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Universal Childrens Day : भारत में शोषण एवं अपराधमुक्त नया बचपन उभरे

Universal Childrens Day : बाल अधिकारों की घोषणा बच्चों के अधिकारों को बढ़ावा देने वाला एक अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज़ है। इसे मूल रूप से मानवाधिकार कार्यकर्ता एग्लेंटाइन जेब ने प्रस्तावित किया था और 1924 में राष्ट्र संघ द्वारा अपनाया गया था, इससे पहले 1959 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसका विस्तारित संस्करण पेश किया गया था।

Lalit Garg
Written By Lalit Garg
Published on: 19 Nov 2024 4:39 PM IST
Universal Childrens Day : भारत में शोषण एवं अपराधमुक्त नया बचपन उभरे
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Universal Childrens Day : हम में से प्रत्येक को बच्चों के अधिकारों की वकालत करने, उन्हें बढ़ावा देने, उनके शोषण को रोकने, उनका समग्र विकास करने और बच्चों का उत्सव मनाने के लिए एक प्रेरणादायी अवसर के रूप में सार्वभौमिक बाल दिवस 20 नवम्बर को मनाया जाता है। इसकी स्थापना 1954 में हुई थी। 20 नवंबर एक महत्वपूर्ण तारीख है क्योंकि इसी दिन 1959 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों की घोषणा को अपनाया था। इसी दिन 1989 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों पर कन्वेंशन को भी अपनाया था। सार्वभौमिक बाल दिवस पहली बार 1925 में जिनेवा, स्विटजरलैंड में बाल कल्याण के विश्व सम्मेलन में घोषित किया गया था। हालाँकि, इसे आधिकारिक तौर पर दुनिया भर में मान्यता नहीं मिली, लेकिन 1954 में ब्रिटेन ने अन्य देशों को बच्चों के बीच आपसी समझ को बढ़ावा देने और दुनिया भर में बाल कल्याण में सुधार की दिशा में कदम उठाने के लिए एक दिन स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया। सार्वभौमिक बाल दिवस, जिसे विश्व बाल दिवस या सिर्फ़ बाल दिवस के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया भर में बच्चों के सामने आने वाले मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम है।

बाल अधिकारों की घोषणा बच्चों के अधिकारों को बढ़ावा देने वाला एक अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज़ है। इसे मूल रूप से मानवाधिकार कार्यकर्ता एग्लेंटाइन जेब ने प्रस्तावित किया था और 1924 में राष्ट्र संघ द्वारा अपनाया गया था, इससे पहले 1959 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसका विस्तारित संस्करण पेश किया गया था। एग्लेंटाइन जेब एक समाज सुधारक और पूर्व शिक्षिका थीं, जिन्होंने 1919 में सेव द चिल्ड्रन नामक चैरिटी की स्थापना की थी। प्रथम विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप मुख्य भूमि यूरोप में बच्चों को जिस गरीबी का सामना करना पड़ रहा था, उससे वह भयभीत थीं और उन्होंने पर्चे बाँटकर जागरूकता फैलाने की कोशिश शुरू कर दी। उनके जुनून के कारण उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और उन पर जुर्माना लगाया गया, लेकिन जज उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनका जुर्माना खुद ही भर दिया।

जिनेवा में एक बाल सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें जेब ने बाल अधिकारों की घोषणा की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए एक प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंने लिखा कि बच्चे को उसके सामान्य विकास के लिए आवश्यक साधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए, भौतिक और आध्यात्मिक दोनों रूप से। जो बच्चा भूखा है उसे भोजन दिया जाना चाहिए, जो बच्चा बीमार है उसे दूध पिलाया जाना चाहिए, जो बच्चा पिछड़ा है उसकी मदद की जानी चाहिए, अपराधी बच्चे को वापस लाया जाना चाहिए, तथा अनाथ और बेसहारा बच्चे को आश्रय और सहायता दी जानी चाहिए। संकट के समय सबसे पहले बच्चे को राहत मिलनी चाहिए। बच्चे को आजीविका कमाने की स्थिति में रखा जाना चाहिए तथा उसे हर प्रकार के शोषण से बचाया जाना चाहिए। बच्चे को इस चेतना के साथ बड़ा किया जाना चाहिए कि उसकी प्रतिभाएं उसके साथियों की सेवा के लिए समर्पित होनी चाहिए। दुनिया भर में बच्चों की दुर्दशा के बारे में भावुकतापूर्वक बात करते हुए उस समय उजागर की गयी ये बातें आज भी अधिक प्रासंगिक बनी हुई है। इसलिये सार्वभौमिक बाल दिवस को अधिक सशक्त एवं प्रभावी बनाने की अपेक्षा है।

भारत के सन्दर्भ में सार्वभौमिक बाल दिवस को अधिक प्रासंगिक एवं कारगर बनाने की जरूरत है। भारत में कई ऐसे बड़े नेता और दिग्गज लोग हुए हैं, जिनका बच्चों के प्रति प्रेम जग-जाहिर है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू हों या पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम दोनों दिग्गजों ने बच्चों के हित में व्यापक कार्य किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने शानदार व्यक्तित्व और हर उम्र के लोगों से जुड़ने के लिए जाने जाते हैं। बच्चों के प्रति उनका स्नेह कुछ खास है। नेहरू की ही भांति उन्हें भी बच्चों का प्रेमी कहा जा सकता है। आज वे एक विश्वनेता के रूप में उभरे हैं, अतः उन्हें देश एवं दुनिया के बच्चों के कल्याण के लिये कोई बड़ा उपक्रम करना चाहिए। विशेषतः भारत के बच्चों के लिये। क्योंकि भारत में बच्चों के शोषण, उत्पीड़न, दुर्दशा, हिंसा की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही है।

बच्चों के अधिकारों, शिक्षा और कल्याण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए पूरे भारत में बाल दिवस मनाया जाता है। मोदी बच्चों को देश के भविष्य की तरह देखते थे। वे बच्चों के मासूम चेहरों और चमकती आँखों में भारत का भविष्य देख रहे हैं। उनका कहना है कि बच्चों का जैसा पालन-पोषण करेंगे वह देश का भविष्य निर्धारित करेगा।’ लेकिन भारत का यह बचपन रूपी भविष्य आज नशे, शोषण, बाल-मजदूरी एवं अपराध की दुनिया में धंसता चला जा रहा है। बचपन डरावना एवं भयावह हो गया है। आखिर क्या कारण है कि बचपन अपराध की अंधी गलियों में जा रहा है? बचपन इतना उपेक्षित एवं बदहाल क्यों हो रहा है? बचपन के प्रति न केवल अभिभावक, बल्कि समाज और सरकार इतनी बेपरवाह कैसे हो गयी है? यह और ऐसे अनेक प्रश्न सार्वभौमिक बाल दिवस की भारत के सन्दर्भ में प्रासंगिकता को उजागर करते हुए हमें झकझोर रहे हैं।


बाल मजदूरी से बच्चों का भविष्य अंधकार में जाता ही है, देश भी इससे अछूता नहीं रहता क्योंकि जो बच्चे काम करते हैं वे पढ़ाई-लिखाई से कोसों दूर हो जाते हैं और जब ये बच्चे शिक्षा ही नहीं लेंगे तो देश की बागडोर क्या खाक संभालेंगे? इस तरह एक स्वस्थ बाल मस्तिष्क विकृति की अंधेरी और संकरी गली में पहुँच जाता है और अपराधी की श्रेणी में उसकी गिनती शुरू हो जाती हैं। बचपन की उपेक्षा एक अभिशाप है। जब हम किसी गली, चौराहे, बाजार, सड़क और हाईवे से गुजरते हैं और किसी दुकान, कारखाने, रैस्टोरैंट या ढाबे पर 4-5 से लेकर 12-14 साल के बच्चे को टायर में हवा भरते, पंक्चर लगाते, चिमनी में मुंह से या नली में हवा फूंकते, जूठे बर्तन साफ करते या खाना परोसते देखते हैं और जरा-सी भी कमी होने पर उसके मालिक से लेकर ग्राहक द्वारा गाली देने से लेकर, धकियाने, मारने-पीटने और दुर्व्यवहार होते देखते हैं तो अक्सर ‘हमें क्या लेना है’ कहकर अपने रास्ते हो लेते हैं। लेकिन कब तक हम बचपन को इस तरह प्रताड़ित एवं उपेक्षा का शिकार होने देंगे। कुछ बच्चे ऐसी जगह काम करते हैं जो उनके लिए असुरक्षित और खतरनाक होती है जैसे कि माचिस और पटाखे की फैक्टरियां जहां इन बच्चों से जबरन काम कराया जाता है। इतना ही नहीं, लगभग 1.2 लाख बच्चों की तस्करी कर उन्हें काम करने के लिए दूसरे शहरों में भेजा जाता है। इतना ही नहीं, हम अपने स्वार्थ एवं आर्थिक प्रलोभन में इन बच्चों से या तो भीख मंगवाते हैं या वेश्यावृत्ति में लगा देते हैं। देश में सबसे ज्यादा खराब स्थिति है बंधुआ मजदूरों की जो आज भी परिवार की समस्याओं की भेंट चढ़ रहे हैं।

सच्चाई यह है कि देश में बाल अपराधियों की संख्या बढ़ती जा रही है। बच्चे अपराधी न बने इसके लिए आवश्यक है कि अभिभावकों और बच्चों के बीच बर्फ-सी जमी संवादहीनता एवं संवेदनशीलता को फिर से पिघलाया जाये। फिर से उनके बीच स्नेह, आत्मीयता और विश्वास का भरा-पूरा वातावरण पैदा किया जाए। श्रेष्ठ संस्कार बच्चों के व्यक्तित्व को नई पहचान देने में सक्षम होते हैं। अतः शिक्षा पद्धति भी ऐसी ही होनी चाहिए। मोदी सरकार सार्वभौमिक बाल दिवस जैसे आयोजनों को भारत में अधिक प्रभावी तरीके से आयोजित करें, सरकार को बच्चों से जुड़े कानूनों पर पुनर्विचार करना चाहिए एवं बच्चों के समुचित विकास के लिये योजनाएं बनानी चाहिए। ताकि इस बिगड़ते बचपन और राष्ट्र के नव पीढ़ी के कर्णधारों का भाग्य और भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। ऐसा करके ही हम सार्वभौमिक बाल दिवस को मनाने की सार्थकता हासिल कर सकेंगे। इसी से मासूम चेहरों एवं चमकती आंखों का नया बचपन भारत के भाल पर उजागर कर सकें।



Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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