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खादी कभी थी आजादी की वर्दी !

Union Budget 2022: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा अपने उद्धबोधन में खादी के उत्पादन में बढ़ोतरी होने की जानकारी देने के बाद आज बजट 2022 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वस्त्र उद्योग के लिए कई घोषणाएं की हैं।

Bishwajeet Kumar
Published By Bishwajeet KumarWritten By K Vikram Rao
Published on: 1 Feb 2022 11:39 AM GMT
खादी कभी थी आजादी की वर्दी !
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खादी उद्योग की फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

https://newstrack.com/uttar-pradesh/khadi-industry-state-government-international-recognition-employment-275853

खादी: अपने घंटेभर के उद्बोधन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने कल (31 जनवरी 2022) संसद की संयुक्त बैठक को बताया कि गत वर्ष खादी का उत्पादन तीन प्रतिशत बढ़ा है। केवल एक वाक्य था। मगर विकर्षण इस पर हुआ कि आज वित्तमंत्री (निर्मला सीतारमण) ने अपने बजट को भाषण में वस्त्र उद्योग को भारी भरकम स्थान दिया। महत्व भी अतुलनीय ! हालांकि उनके पार्टी मुखिया मोदी सूत्र दे चुके थे कि : ''आजादी के पूर्व खादी फार नेशन'' था। अब इसे ''फॉर फैशन'' बनाना है, ताकि प्रगति द्रुत हो सके। हालांकि नोबेल विजेता अमृत्य सेन ने अपनी किताब ''तकनीक के चयन'' में खादी के विस्तार पर लिखा है कि : ''फूहड़ तकनीक तथा घटिया मार्केटिंग के कारण खादी बढ़ नहीं पायी।'' इसका एकमात्र कारण है कि उद्योग भवन में ही विशाल वस्त्र मंत्रालय तथा समीपस्थ ग्रामोद्योग आयोग में सहयोग उपेक्षित है। मानो जैसे सौतन हों।

गुजरे युग के लोग याद करते है जब खादी का दौर था। वह त्याग और प्रतिरोध का माध्यम था। अब इसे टिकटार्थी ले उड़े। दागधारी भी। शीर्षक छपते हैं : ''खाकी और खादी'' के अभिषंगी बन जाने के। चुनाव में खासकर।

परन्तु इस बीच कुछ बदला है। मसलन रामलला के संदर्भ में। वहां खादी के परिधानों से कौशल्यापुत्र के ''तनु घनश्यामा'' का श्रृंगार होता है। गत बसंत पंचमी पर बिस्मिल्ला हुआ था। पीताम्बर से। हर सोमवार को श्वेत, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, बृहस्पतिवार को पीला, शुक्रवार को नवनीत (माखनी), शनिवार को नीला और रविवार को गुलाबी। सब खादी वस्त्र पर ही।

इस तरह दूर हो सकते हैं लाखों दीनों के दुख

(हिन्दुस्तान टाइम्स : 17 फरवरी 2021)। एक अनुमान में रामलला के करोड़ों आस्थावानों में केवल एक प्रतिशत इस कपड़ा स्टाइल को अपना ले तो लाखों दीनों के दुख दूर हो जायेंगे। यह सुगम है क्योंकि आज दुनिया में सूती वस्त्रों का प्रचलन काफी बढ़ा है। यह भी सुझाया गया है कि चीन से आयातीत वस्त्र अरबों रुपयों में है। यदि मात्र दो प्रतिशत कटौती हो तो लाखों कातनेवालों की रोटी निश्चित हो जायेगी।

यह खबर 2 दिसम्बर 1936 की है। (दैनिक हिन्दुस्तान, मद्रास : (आज चेन्नई) महानगर पालिका में एक कांग्रेसी सदस्य का प्रस्ताव स्वीकार हो गया था। प्रस्ताव था : कार्पोरेशन के स्वास्थ्य-विभाग के 23 सैनिटरी (सफाई) इन्स्पेक्टरों और अन्य साधारण कर्मचारियों को खादी की वर्दियां पहनायी जाये।'' प्रस्तावक का समर्थन करते हुए एन.एस. वरदाचारी ने कहा कि ''खादी धारी लोग बड़े चुस्त लगते हैं और खादी पहनते ही करोड़ों भूखे देशवासियों के हतभाग्य की याद भी आ जाती है।'' श्रीमती लक्ष्मीपति ने प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए कहा कि ''खादीधारिणी स्त्रियां अधिक खूबसूरत दिखायी पड़ती हैं।''

उस वक्त भारत गुलाम था। गत सदी के अंत में (5 दिसम्बर 1921): दैनिक हिन्दू में एक रपट छपी थी कि कलकत्ता (आज कोलकाता) में पुलिस अधीक्षक ने निर्देश दिया था कि खादी (गांधी) टोपी लगाना अपराध न समझा जाये तथा गिरफ्तारी न की जाये। दैनिक ''बंगाली'' ने गांधी टोपी पर प्रतिबंध के खिलाफ आन्दोलन चलाया था। नतीजन ऐसा कानूनी सुधार किया गया।

खादी परिधान पर से समस्त पाबंदियां खत्म कर दी

मेरी एक निजी घटना भी है। तब मैं सपरिवार ब्रिटिश पत्रकार यूनियन के अधिवेशन में लंदन (अगस्त 1984) गया था। वहां वयोवृद्ध सोशलिस्ट (लेबर पार्टी) सांसद लार्ड फेनर ब्राकवे से भेंट करने गया। यह भारतमित्र एक दिन हाउस आफ कामंस (लोकसभा) में खादी की गांधी टोपी पर धारण कर गया था। स्पीकर को बताया कि : ''तेलुगुभाषी गुन्टूर जिले के ब्रिटिश कलेक्टर ने गांधी टोपी को गैरकानूनी करार दिया था।'' ब्रोकवे का प्रश्न था कि अब हुकूमते बर्तानिया सफेद टोपी से आतंकित हो गयी। तब प्रधानमंत्री ने सदन से क्षमा याचना की तथा खादी परिधान पर से समस्त पाबंदियां खत्म कर दी। मैंने अपनी पुत्री विनीता, पुत्र सुदेव तथा पत्नी सुधा के साथ इस ऋषि का चरण स्पर्श किया। वह खादी का महत्व समझता था।

आईसीएस अधिकारी बीके नेहरु (जवाहरलाल नेहरु के सगे भतीजे) गांधी टोपी को अवैध मानते रहे। मेरा परिवार एक आजीवन खादीधारी स्वतंत्रता सेनानी (नेशनल हेरल्ड, लखनऊ के संस्थापक-संपादक, स्व. के. रामा राव) की संतानें हैं, अत: जानते हैं। आजादी और गुलामी में अंतर करना जानते हैं।

खादी खरीदने से भारतीय सर्वहारा को मिलती है रोटी

अब आज के परिवेश में खादी पर गौर करें। नेहरु और नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के जैकेट (Modi Jacket) से मुग्ध होकर युवा इसे अपनाते हैं। यह भी अहसास हो रहा कि खादी खरीदने से भारतीय सर्वहारा को रोटी मिलती है। फैशन डिजाइनिंग काउंसि​ल ने 2015 में एक फैशन शो किया था जिसमें सलमान खान और सोनम कपूर एक साथ खादी के कपड़ों में रैंप पर नजर आये और अपने प्रशंसकों को खादी अपनाने का संदेश भी दिया। इससे खादी विक्रय बढ़ा।

गत पांच वर्षों में भारतवासियों में खादी के प्रति आकर्षण तथा अभिलाषा बढ़ी है। एयर इंडिया (Air India) ने कुछ वर्ष पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) के आग्रह (इंडियन एक्सप्रेस : 4 अप्रैल 2010) पर योजना रची थी। खादी क्रय की योगी सरकार ने (1 जुलाई 2019 : राष्ट्रीय सहारा, पृष्ठ-1-2) सरकारी छात्रों को खादी यूनिफार्म पहनने का निर्देश दिया था। उधर रेड क्रास सोसाइटी ने गत 30 जुलाई दो लाख कोरोना मास्क का आर्डर दिया। लेकिन अधिक लाभ खादी को मिला जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने अपने लोगों को हाफ पैन्ट की जगह फुल पैंट कर दिया। इस खादी फुल पैंट का आर्डर आयोग को मिला था (टाइम आफ इंडिया : लखनऊ, मंगलवार, मार्च 2016)। मगर खादी की वैश्विकता बढ़ी जब अमेरिकी राजदूत मेरी कायलास कार्लसन ने (1917 के 15 अगस्त पर) खादी परिधान को पहना और प्र​दर्शित किया।

हालांकि सारी तस्वीर इतनी गुलाबी और आशावादी नहीं हैं। खादी आयोग को भुगतान का बकाया वर्षों से करीब दो हजार करोड़ तक हो गया है। वित्तीय संकट गहराया है क्योंकि छूट की राशि का भुगतान टलता रहा हैं। बिहार के ''महान जननायक'' लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी समेत पूरे परिवार से खादी विक्रेताओं में दहशत पैदा हो गयी है। लालू प्रसाद के समय से करोड़ों रुपये बकाया हैं। कर्मियों को वेतन नहीं मिला। हाल ही में लालू यादव के परिवार के अकस्मात खादी खरीदने के प्रेम से राज्य का खादी विक्रेता भयभीत हैं। नीतीश ही हाथी बनकर इस मगरमच्छ से इस गांधी वस्त्र के गरीब उत्पादकों को मोक्ष दिला सकते है। हालांकि बिहार सरकार अकेली है जो खादी खरीदने पर छूट नहीं देती। आगे तो ईश्वर मालिक।

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