक टूटेंगे| मगर कालापानी में आजीवन कारावास या पचास वर्ष तक की सजा तब आम थी| दहशत भरी भी| सावरकर ऐसे यातना स्थल में रहे|

इंदिरा गांधी वीर सावरकर का करती थीं सम्मान: रणजीत सावरकर

देख आइये अंडमान में सेलुलर जेल को| जवाहरलाल नेहरू कुल दस वर्ष भिन्न जेलों में अलग दौर में रहे| रसोइया, सेवक, लाइब्रेरी, मुलाकाती सभी उपलब्ध थे| कागज पेन मिलता था बुद्धि-कर्म हेतु| सावरकर ने तो नाखून बढ़ाकर उनसे तन्हा कोठरी की दीवारों पर खुरच कर कवितायेँ लिखी थीं| भगत सिंह किस्म के कैदी तो मरजीवड़े होते थे| वे उस मनोदशा पर थे जहाँ पीड़ा और राहत के फर्क का एहसास शून्य हो गया था|

कहाँ हैं सावरकर ? कहाँ डांगे

सावरकर के विरुद्ध दूसरा मुद्दा है हुकूमत-ए-बर्तानिया से सहयोग का| भारत के लेनिन, पुणे के चित्पावन विप्र, श्रीपाद अमृत डांगे ने तो मेरठ षड्यंत्र काण्ड में वायसराय को माफीनामा भेज दिया था| राष्ट्रीय संग्रहालय में वह दस्तावेज सुरक्षित है| इसी त्रासदी के नतीजे में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के 1962 में दो फाड़ हो गये थे| मार्क्सवादी नम्बूदिरीपाद का दल और उधर डांगे-कम्युनिस्ट| इंदिरा गाँधी की इमरजेंसी में सरकार बचाने और विरोधियों को थानों में बंद कराने में डांगे जुटे रहे| लोकनायक जयप्रकाश नारायण उनके लिए राष्ट्रद्रोही थे| अतः गौर करें कहाँ हैं सावरकर ? कहाँ डांगे ?

रामदेव ने कहा- वीर सावरकर को मिलना चाहिए भारत रत्न

मान भी लें कि माफीनामा सावरकर ने लिखा था तो याद कर लें कि भारत के सबसे बड़े बागी ने भी अकबर को सहयोग पत्र लिख दिया था| उसके पुत्र के मुंह से जंगली बिलौटा घास की रोटी झपट कर ले गया था| वह शिशु बिलखने लगा था| पिता प्रताप के लिए यह असह्य था|

राजगोपालाचारी को भी देखें

अब दूसरे पहलू पर ध्यान दें| सावरकर को भारत रत्न नहीं मिलना चाहिए क्योंकि ब्रिटिश राज से सहयोग का वादा वे कर रहे थे| तो विश्लेषण कर लें कि जिन्हें अभी तक भारत रत्न मिला है उनमें कितने ठोस राजविरोधी थे ? पहला अलंकरण 1954 में मिला था, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को| ये गाँधी जी के समधी थे| इन्होने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन का सख्त विरोध किया था| जेल नहीं गए थे| मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान का भौगोलिक खाका पेश किया था| फिर भी जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें गवर्नर जनरल नियुक्त कराया| माउन्टबेटन प्रस्थान कर चुके थे| नेहरू ने सर-पैर एक कर दिया था कि राजगोपालाचारी प्रथम राष्ट्रपति भी चुने जाएँ | वाह रे सरदार पटेल ! किसान–वकील राजेन्द्र प्रसाद को निर्वाचित करा दिया|

भारत छोडो संघर्ष के धुर विरोधी राजगोपालाचारी के राष्ट्रपति बनने के मायने वही होता जो 22 मार्च 1977 को जनता पार्टी सरकार में मोरारजी देसाई और चरण सिंह को काटकर जगजीवन राम को प्रधान मंत्री बना दिया जाता| यही जगजीवन राम थे जिन्होंने 1975 में आपातकाल के समर्थन का प्रस्ताव संसद में पारित कराया था| मगर 1977 में इतिहास विकृत होने से बच गया|

अम्बेडकर पर भी एक नजर

राजगोपालाचारी के बाद एक अन्य भारतरत्न महापुरुष का उल्लेख हो जाय| डॉ. भीम रामजी अम्बेडकर की सावरकर से तुलना करें| भारत छोडो संघर्ष के दौर में ब्रिटिश पुलिस देशभक्त सत्याग्रहियों को गोलियों से भून रही थी, लाठी से उनका सर फोड़ रही थी| तो यही डॉ. अम्बेडकर साहब ब्रिटिश वायसराय की काबीना में वरिष्ठ मंत्री पद पर विराजमान थे| सारे भारतीय एक तरफ और यह दलित मसीहा दूसरी तरफ, उन गोरे साम्राज्यवादियों के साथ| अब अम्बेडकर को भी भारत रत्न दे दिया गया| किसलिए ? नेहरू चाहते थे कि 1946 में ब्रिटिश विधिवेत्ता सर आइवोर जेनिंग्स संविधान-निर्मार्त्री समिति के अध्यक्ष बन जाएँ| गाँधी जी की जिद थी कि डॉ. अम्बेडकर ही बनें| हालाँकि वे मुंबई से संविधान सभा का चुनाव हार गये थे|

अब परख करें कि राजगोपालाचारी और अम्बेडकर के सामने सावरकर की ब्रिटिशपरस्ती कितनी गाढ़ी रही होगी ?

मगर एक बात जो अखरती है कि सरदार पटेल को 1991 में भारत रत्न मिला, उनके निधन के चार दशक बाद|

हालाँकि प्रधान मंत्री नेहरू ने बहुत पहले ही खुद भारत रत्न ले लिया था, सालभर ही बीता था| तभी शंकर्स वीकली में कार्टून बना था कि नेहरू बांये हाथ द्वारा अपने दायें हाथ में भारत रत्न थमा रहे हैं| खुद को खुद से खुद के लिए इनाम !

K Vikram Rao

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K Vikram Rao

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Senior Writer

लेखक, पत्रकार, 45 वर्षों से मीडिया विश्लेषक, के. विक्रम राव तकरीबन 95 अंग्रेजी, हिंदी, तेलुगु और उर्दू पत्रिकाओं के लिए समसामयिक विषयों के स्तंभकार हैं।

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