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Uniform Civil Code: सब के लिए एक-जैसा कानून कैसे ?

Uniform Civil Code: कुछ कट्टर धर्मध्वजी लोग इसका विरोध जरूर करते हैं, क्योंकि उनकी मान्यता है कि यह उनके धार्मिक कानून-कायदों का उल्लंघन है।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 8 Nov 2022 4:39 AM GMT
Uniform Civil Code
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समान आचार संहिता (photo: social media ) 

Uniform Civil Code: भाजपा राज्यों की सरकारें एक के बाद एक घोषणा कर रही हैं कि वे समान आचार संहिता अपने-अपने राज्यों में लागू करनेवाली हैं। यह घोषणा उत्तराखंड, हिमाचल और गुजरात की सरकारों ने की हैं। अन्य राज्यों की भाजपा सरकारें भी ऐसी घोषणाएं कर सकती हैं लेकिन वहां अभी चुनाव नहीं हो रहे हैं। जहां-जहां चुनाव होते हैं, वहां-वहां इस तरह की घोषणाएं कर दी जाती हैं। क्यों कर दी जाती हैं? क्योंकि हिंदुओं के थोक वोट कबाड़ने में आसानी हो जाती है और मुसलमान औरतों को भी कहा जाता है कि तुम्हें डेढ़ हजार साल पुराने अरबी कानूनों से हम मुक्ति दिला देंगे। यह बात सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है और इतनी तर्कसंगत भी लगती है कि कोई पार्टी या नेता इसका विरोध नहीं कर पाता।

हाँ, कुछ कट्टर धर्मध्वजी लोग इसका विरोध जरूर करते हैं, क्योंकि उनकी मान्यता है कि यह उनके धार्मिक कानून-कायदों का उल्लंघन है। यों भी संविधान सभा में सबके लिए समान कानून की धारणा को व्यापक समर्थन मिला था । लेकिन क्या वजह है कि आजादी को आए 75 साल बीत रहे हैं और देश में हर तरह की सरकारें बन चुकी हैं, फिर भी किसी सरकार की आज तक हिम्मत नहीं हुई कि वह देश के सभी नागरिकों के लिए व्यक्तिगत और पारिवारिक मामलों में एक तरह का कानून बना सके? संविधान की धारा 44 में कहा गया है कि राज्य की कोशिश होगी कि सारे देश के नागरिकों के लिए एक-जैसा कानून बने। इसके बावजूद सबके लिए एक-जैसा कानून इसलिए नहीं बना कि भारत विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, जातियों, कबीलों और परंपराओं का देश है। सारे हिंदू, सारे मुसलमान, सारे आदिवासी, सारे ईसाई भी शादी-विवाह और निजी संपत्ति के मामलों में अपनी-अपनी अलग-अलग परंपराओं को मानते हैं। जब एक तबके में ही एका नहीं है तो सब तबकों के लिए एक-जैसा कानून कैसे बन सकता है? जैसे आंध्र के हिंदुओं में मामा-भानजी के बीच शादी हो जाती है और जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों पर शरीयत-कानून लागू नहीं होता। गोआ का अपना कानून है। वह सबके लिए एक जैसा है।

हर सरकार दुविधा में पड़ी रहती है कि समान आचार संहिता लागू करें या न करें। भाजपा के लिए तो यह बड़ा सिरदर्द है, क्योंकि यह उसका मूलभूत चुनावी मुद्दा रहा है। भाजपा सरकार ने 2016 में विधि आयोग से भी इस मुद्दे पर राय मांगी थी। लेकिन उसकी राय भी यही है कि बिल्कुल एक-जैसा कानून सब पर नहीं थोपा जा सकता है लेकिन कई निजी कानूनों में काफी सुधार किया जा सकता है ताकि लोगों को सम्मानपूर्ण जीवन का अधिकार मिल सके और भारत के लोग अपनी सांप्रदायिक परंपराओं के अत्याचारों से मुक्त हो सकें। भारत सरकार को चाहिए कि देश के विधिवेत्ताओं, धर्मध्वजियों और विभिन्न परंपराओं के प्रामाणिक प्रतिनिधियों का एक संयुक्त आयोग स्थापित करे और उससे कहे कि वह 2024 के पहले अपनी संपूर्ण रपट राष्ट्र के विचारार्थ प्रस्तुत करे।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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